Monday 9 December 2013

केजरीवाल ने देश की राजनीति को दी नई दिशा

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सशक्त  जनलोकपाल बनवाने को लेकर अन्ना आंदोलन के बाद बने माहौल को भांपकर राजनीतिक क्षेत्र में कूदे ब्यूरोक्रेट से समाजसेवी बनने वाले अरविन्द केजरीवाल ने आप नामक पार्टी बनाकर कुछ ही महीनों में जिस तरह से दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को  हराकर व 70 में से 2८ सीटें जीतकर आम आदमी की ताकत का अहसास कराया है, उसने देश की राजनीति की दिशा ही बदल कर रख दी है। आप के प्रदर्शन से अब ईमानदार और स्वच्छ छवि के वाले लोगों के राजनीति में आने की सम्भावना बलवति हो गई है। बाहुबलियों व पूंजीपतियों की बपौती मानी वाली राजनीति में अब आम आदमी भी जनप्रतिनिधि बनने की सोच सकेगा।
      केजरीवाल के संघर्ष ने जाति व धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को सोचने को मजबूर कर दिया है। अच्छे लोगों से विधानसभाएं व लोकसभा सुसज्जित होने के आसार जगने लगे हैं। दिल्ली में आप के प्रदर्शन का असर लोककसभा चुनाव में चल रहे समीकरणों को भी प्रभावित किया है। अब तक कांग्रेस को टारगेट मानकर रणनीति  बना रही भाजपा के लिए आप भी रणनीति का  हिस्सा बन गई है। जिन युवाओं को भाजपा वोटबैंक के रूप  में देख रही थी वे अब आप में राजनीतिक भविष्य तलाश सकते हैं। जाए कहना गलत न होगा कि लोकसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल नरेंद्र मोदी के लिए खतरा बन जाए।
     देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने कि लिए देश को सशक्त जनलोकपाल देने के लिए 2011 में अन्ना हजारे की अगुआई में जब आंदोलन किया तब ही राजनीतिक गलियारों में आंदोलन को राजनीतिक संगठन में बदलने की चर्चाएं होने लगी थी। राजनीतिक पंडित अरविन्द केजरीवाल की राजनीतिक महत्वकांक्षा को भांपने लगे थे । हुआ भी यही, आंदोलन के कुछ ही दिन चलने के बाद अन्ना हजारे के विरोध के बावजूद केजरीवाल ने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कुछ सहयोगियों को साथ
लेकर  26 नवम्बर 2012 को जंतर-मंतर आप नामक राजनीतिक संगठन की घोषणा कर दी। पूर्व आईपीएस किरण बेदी को छोड़कर अन्ना आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण और कुमार विस्वास समेत कई सहयोगी राजनीति करने के लिए केजरीवाल खेमे में आ गए। समाजवादी विचारधारा वाले राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव को भी केजरीवाल पार्टी में ले आए। योगेन्द्र यादव ने ही पार्टी का संविधान तैयार किया।
     अरविन्द केजरीवाल ने आंदोलन छेड़कर भ्रष्टाचार में संलिप्त राजनीतिक दलों का विकल्प देने की कोशिश की। आप ने दिल्ली को टारगेट कर विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। पार्टी ने आंदोलन में सरकार एवं पूंजीपतियों की सांठगांठ से बिजली-पानी आदि के मूल्यों में वृद्धि एवं यौन उत्पीड़न के विरुद्ध एक सशक्त कानून बनाने की मांग प्रमुखता से उठाई गई थी। विधानसभा चुनाव में आप को झाड़ू चुनाव चिह्न मिलने पर केजरीवाल ने सूझबूझ की राजनीति का परिचय देते हुए चुनाव चिह्न को ही भ्रष्टाचार रूपी गंदगी दूर करने का प्रतीक बना दिया। आप की आम आदमी की लड़ाई ने ही पार्टी को दिल्ली में दूसरे नंबर की पार्टी बना दिया।
    अन्ना आंदोलन के बाद दिल्ली में आप के प्रदर्शन के बाद अरविन्द केजरीवाल के पक्ष में बन रहे माहौल की तुलना जेपी आंदोलन से की जा सकती है। सत्तर के दशक में भी कांग्रेस की अराजकता के खिलाफ खड़े हुए समाजवादी आंदोलन के  चलते जिस तरह से देश का युवा लोकनायक जय प्रकाश नारायण के पीछे खड़ा हो गया था। इस बार भले ही अब तक युवाओं का रुझान नरेंद्र मोदी के पक्ष में देखा जा रहा हो पर दिल्ली में आप के प्रदर्शन के बाद आप युवाओं के लिए राजनीतिक मंच के रूप में देखी जा रही है।

2 comments:

  1. आशा बलवती है...........

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  2. काफी जानकारी भरी सशक्त प्रस्तुति।।।

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