Thursday 23 January 2014

तो हम कैसे मनाए गणतंत्र दिवस ?

    26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। दिल्ली में हम अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगे। विभिन्न प्रदेशों की झलकियां निकाली जाएंगी। हमारे जवान तरह-तरह के करतब दिखाएंगे। राजपथ पर परेड भी निकाली जाएगी। पूरा राजपथ वीआईपी लोगों से भरा होगा। औपचारिकता के लिए बहादुर बच्चों को भी पुरस्कृत किया जाएगा, पर क्या देश के हालात ऐसे हैं कि हम राष्ट्रीय पर्व गर्व के साथ मना सकें ? क्या देश के किसान-मजदूर, आम आदमी की स्थिति ऐसी है कि राष्ट्रीय पर्व पर हम खुश हो सकें ? जिन उद्देश्यों को लेकर क्रांतिकारियों ने देश को आजाद कराया था क्या वे उद्देश्य हमने पूरे कर लिए हैं ? या फिर हम उन उद्देश्यों के प्रति वास्तव में ही गम्भीर हैं ?
     क्या हमें इस बात का एहसास है कि जिन लोगों कि वजह से हम यह गणतंत्र दिवस मना रहे हैं,  उन लोगों को देश को आजाद कराने के लिए कितना बलिदान देना पड़ा, उनके परिवार ने देश के लिए कितना त्याग किया ? देश की आजादी में कितने लोगों को कुर्बानी देनी पड़ी, कितनी मांओं की कोख सुनी हो गई। कितने युवा फांसी के फंदे से लटका दिए गए। कितनी बहने विधवा हो गईं। क्या देश को चलाने का जिम्मा लिए बैठे राजनेताओं को तनिक भी देश की आजादी की कीमत का एहसास है ? क्या जिन उद्देश्यों के लिए देश का संविधान लिखा गया था, हम उन उद्देश्यों की ओर बढ़ रहे हैं ? क्या हम संविधान पर खरा उतर रहे हैं ? क्या वोटबैंक की राजनीति ने देश का बंटाधार नहीं कर दिया है ? क्या देश के नेताओं ने लोकतंत्र को राजतंत्र बनाकर नहीं रख दिया है ? क्या देश के नौनिहालों को हम गणतंत्र की परिभाषा समझने में सफल हो पाए हैं ? यदि नहीं तो काहें का गणतंत्र दिवस, काहें का स्वतंत्रता दिवस।
      सच्चाई तो यह है कि देश की भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था को बदलने के लिए आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की जरूरत है। देश फिर से बलिदान, त्याग, समर्पण और कुर्बानी मांग रहा है। आज फिर देश को सरदार भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, खुदीराम बोस, राम मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, लोक नायक जयप्रकाश की जरूरत है। अब इस सोच से काम नहीं चलेगा कि भगत सिंह पैदा तो हो पर पड़ोसी के घर में, अब अपने घर में ही एक भगत सिंह तैयार करना होगा। बंदूक वाला भगत सिंह नहीं बल्कि कलम वाला भगत सिंह, विचारों वाला भगत सिंह, वैचारिक क्रांति लाने  वाला भगत सिंह।
       बहुत कम लोगों को पता है कि भगत सिंह एक पत्रकार भी थे। प्रताप अखबार में उन्होंने काफी दिनों तक ख़बरों का संपादन किया था। वे समय-समय पर सामाजिक हालात पर लेख भी लिखते रहते थे। उन्होंने कार्ल मार्क्स और लेनिन पर बहुत अध्धयन किया था। इन जैसे क्रांतिकारी देश के युवाओं में ही हैं। बस उनके अंदर देशभक्ति पैदा करने की जरूरत है। जुनून पैदा करने की जरूरत है। आत्मविस्वास जगाने की जरूरत है। तब हमने अंग्रेजों को देश से भगाया था, अब देश के गद्दारों का भगाना है। भ्रर्ष्टाचारियों को भगाना है। देश को लूट रहे लोगों को भगाना है। देश को बांटकर राजनीति करने वाले नेताओं को भगाना है।  धर्म-जात-पात और परिवारवाद-वंशवाद के नाम पर हो रही राजनीति को खत्म करना है।  आम आदमी की व्यवस्था लागू करनी है।

Friday 17 January 2014

आप को आत्ममंथन की जरूरत

    आप में आजकल जिस तरह से बगावत के सुर उभरे हैं, उससे यह साबित होता है कि आप में कुछ स्वार्थी नेता शामिल कर लिए गए थे। इसमें दो राय नहीं कि आप के जबर्दस्त उदय से कांग्रेस व भाजपा के अलावा लगभग सभी दलों में बेचैनी है पर आप नेताओं को भी कार्यकर्ताओं के प्रति होने वाले व्यवहार के बारे में आत्ममंथन की जरूरत है। कुछ दिनों से देखा जा रहा है कि काफी संख्या में लोग रिटायर्डमेंट लेकर आप में शामिल हो रहे हैं। आप को यह भी देखना होगा कि पार्टी से युवा किस स्तर पर जुड़ रहे हैं। संगठन का क्या हाल है, प्रदेश और जिला स्तर पर कार्यकर्ता किस स्तर पर अच्छे छवि के लोग पार्टी से जोड़ रहे हैं या कहीं गलत छवि के लोग तो संगठन में घुस नहीं जा रहे हैं। आप नेताओं ने कितने अच्छे लोगों से संपर्क साधा है या विभिन्न दलों के अच्छी छवि के कितने नेताओं को पार्टी में शामिल होने का अनुरोध किया है।
     मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गए अन्ना आंदोलन के बाद व्यवस्था परिवर्तन के लिए आम आदमी पार्टी नामक संगठन बनाकर अरविन्द केजीवाल ने अपनी टीम के साथ जो आंदोलन छेड़ा है उससे देश में आप के पक्ष में अच्छा माहौल बन रहा है। पर आप को यह भी देखना होगा कि आप की लड़ाई उन नेताओं से है जो सत्ता के लिए कुछ भी करने को आतुर हैं। उन नेताओं से है जिनकी उम्र राजनीति करने में निकल गई।
      मैंने अब तक जो महसूस किया है उससे इस निस्कर्ष पर पहुंचा हूं कि अब तक जो लोग आप से जुड़े हैं, उनमें से अधिकतर खुद आप नेताओं से मिले हैं। यह किसी भी संगठन के लिए अच्छी बात है पर आप को अब राजनीति के माध्यम से व्यवस्था परिवर्तन करना है तो स्वाभाविक है कि संगठन भी मजबूत करना होगा। आज के हालात में आप के पांच-छह नेताओं के कंधों पर पार्टी का बोझ दिखाई दे रहा है, इस भार को अन्य कार्यकर्ताओं में बांटने की जरूरत है। प्रदेश और जिला पर भी संगठन पर ध्यान देने की जरूरत है।
     आप में अरविन्द केजरीवाल, योगेंद्र यादव, संजय सिंह,  कुमार विस्वास, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय और हाल में नोकरी छोड़कर पार्टी  में आये आशुतोष के आलावा संगठन में अन्य चेहरे निकल कर नहीं आ पा रहे हैं। दिग्गजों से टक्कर लेने के लिए आप को अन्य दलों के ऐसे नेताओं को भी पार्टी में लाना चाहिए जो संघर्ष करने के बावजूद बैकफुट पर हैं, पार्टी में घुटन महसूस कर रहे हैं। आप को यह भी समझना होगा जो नेता स्वाभिमानी और ईमानदार हैं ये खुद चलकर आप नेताओं के पास नहीं जाएंगे, आप नेताओं को ही ऐसे नेताओं को चिन्हित कर उनसे देश समाज के लिए आप से जुड़ने के लिए अनुरोध करना होगा।

Friday 10 January 2014

होने लगा है केजरीवाल के व्यवस्था परिवर्तन के प्रयास का असर

      व्यवस्था परिवर्तन के लिए अन्ना आंदोलन के बाद ब्यूरोक्रेट के बाद समाजसेवी बनने वाले अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाकर मूल्य पर आधारित सचाई और ईमानदारी की राजनीति से व्यवस्था परिवर्तन का जो बीड़ा उठाया था, उसमें वह काफी हद तक सफल हो रहे हैं। जो लोग व्यवस्था से निराश हो चुके थे, उनमें एक आशा की किरण जन्म ले रही है,  राजनीति से घृणा करने वाले लोगों को अब राजनीति अच्छी लगने लगी है। अब तक गुंडे, बाहुबलियों की मानी जानी वाली राजनीति में अच्छे और शरीफ लोग भी आने लगे हैं। किसी भी तरह से पैसा कमाकर चुनाव लड़ने की परिपाटी पर अंकुश लग रहा है। जनता के दिए गए चंदे से भी चुनाव लड़ा जाने लगा है। राजनीतिक दल और कुछ कारपोरेट घरानों के गठबंधन से चल रही लूटखसोट बंद होने की संभावना बलवती हुई है। दिल्ली में  आप का चुनाव लड़ना इसका प्रमाण है।
     जो महिलायें राजनीतिक खबरों में दिलचस्पी नहीं लेती थी, वे अब राजनीति पर चर्चा करते देखी जा रही हैं। जो युवा फेसबुक और मौजमस्ती की बात करते देखे जाते थे वे अब केजरीवाल के राजनीति करने के तरीके पर चर्चा कर रहे हैं।  जो युवा अब तक वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल हो रहे थे, वे अब राजनीति में भी भविष्य तलाशने लगे हैं। वंशवाद की राजनीति पर अंकुश लगने की उम्मीद जगने लगी हैं। दिल्ली में जिस तरह  भ्रष्टाचार पर अंकुश लग रहा है, उससे अन्य प्रदशों में भी आस जगने लगी हैं। केजरीवाल की यह राजनीति लोकसभा चुनाव में गुल खिलाने वाली है। दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद आम आदमी के हित में जो प्रयास हो रहे हैं, उनका असर पूरे देश में हो रहा है।
       जो राजनीतिक दल किसी की सुनने को तैयार नहीं होते थे, उन पर अरविन्द केजरीवाल की सादगी का गजब का असर पड़ रहा है। भाजपाई और सपाई आजकल टोपी से सुसस्जित दिखाई दे रहे हैं। लगभग सभी दल आम आदमी की बात करते देखे जा रहे हैं, कांग्रेस में राहुल गांधी के बाद दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश ने अरविन्द केजरीवाल के राजनीति करने के तरीके की तारीफ की है। भाजपा का मार्गदर्शन करने वाले संघ ने भी आप को गंभीरता से लेने की बात की है। कहना गलत न होगा कि केजरीवाल ने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी है।