Wednesday 12 January 2022

विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती बनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटें


चरण सिंह राजपूत 

ले ही पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में फिलहाल रैलियों पर रोक लगी हो पर सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसार से चुनावी समर में हैं। पूरे देश की निगाहें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है। हर बार की तरह इस बार पहला चरण पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही शुरू हो रहा है। यह भी जमीनी हकीकत है कि हर चुनाव का माहौल पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बनता है। २०१७ के विधानसभा चुनाव में तो भाजपा को मुजफ्फरनगर दंगे और मोदी लहर का फायदा मिल गया था। इस बार ऐसा कोई फायदा भाजपा को मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। ऊपर से किसान आंदोलन के चलते भाजपा के खिलाफ बना माहौल। रालोद और सपा के गठबंधन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की मुश्किलेें बढ़ा दी हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ना किसान के रूप में जाना जाना जाता है। नये कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल तक चले किसान आंदोलन से पश्चिमी उत्तर प्रदेेश के समीकरण बदले हैं। वैसे भी किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत लगातार भाजपा के खिलाफ आग उगल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही भारतीय जनता पार्टी दोबारा सत्ता वापसी का दम भर रही हो पर यह योगी आदित्यनाथ भी जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हवा उसके खिलाफ है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद-सपा गठबंधन भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है। दरअसल  किसान आंदोलन और रालोद और सपा के गठबंधन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों और जाटों का रुख भाजपा के खिलाफ जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित वोटबैंक बसपा और आजाद समाज पार्टी के माने जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव में 14 फरवरी को 55 सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों पर मुस्लिम और दलित आबादी काफी प्रभावकारी हैं। दूसरा चरण तो भाजपा के लिए और चुनौतीपूर्ण है।  सपा और रालोद गठबंधन के चलते मुस्लिम और जाट वोटर भाजपा को सत्ता से दूर रखने में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के मददगार साबित हो सकते हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव  की समीक्षा करें तो मुरादाबाद, सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा जैसे पश्चिमी यूपी के जिले और मध्य यूपी के बदायूं और शाहजहांपुर जिलों में भाजपा को अधिकतम सीटें 55 में से 38 मिलीं थी। इन चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों के साथ ही मोदी लहर का भी फायदा मिला था। नतीजों को देखें तो सपा 2017 में इस क्षेत्र में 15 सीटें जीती थीं, सपा के साथ गठबंधन में रही कांग्रेस ने दो मिली थी और बसपा का खाता नहीं खुल सका था। इस दौरान कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे और वे सभी सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में थे। यह भी जमीनी हकीकत है कि 2017 और 2022 में चुनावी माहौल अलग दिखाई पड़ रहा है। 2017 का विधानसभा चुनाव मुजफ्फरनगर दंगे और मोदी लहर के बल पर जीता गया था यह चुनाव योगी सरकार के कामों का मूल्यांकन को लेकर होगा। पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का असर अलग से। लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ हुई हिंसा भी भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण से विपक्ष विशेषकर सपा और रालोद को फायदा होता दिखाई दे रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश चुनाव शुरू होने से किसानों की नाराजगी का बीजेपी को नुकसान और गैर बीजेपी दलों खासकर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को सियासी फायदा होता दिखाई दे रहा है। मुलायम सिंह और अजीत सिंह के समय से ही सपा और रालोद के बिगड़ते और बनते गठबंधन के बाद अब उनके बेटों अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने गठबंधन किया है। ऐसे में इन विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद की दोस्ती की भी परख होगी। यह भी जमीनी हकीकत है कि मुजफ्फरनगर दंगे के बाद रालोद से छिटका वोट बैंक किसान आंदोलन के बाद एकजुट माना जा रहा है। दोनों पार्टियों के समर्थक मुजफ्फरनगर की खलिश भुलाकर साथ तो आए पर ये किसान चुनाव में क्या गुल खिलाएंगे यह तो समय ही बताएगा। चौधरी जयंत के लिए भी यह पहला चुनाव है जो अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के बिना लड़ रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले-दूसरे और तीसरे चरण में चुनाव संपन्न हो जाएगा। चुनाव के पहले चरण में 10 फरवरी को वेस्ट यूपी के 11 जिलों शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ हापुड़, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा आगरा और अलीगढ़ की 58 सीटों पर मतदान होगा तो  दूसरे चरण में  नौ जिले सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर की 55 सीटों और तीसरे चरण में वेस्ट यूपी के जिलों कासगंज, हाथरस, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा समेत प्रदेश के दूसरे जिले औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, ललितपुर, फर्रुखाबाद, कन्नौज की सीटों पर वोट पड़ेंगे।
2017 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल को छोड़कर ज्यादातर सीटों पर कमल खिला था। वेस्ट यूपी में मेरठ, सहारनपुर अलीगढ़, मुरादाबाद और बरेली मंडल माना जाता है। 2017 में मेरठ मंडल में 28 में से 25 सीटें बीजेपी जीती थी और सपा, बसपा, रालोद के हिस्से में तीन सीटें आई थीं। सहारनपुर मंडल में 16 सीटों में से 12 बीजेपी, कांग्रेस और सपा के हिस्से में चार सीटें आई थीं। मुरादाबाद मंडल में 27 सीटों में से 14 पर बीजेपी जीती थी, 13 पर सपा, बसपा और अन्य ने जीत दर्ज की थी। बागपत जिले में रालोद विधायक छपरौली से जीता था, लेकिन बाद में वह भी बीजेपी में शामिल हो गए थे।
दरअसल, 2014 और 2019 के लोकसभा साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को बीजेपी का गढ़ माना जाने लगा था।  2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव  की अगुआई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन 54 सीटें जीत सका। इसके अलावा प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी  और भाजपा  के बीच माना जा रहा है। सपा अखिलेश यादव के चहेरे पर तो भाजपा  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीके चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है।
यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिर से 2017 जैसी जीत हासिल करने के लिए भाजपा पूरा जोर लगा रही है। हाल ही में पीएम मोदी ने शाहजहांपुर में एक महत्वाकांक्षी 594 किलोमीटर गंगा एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखी थी। सीएम योगी भी कुछ हफ्ते पहले उन विधानसभा सीटों का दौरा किया जहां 2017 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेरठ रैली और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अलीगढ़ और सहारनपुर रैली पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल बनाने के लिए की गई थी। हालांकि भाजपा के दिग्गज दिल्ली से लेकर लखनऊ तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों को लेकर मंथन कर रहे हैं।

Saturday 26 June 2021

किसान ही नहीं जनता के हाथ की रोटी भी छीनने का षड्यंत्र है नये किसान कानून



नये किसान कानून वापस कराने के लिए दिल्ली बोर्डर पर आंदोलित भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के आह्वान पर किसान देश में विभिन्न राज्यों के राजभवनों का घेराव कर रहे हैं। गाजीपुर बार्डर के किसानों को दिल्ली के उप राज्यपाल से न मिलने दिये जाने से नाराज राकेश टिकैत ने दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। हालांकि इसी बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर आंदोलन खत्म कर किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रण कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि मोदी सरकार समस्या का हल चाहती है तो फिर  7 महीने से किसान सर्दी, बरसात और गर्मी झेलने को क्यों मजबूर हैं।

दरअसल किसान नये किसान कानूनों को वापस कराकर नये सिरे से कानून बनाने की बात कर रहे हंै। एमएसपी खरीद पर कानून चाह रहे हैं। मोदी सरकार है कि किसान कानून वापस लेने और एमएसपी खरीद पर कानून बनाने पर कोई बात करने को तैयार ही नहीं। वह बात दूसरी है कि मोदी सरकार आंदोलन को राजनीतिक बताकर खत्म करने के लिए हर हथकंडा अपना रही है। मोदी सरकार के समर्थक तो लगातार आंदोलन को चीन, पाकिस्तान से फंडिंग का भी आरोप लगा रहे हैं। गत दिनों तो सोनीपत और गाजियाबाद के आम लोगों की भी किसानों को उठने की चेतावनी मोदी सरकार ने दिलवाई। इन बस के बीच प्रश्न उठता है कि क्या किसान आंदोलन बिना वजह हो रहा है ? यदि ऐसा है तो मोदी सरकार 15 में से 12 प्वाइंट वापस लेने को तैयार क्यों हो गई ?
यह मोदी सरकार का बनाया गया माहौल ही है कि महानगरों के ग्लैमर की चकाचौंध में रहने वाले काफी लोग अपने बाप-दादा का संघर्ष भूल आंदोलित किसानों को आतंकवादी, नक्सली, देशद्रोही और नकली किसान न जाने क्या-क्या उपाधि दे रहे हैं। जो लोग आंदोलित किसानों को देश समाज और अपना दुश्मन समझ रहे हैं वे भली भांति समझ लें कि यदि ये नये किसान वापस नहीं हुए तो किसान तो अन्न उपजा कर अपने बच्चों को पाल लेंगे पर महानगरों में रह रहे लोगों को रोटी भी नहीं मिलेगी। सारा खाद्यान्न विदेश में जाएगा । देश में तो खाद्यान्न से प्रोडक्ट तैयार होंगे। जो महंगे दाम पर मिलेंगे। अभी भी समय है जमीनी हकीकत समझकर मोदी सरकार की कॉरपोरेट घरानों को बढ़ावा देने की नीति को पहचानो। बाहर निकलो हिन्दू-मुस्लिम के खेल से। आज के हालात में पहली प्राथमिकता अपने को जिंदा रहने की होनी चाहिए। यह बात कम से कम कोरोना की दूसरी लहर से प्रभावित होने वाले लोगों को तो समझ लेनी चाहिए। ये जितने भी स्वयंभू हिन्दुत्व के ठेकेदार बने घूम रहे हैं ये हिन्दुत्व के नहीं सत्ता के ठेकेदार हैं, इन्हें हिन्दुत्व के नाम पर बस हिन्दुओं का वोट चाहिए। क्या बेरोजगार हिन्दू नहीं हो रहे हैं ? क्या कोरोना कहर में हिन्दू नहीं मरे हैं ? क्या बेरोजगारी के चलते हिन्दू युवा आत्महत्या नहीं कर रहे हैं ? क्या इन ठेकेदारों ने किसी गरीब हिन्दू की बेटी की शादी में कोई योगदान दिया ? क्या इन्होंने किसी गरीब हिन्दू के बेटे की पढ़ाई में कोई योगदान दिया ? ये लोग हिन्दू राष्ट्र का भी दिखावा करते हैं। संविधान के होते लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संभव नहीं है। यह ये लोग भी भलीभांति जानते हैं। ये सब हिन्दुओं को भ्रमित करन के लिए किया जाता रहा है।
निश्चित रूप से देश में विपक्ष नाकारा है पर क्या हम सत्ता में बैठे नेताओं को लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की छूट दे दें ? जरूरत ठंडे दिमाग से सोचने की है। जो सरकार देश में पूंजपीतियों को खाद्यान्न स्टॉक की छूट दे सकती है, वह देश को बेच भी सकती है। कांट्रेक्ट फार्मिंग किसान को उसके ही खेत में बंधुआ मजदूर बनाने का षड्यंत्र है। जब बीमा कंपनियां किसान को ठग लेती हैं तो कल्पना करो, जो कंपनियां किसान की जमीन पर खेती करेंगी वह क्या-क्या करेंगी ? मोदी सराकर भोले-भाले किसानों को कॉरपोरेट संस्कृति का दिखावा दिखाकर कॉरपोरेट घरानों के यहां बंधुआ बनाना चाहती है। भाकियू नेता राकेश टिकैत में सौ कमियां होंगी पर वह आज किसान की जमीनी लड़ाई लड़ रहे हैं। नये किसान कानून किसान ही नहीं देश की जनता के गले में मौत का फंदा है। देश में एक किसान ही बचा है जिस पर कॉरपोरेट घरानों की कब्जा नहीं है। मोदी सरकार ने इसकी की व्यवस्था कर दी है। यह किसान ही नहीं आम लोगों को भी समझ लेना चाहिए।

Thursday 17 June 2021

भाजपा के लिए आफत बनते जा रहे राकेश टिकैत



तीन नये किसान कानूनों को वापस कराने के लिए दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत भाजपा के लिए लगातार आफत बनते जा रहे हैं। अब राकेश टिकैत ने 26 जून आपातकाल की वर्षगांठ को लोकतंत्र बचाओ किसान बचाव दिवस मनाने का ऐलान किया है। 26 जून को किसान देशभर के सभी राजभवनों का घेराव करेंगे। देश में अघोषित आपातकाल मानते हुए किसान 26 जून को मोदी सरकार के खिलाफ फिर से हुंकार भरेंगे। मतलब जहां भाजपा 26 जून को कांग्रेस को घेरने क कोशिश करेगी वहीं उसे किसानों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ेगा। राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को खुली चेतावनी दे दी है कि अब सरकार से बिना शर्त बातचीत होगी।

दरअसल राकेश टिकैत विपक्ष के नेताओं के साथ लगातार संपर्क में हैं। पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, उत्तर प्रदेश की कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी से उनकी विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हो रही है। वैसे भी 26 मई नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के दिन को काला दिवस मनाने के किसानों के कार्यक्रम को कांग्रेस, सपा समेत 1२ विपक्षी राजनीतिक दलों ने समर्थन देकर राकेश टिकैत का कद बढ़ा दिया था। अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और पंजाब में होने वाले विधानसभाचुनाव में विपक्ष किसानों के माध्यम से भाजपा को घेरने की रणनीति बना रहा है। वैसे तो किसान आंदोलन का असर पूरे देश में है पर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में इसका असर प्रमुखता से देखा जा रहा है। प. बंगाल के विधानसभा चुनाव पर भी अप्रत्यक्ष रूप से किसान आंदोलन का असर पड़ा है। पंजाब निकाय चुनाव में तो भाजपा ने बुरी तरह से मुंह की खायी थी। ऐसे में भाजपा को यह चिंता सता रही है कि नये किसान कानूनों को लेकर यदि किसानों का आक्रोश चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में फूड पड़ा तो न केवल इन विधानसभा चुनाव बल्कि 2024 में होने वाले आम चुनाव में भी भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। भाजपा का विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की चिंता सता रही है। क्योंकि राकेश टिकैत का प. उत्तर प्रदेश किसानों पर अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को बनाये रखने के लिए भाजपा को किसानों को साधना बहुत जरूरी है। विशेष रूप से प. उत्तर  प्रदेश किसानों को। प. उत्तर प्रदेश में वैसे तो खेती के पेशे से लगभग सभी जातियां जुड़ी हुई हैं पर जाट प्रमुखता से माने जाते हैं। प. उत्तर प्रदेश का किसान मतलब जाट। मौजूदा हालात में  भाजपा के लिए जाट वोटबैंक बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कभी चौधरी चरण सिंह की वजह उनके बेटे अजीत सिंह का साथ देते आ रहे जाट 2017 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों के चलते लामबंद होकर भाजपा के साथ आ गये थे। मौजूदा हालात में जाट नये किसान  कानूनों के विरोध में गाजीपुर बार्डर पर बैठे हैं। प. उत्तर प्रदेश के जाटों पर भाकियू का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। आज की तारीख में जाटों पर राकेश टिकैत का प्रभाव माना जा रहा है। यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री संजीव बालान को कई जगहों पर जाटों का ही विरोध झेलना पड़ा। ऐसे में राकेश टिकैत की मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भाजपा के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन चुकी है ।
दरअसल प. उत्तर प्रदेश में जाटों का बड़ा दबदबा माना जाता है। यह माना जाता है कि चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, जाट मतदाता जिधर गए उसी का बेड़ा पार हो गया। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव इसका ताजा उदाहरण है। इससे भी पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जाटों ने अपना जनादेश कुछ इस तरह दिया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में आ गईं। यह सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा। यहां पर भाजपा की एकतरफा जीत रही। सपा-बसपा और रालोद का मजबूत गठबंधन भी पिट गया। वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी 6 से 8 फीसद के आसपास है, लेकिन पश्चिमी यूपी में जाट 17 फीसद से ज्यादा हैं। खासतौर से सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी और फिरोजाबाद में जाटों की ठीकठाक आबादी है। ऐसे में आगामी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी दलों ने जाट वोटों को लेकर सक्रियता बढ़ा दी है। जाटों को लुभाने में राकेश टिकैत को साधना मुख्य माना जा रहा है।
दरअसल, आगामी 26 जून को तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन को पूरे सात महीने हो जाएंगे। 26 जून को मोदी सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन भाजपा की चिंता बढ़ाने वाला है। वैसे भी गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन पर भारतीय जनता पार्टी भी निगाह बनाए हुए है। राकेश टिकैत पर भाजपा की खास नजर है। सिर्फ उत्तर भारत के कुछ राज्यों तक सिमटे राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के बड़े नेता के तौर पर शुमार किए जाने लगे हैं। नये किसान कानूनों को लेकर  2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को लामबंद होकर वोट करने वाले जाट 2022 के चुनाव में भाजपा के खिलाफ जा सकते हैं जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है।

Wednesday 16 June 2021

राम मंदिर निर्माण में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी जा रहा है भाजपा के पक्ष में



विपक्ष को ही नहीं हर सेकुलर व्यक्ति को यह समझ लेना चाहिए कि जब हम भाजपा समर्थकों को अंधभक्ति की संज्ञा देते हैं तो किसी भी तरह के आरोप का उन पर कोई असर नहीं पडऩे वाला है। आज की तारीख में न ही विपक्ष के आरोपों को कोई जिम्मेदार तंत्र गंभीरता से ले रहा है। मोदी सरकार की गलत नीति के चलते बेरोजगार होने के बावजूद, कोरोना महामारी में सरकार की विफलता के चलते अपनों के खोने के बावजूद , पेट्रो पदार्थांे की बेहताशा वृद्धि के बावजूद, गैस सिलेंडर की सब्सिडी बिना बताये खत्म करने के बावजूद जो लोग मोदी और योगी सरकार के खिलाफ कुछ सुनने को तैयार नहीं उनके लिए कोई आरोप बेकार है। राम मंदिर निर्माण मामले में तो वे कुछ सुनने को तैयार नहीं। विपक्ष यह भूल रहा है कि भक्तों की नजरों में राम मंदिर निर्माण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निगरानी में हो रहा है और ये लोग मोदी और योगी को अपनी भगवान समझते हैं। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कराते हुए सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विवादित जमीन को दिलाने का आदेश नहीं दिलाया है ? क्या मोदी के हस्तक्षेप क चलते तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा में नहीं भेजा गया है ? भक्तों को बस अयोध्या में राम मंदिर चाहिए। इसके लिए वे करोड़ो नहीं बल्कि अरबों का भ्रष्टाचार भी झेलने को तैयार हैं। संजय सिंह जिन लोगों के चंदे में भ्रष्टाचार होने पर मुखर हुए, उन्हें लोगों ने उनके आवास पर हमला कर दिया।

राम मंदिर निर्माण मामले में भाजपा, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद यह कहते-कहते नहीं थकते थे कि मंदिर निर्माण की सभी सामग्री तैयार है। राजस्थान से मिट्टी लाकर मंदिर के पीलर बना दिये गये हैं। बस उठा-उठाकर लगाने हैं। विपक्ष यह समझने को तैयार नहीं कि जिस देश में लाखों बच्चे भूखे पेट सो जाते हैं। जिस देश में राज लाखों लोग भूखे मर जाते हैं। जिस देश में कोरोना महामारी में इलाज के अभाव में लोगों ने दम तोड़ दिया उसी देश में राम मंदिर निर्माण के लिए 19 दिन में 2100 करोड़ रुपये इकट्ठे हुए हैं। मतलब चंदा इकट्ठा करना था 1100 करोड़ और इकट्ठा हो गया 2100 करोड़। यह तो तब है जब चंदा इकट्ठा करने में भी कितने घोटाले हुए। मतलब राम मंदिर निर्माण मामले में मंदिर समर्थक कोई भी भ्रष्टाचार सुनने को तैयार नहीं। यदि ऐसे घोटाले नहीं होंगे तो कहां से आरएसएस का खर्चा चलेगा ?  कहां से विहिप का और कहां से दूसरे हिन्दू संगठन तैयार होंगे ? यह सब चंदे का ही तो खेल है। क्या यह खेल अकेले चंपतराय ने किया होगा ? चंदे में से ऐेसे ही तो दूसरे मदों के लिए पैसे बचाये जाते हैं।
राम मंदिर निर्माण में जमीन घोटाले पर विपक्ष अपना समय बर्बाद कर रहा है। विपक्ष खुद ही उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को सुलगा दे रहा है। भाजपा यही ता चाहती है कि अगले साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत कई राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण का मुद्दा अपना असली स्वरूप प्राप्त कर ले। भाजपा को उत्तर प्रदेश ही नहीं 2024 का लोकसभा चुनाव भी राम मंदिर निर्माण के नाम पर जीतना है। विपक्ष यह भी समझ ले कि राम मंदिर निर्माण में आरएसएस और भाजपा की रणनीति इस स्तर की है कि यदि जमीनी घोटाले में भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध भी हो जाए तो वे चंदा देने वाले लोगों को ही ट्रस्ट के पक्ष में खड़ा कर देंगे।
विपक्ष यह समझने को तैयार नहीं कि  राम मंदिर निर्माण मामले में पहली बार भ्रष्टाचार नहीं हुआ है ? जब से भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया है तब से चंदा तो ही इकट्ठा किया है। क्या किसी ने कोई हिसाब मांगा ?  भाजपा के समर्थक तो चंदा देते ही इसलिए हैं कि वे हिन्दुत्व को आगे बढ़ा रहे हैं।
जमीनी हकीकत तो यह है कि देश में राम नाम का शब्द आस्था नहीं राजनीतिक शब्द बनकर रह गया है। जहां भाजपा ने राम मंदिर निर्माण के नाम पर सत्ता हासिल की वहीं अब विपक्ष राम मंदिर निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए माहौल बनाने में लगा है। जहां कभी लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए रथयात्रा निकालकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया था वहीं अब आम आदमी पार्टी राम मंदिर  निर्माण में घोटाले के नाम पर उत्तर  प्रदेश में जमीन तलाशने में लग गई है तो वहीं कांग्रेस खोई हुई जमीन को पाने में। उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका गांधी ने ट्रस्ट के लोगों को प्रधानमंत्री का करीबी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट  से मामले की जांच कराने की मांग की है। मौजूदा हालात में विपक्ष को चाहिए वह राम मंदिर निर्माण मामले में बस चुप ही रहे। उसे बस यह समझ लेना चाहिए कि जहां राम और राम मंदिर का नाम आएगा वहां उसका फायदा भाजपा को मिलेगा।  जमीनी हकीकत तो यह है कि राम नीति में न तो कभी भाजपा की आस्था रही है न ही राम मंदिर निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वालों की। राम नाम पर तो बस सत्ता हासिल करने का हथियार बनकर रह गया है। राम मंदिर निर्माण में आरोप है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 10 मिनट पहले खरीदी गयी दो करोड़ की जमीन का रजिस्टर्ड एग्रीमेंट 18. 5 करोड़ रुपये से करा लिया। अरे भाई क्या ये पैसे ये लोग अपनी जमीन बेचकर लाये हैं ? राम भक्तों ने दिया और ये उड़ा रहे हैं। इनके अपने भी तो खर्चे हैं। अरे भाई राम मंदिर निर्माण के लिए 2100 करोड़ का चंदा तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने बाद आया है। इससे पहले जमा किये गये चंदे का तो कोई हिसाब ही नहीं। कितना घोटाला करेंगे। लोग तो और चंदा देने को तैयार हैं। बस भगवान राम का मंदिर बन जाए। क्यों समय बर्बाद कर रहे हो। रोजी-रोटी और महंगाई का मुद्दा उठाओ। उनका पैसा, उनके लोग। मंदिर भी वे अपना ही मानते हैं। जब मुद्दा उठाने में सियासत है तभी तो टीवी चैनलों पर एंकर चंदे की रशीद मांग ले रहे हैं।
जमीनी हकीकत यह है कि आज की तारीख में हर राजनीतक दल सत्ता प्राप्त करना चाहता है। जमीनी मुद्दों पर कोई काम करने को तैयार नहीं। उत्त प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी सपा क्या कर रही है ? बसपा क्या कर ही है ? बस हर कोई दल भावनात्मक मुद्दे के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहता है। क्या किसी सांसद या विधायक ने सांसदों या विधायकों को मिलने वाली सुविधाओं और पेंशन को मुद्दा बनाया है ? क्या किसी जनप्रतिनिधि ने सांसदों और विधायकों की होने वाली वेतनवृद्धि के खिलाफ आवाज उठाई है ? क्या किसी सांसद और विधायक ने जनप्रतिनिधियों के साथ ही संसद और विधानसभा में होने वाली फिजूलखर्ची को मुद्दा बनाया है ? नहीं न। सभी राजनीतिक दलों को सत्ता दे दो। आज की तारीख में कोई भी राजनीतिक दल या नेता जनता की पीड़ा को समझने को तैयार है। विपक्ष तो पूरे देश में नाकारा है। लोग व्यक्तिगत स्तर पर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।