गन्ना किसानों का बकाया देने के बहाने केंद्र सरकार चीनी मिलों को
7200 करोड़ रुपए का कर्जा ब्याज मुक्त उपलब्ध कराने जा रही है। बताया जा रहा
है कि मिलों पर जो 12 फीसद ब्याज लगेगा, उसमें से सात फीसद गन्ना विकास
कोष तथा पांच फीसद केंद्र सरकार वहन करेगी। उत्तर प्रदेश में गन्ने की
पेराई शुरू करने के लिए सरकार पहले ही प्रवेश व क्रय कर के अलावा कमीशन छूट
की बात मानकर निजी चीनी मिलों को राहत दे चुकी है। ऐसे में प्रश्न उठता
है कि यह सब कुछ मिलों के लिए ही क्यों ? गन्ना किसानों के लिए सरकारों ने
क्या किया ?
मिलों की जिद के सामने तो सरकारें झुक गईं पर क्या किसानों का
कई सालों का बकाया अब वास्तव में ही उन्हें मिल जाएगा ? मिल भी गया तो
उन्हें बकाए पर ब्याज क्यों नहीं ? वैसे भी कर्जा मिलने के बाद भी मिलें
किसानों को बकाया कब देंगी कहा नहीं जा सकता। अक्सर देखा जाता है कि
सरकारों को मिलों की समस्याएं तो दिखाई देती हैं पर किसानों की नहीं ?
किसानों का बकाया देने में असमर्थता व्यक्त करने पर केंद्र सरकार मिलों को
तो ब्याज मुक्त कर्जा उपलब्ध करा रही है पर किसान समय पर कर्ज न चुकाए तो
उसे तीन की जगह 12 फीसद ब्याज भरना पड़ता है और न भर पाये तो उसकी आरसी काट
दी जाती है। जेल में ठूंस दिया जाता है। यही सब वजह है कि परेशान होकर किसान
आत्महत्या कर रहे हैं। यदि किसानों के बेटे नौकरी न कर रहे हों तो
आत्महत्या की संख्या और बढ़ जाए। हालात ऐसे हैं कि किसान दयनीय जिंदगी
जीने को मजबूर है और मिल मालिकों के लिए हर सुविधा उपलब्ध है। दरअसल कर्षि
मंत्री शरद पवार भी कई चीनी मिलों के मालिक हैं।
अब तो ऐसा लगने लगा है कि
सरकारें जनता के लिए नहीं कार्पोरेट घरानों के लिए काम कर रहीं हैं। करें
भी क्यों नहीं। कभी राजनीतिक दल जनता से चंदा लेकर चुनाव लड़ते थे और अब कार्पोरेट
घराने चुनाव लड़ाते हैं। जब चुनाव लड़ाएंगे, जिताएंगे तो कैश भी कराएंगे। यही
हो रहा है देश में। विधानसभा व लोकसभा में पहुंचने वाले लोग जनप्रतिनिधि न
होकर कार्पोरेट प्रतिनिधि बनकर रह गए हैं।
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