New Generation and Corona: कोरोना वायरस का प्रकोप आखिर प्राकृतिक आपदा है या फिर जैविक हथियार? यदि प्राकृतिक आपदा है तो यह समाप्त क्यों नहीं हो पा रहा है? जैविक हथियार है तो फिर इसे किसने बनाया? अब सबसे बुरी हालत भारत की है। आज चर्चा इसी पर।
New Generation and Corona: क्या कर रहे हैं अंतरराष्ट्रीय संगठन?
New Generation and Corona: कोरोना वायरस तरह तरह के रूप धारण कर खतरनाक रूप लेता जा रहा है। दुनिया के सामने बड़ा प्रश्न है कि आखिर यह महामारी खत्म कब होगी? जिस तरह से दुनिया इस महमारी के सामने बेबस है, उससे लोगों के मन में इसकी उत्पत्ति और इलाज का प्रश्न घर करता जा रहा है।
आखिर यह प्राकृतिक आपदा है या फिर जैविक हथियार? यदि प्राकृतिक आपदा है तो इसका इलाज क्यों नहीं हो पा रहा है? जैविक हथियार है तो फिर किसने बनाया? उससे क्यों नहीं निपटा जा रहा है? डब्ल्यूएचओ, यूएन के साथ ही मानवता पर काम करने वाले अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन क्या कर रहे हैं?
हथियारों की होड़ मानवता के लिए बड़ा खतरा
New Generation and Corona: दुनिया के शासक क्या कर रहे हैं? क्या हथियारों की होड़ मानवता के लिए बड़ा खतरा नहीं बन चुकी है? यह जमीनी हकीकत है कि कोरोना महामारी पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी आफत बन चुकी है। स्थिति यह है कि एक आफत से निकला नहीं जाता कि दूसरी तैयार हो जाती है। हां, यह कड़ुवी सच्चाई है कि मौजूदा हालात में सबसे बुरी हालत भारत की है।
कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद भी प्रभावित लोग दूसरी अन्य बीमारियों से जूझने को मजबूर हैं। जो लोग कोरोना संक्रमण को झेल जा रहे हैं, उनमें कई तरह तरह के फंगसों की चपेट में आ जा रहे हैं। फंगस भी एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा लगातार खतरनाक बन रहा है।
कोई ब्लैक फंगस तो कोई व्हाइट फंगस और कोई येलो फंगस की चपेट में
कोई ब्लैक फंगस तो कोई व्हाइट फंगस और कोई येलो फंगस की चपेट में आ रहा है। यह अपने आप में चिंता को और बढ़ाने वाला मामला है कि कोविड से ठीक होने के बाद बच्चों में मल्टी-सिस्टम इन्फ्लैमेटरी सिंड्रोम बीमारी पैदा हो जा रही है। इस सिंड्रोम में बच्चों के कई अंग प्रभावित होते हैं।
कोविड-19 से संक्रमित होने के कुछ हफ्तों बाद यह बीमारी बच्चों को शिकार बना रही है। स्थिति यह है कि कोराना महामारी से निपटा नहीं जा सका है कि फंगसों की महामारी आ खड़ी हुई। तीसरी लहर का अंदेशा अलग से। तीसरी लहर को दूसरी लहर से भी ज्यादा खतरनाक बताया जा रहा है। दिल्ली में 45 हजार तक लोगों के प्रतिदिन संक्रमण होने की बात कही जा रही है।
कोविड-32 के आने की आशंका
कोविड-19 खत्म नहीं हुआ कि कोविड-32 के आने की आशंका जताई जाने लगी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी दुनिया में 17 करोड़ लोगों के संक्रमण और 35 लाख लोगों की मौत की बात सामने निकल कर आई है। हालांकि यदि जमीनी हकीकत पर जाएं तो 35 लाख लोग तो भारत में दम तोड़ चुके होंगे। चीन में फिर से कोरोना संक्रमण के साथ ही बर्ड फ्लू के मामले मिलने से दुनिया के सामने और खतरा मंडराने लगा है।
कोरोना भी चीन के वुहान शहर से ही दुनिया में फैला है। यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि जब दुनिया में करोड़ों लोग कोरोना से दम तोड़ चुके हैं। दुनिया के निष्कर्ष पर पहुंचने के बजाय अभी वायरस की उत्पत्ति पर ही बहस छिड़ी हुई है। कोरोना वायरस कैसे बना और कहां से लीक हुआ। इसका जवाब दुनिया महामारी के डेढ़ साल बाद भी ढूंढ नहीं पाई है।
महामारी से निपटने के लिए पीएम मोदी के पास कुछ भी नहीं
भले ही दुनिया के तमाम देश ने इसके लिए चीन, उसकी वुहान वायरॉलजी लैब और बाजार को जिम्मेदार बता रहे हों पर प्रमाणिकता से साथ कोई नहीं कह पा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री ने भी कोरोना महामारी को प्राकृतिक आपदा ही बताया है। वह बात दूसरी है कि कोरोना वैक्सीन के दावे के अलावा इस महामारी से निपटने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है।
यह भी दिलचस्प है कि अब एक बार फिर से वुहान की यह वायरॉलजी लैब चर्चा में है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अमेरिकी इंटेलिजेंस रिपोर्ट के हवाले से दावा किया है कि नवंबर 2019 में लैब के तीन रिसर्चर कोविड-19 के लक्षणों के साथ अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। इसके एक महीने बाद चीन ने आधिकारिक तौर पर सांस संबंधी एक नई बीमारी की जानकारी दुनिया को दी थी।
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद एक बार फिर से अप्रैल 2012 में चीन के युन्नान प्रांत में तांबे की खदान, उसमें काम करने वाले तीन मजदूर, चमगादड़ों का घर, मजदूरों के बीमार होने के बाद मौत, इनके ब्लड के सैंपल वुहान वायरॉलजबी लैब का भेजने, बैट वुमन के नाम से मशहूर डॉ. शी झेंगली का अनैलेसिस, जांच में तीनों मजदूरों की मौत फंगल से होने का उल्लेख है।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि महामारी के डेढ़ साल बाद भी अपने को सुपर पॉवर मानने वाला अमेरिका बस वायरस की उत्पत्ति की बहस में ही उलझा रहेगा या फिर इस महामारी से निपटने का कोई उपाय भी ढूंढेगा। भारत में तो जिस तरह से केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों के पास लॉकडाउन के अलावा महामारी से निपटने के लिए कोई उपाय न था, उससे तो यही कहा जा सकता है कि अभी तक इस महामारी का कोई इलाज तैयार ही नहीं हुआ है।
वैक्सीन की दोनों डोज के बावजूद मौतों से चिंता
बस वैक्सीन के सहारे महामारी से निपटने का तरीका ढूंढा जा रहा है, जबकि वैक्सीन की दोनों डोज के बावजूद लोगों की मौत हुई है। सबसे हात्यास्पद स्थिति तो विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की है। डब्ल्यूएचओ कोरोना महामारी में कहीं से विश्वसनीय संगठन साबित नहीं हो पाया। ऐसा लगता है कि जैसे यह संगठन बस फंडिंग तक सीमित होकर रह गया है।
जब डब्ल्यूएचओ को महामारी का निदान ढूंढना चाहिए, ऐसे में वह कोरोना वैरिएंट्स का नामकरण कर रहा है। डब्ल्यूएचओ को लोगों को बचाने की नहीं बल्कि वैरिएंट्स को आसानी से याद रखे जाने की चिंता है। आखिरकार दुनिया में डब्ल्यूएचओ का काम क्या है? दुनिया को महामारी की उत्पत्ति और उसके निदान का हल ढूंढने की जिम्मेदारी और जवाबदेही डब्ल्यूएचओ की बनती है। दुनिया के शासकों का काम बस धंधा करना ही रह गया है?
निष्कर्ष
New Generation and Corona: दुनिया की सरकारें बस हथियारों की खरीद-फरोख्त के लिए ही बनी हैं क्या? दरअसल, दुनिया ने महात्मा बुद्ध, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे महापुरुषों के मानवता के वसूलों पर काम करने के संदेश को भुला दिया है। भौतिकता की दौड़ में प्रकृति से खिलवाड़ और हथियारों की होड़ मानव को लील रही है।
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