Friday 18 April 2014

सत्ता नहीं व्यवस्था परिवर्तन से होगा देश का भला

    आम चुनाव में हर दल सत्ता हथियाने के लिए हर हथकंडा अपना रहा है। कोई मोदी सरकार बनने की बात तो कोई तीसरे मोर्चे की और कोई यूपीए की। चुनाव प्रचार में जैसे किसी दल के पास आरोप-प्रत्यारोप जात-पात के अलावा कोई मुद्दा बचा ही नहीं है। भले ही लोग इस चुनाव में किसी बड़े बदलाव की आस लगाए बैठे हों पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये सब वही नेता हैं जो किसी न किसी रूप में लम्बे समय से देश पर  राज करते आ  हैं।
     अधिकतर बाहुबली और पूंजीपति लोग ही चुनाव लड़ रहे हैं, लोगों को यह मतलब नहीं कि इन लोगों के पास पैसा आया कहां से ? ऐसे में सवाल उठता है कि ये लोग जनप्रतिनिधि बनकर जनता के लिए काम करेंगे या फिर अपने लिए ? देश में मोदी सरकार बनने की चर्चा बहुत जोरों पर है। मैं गुजरात दंगों की बात नहीं करूंगा पर ये वही मोदी जी हैं, जो गुजरात में लोकायुक्त बनाने के पक्ष में नहीं थे। यह वही भाजपा है, अन्ना के जन लोकपाल बनाने के मामले में जिसके सुर अचानक बदल गए थे। हालांकि बाद में यूपीए सरकार ने लोकपाल विधेयक पास हुआ पर कैसा हुआ यह जगजाहिर है।
    मेरा मानना है कि सत्ता बदलने के बाद भी कोई चमत्कार होने की उम्मीद बहुत कम है। जब तक देश की व्यवस्था में परिवर्तन नहीं होगा तब तक देश के भले की उम्मीद लगाना जल्दबाजी होगी। देश में जब तक आरक्षण के नाम वोटबैंक की राजनीति होती रहेगी, जब तक जात-पात के नाम वोट मिलते रहेंगे, जब तक वंशवाद और परिवारवाद राजनीति से खत्म नहीं होगा, जब तक महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिलेगी, जब तक ईमानदार, सच्चे और जमीनी नेता जनप्रतिनिधि नहीं बनेंगे, तब तक देश का कोई भला नहीं हो सकता। भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन से निकले अरविन्द केजरीवाल से लोगों से कुछ आस जगी थी पर वह भी अन्य दलों की तरह ही वोटबैंक की राजनीति करने लगे हैं। देश में एक वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है। इस व्यवस्था के लिए ऐसे लोग आंदोलन करें जो देश पर मर मिटने के लिए तैयार रहें। जब तक युवा वर्ग मोह माया छोड़कर देश के लिए त्याग, समर्पण अौर देशभक्ति के जज्बे के साथ देश अौर समाज के लिए सड़कों पर नहीं उतरेगा तब तक भ्रष्ट हो चुकी देश व्यवस्था नहीं बदलेगी। देश के स्वार्थी नेता जनता को ऐसे ही बेवकूफ बनाते रहेंगे।
       अब देश में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, दलित-पिछड़े-सवर्णों के बीच लड़ाई लड़ने की जरूरत हैं नहीं बल्कि जरूरत गरीब और अमीर के बीच लड़ाई लड़ने की है। आरक्षण हो तो जात-पात के नाम पर न होकर आर्थिक  आधार पर होना चाहिए। देश में आरक्षण के नाम पर प्रतिभाओं का दमन हो रहा है। अयोग्य युवा आगे बढ़ रहे हैं और प्रतिभाशाली युवा पिछड़ रहे हैं। इससे कहीं न कहीं देश का विकास भी प्रभावित हो रहा है। अब समय आ गया है की नई पीढ़ी के भविष्य के लिए हम लोगों को भ्रष्ट व्यवस्था को बदलना ही होगा।