आज की तारीख में जिस तरह से आदमी विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होता जा रहा है। समस्याएं उसका पीछा छोडऩे को तैयार नहीं। आदमी की जिंदगी में हर खुशी बनावटी नजर आती है। समाज से प्यार-मोहब्बत और लगाव खत्म होता जा रहा है। खून, व्यवहार से ज्यादा स्वार्थ के रिश्ते फलफूल रहे हैं। हर अच्छे रिश्ते के निभाने में हर कोई विफल नजर आ रहा है। यदि हम इन सब पर मंथन करें तो पाते हैं कि ये सब कुछ बनावटी रिश्तों के चलते हो रहा है। आत्मीयता के रिश्तों की जगह बनावटी रिश्ते हम पर हावी होते जा रहे हैं। इसका बड़ा कारण हम संबंधों से ज्यादा तवज्जो पैसे को देने लगे हैं। लोग तो पहले से ज्यादा सम्पन्न हुए हैं पर देखने में आता है कि लोगों की समस्याएं और उनमें बीमारी तो पहले से ज्यादा देखी जा रही हैं। फिर ऐसा क्यों ? जब इस संदर्भ में मैं अक्सर लोगों से बात करता हूं कि यह बात निकल कर सामने आती है कि पैसे के बिना कुछ नहीं है। अच्छी जिंदगी जीने के लिए पैसा होना बहुत जरूरी है। निश्चित रूप से आदमी की जिंदगी में पैसे की बहुत अहमियत है। पर क्या पैसा ही सब कुछ है ? क्या हम पैसे के सामने अपनों की कद्र करना भूलते नहीं जा रहे हैं ? क्या पैसा बनावटी रिश्ते नहीं पैदा कर रहा है ? क्या यही पैसा हमारे आत्मीयता के रिश्तों को खत्म नहीं करता जा रहा है। क्या पैसे ने हमारी जिंदगी को बनावटी नहीं बना दिया है ?
एक समय था कि हम हम एक से बढक़र एक परेशानी को परिवार में बैठकर निपटा लेते थे। इसका बड़ा कारण यह था कि हम हर रिश्ते का सम्मान करते थे। रिश्ते बनावटी नहीं बल्कि आत्मीयता के होते थे। लोग एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करते थे। आज की तारीख में सब कुछ बनावटी चल रहा है। यदि किसी से आपका स्वार्थ निकल रहा है तो बहुत अच्छा है स्वार्थ निकलते ही वही अच्छा आदमी बुरा हो जाता है। हम पैसे वाले आदमी की हर कमी में अच्छाई निकालनी शुरू कर देते हैं और पैसे के अभाव में जिंदगी जी रहे आदमी की हर अच्छाई में कमी निकालने लगते हैं। विडंबना यह है कि पारिवारिक रिश्तों में भी अविश्वास ने जगह बना ली है। भाई-बहन, बाप-बेटा, पति-पत्नी, भाई-भाई के साथ ही हर दूसरे अपने रिश्तों में दरार आई है। इन सबका कारण यह देखने को मिलता है कि रिश्तों में बनावटीपन के साथ ही अविश्वास भी देखा जा रहा है। यही वजह है कि सुख और दुख भी बनावटी हो गया है। इन सबका असर आदमी के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। आदमी के अंदर का मैल गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहा है। हर कोई अपने को अकलमंद और दूसरे को बेवकूफ समझ रहा है। समाज में स्थिति यह हो गई है कि दूसरों को बेवकूफ बनाने वाले व्यक्ति को चतुर और होशियार की संज्ञा दी जा रही है और दूसरों के काम आने वाले भावुक लोगों को उसके अपने ही बेवकूफ समझने लगे हैं। बनावटी रिश्तों से सबसे अधिक नुकसान परिवारों को हो रहा है। परिवारों में गृह क्लेश के मामले बढ़ रहे हैं। गृह क्लेश है कि घर की बर्बादी में इसका सबसे बड़ा योगदान होता है। एक-दूसरे की परेशानी समझने की बजाय लोग अपना स्वार्थ निकालने में लगे हैं। ऐसे नहीं है कि यह सब परिवारों में ही चल रहा है। सत्ता, विपक्ष, राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, विभिन्न कार्यालयों में सब कुछ बनावटी ही चल रहा है।
कोरोना महामारी में रिश्ते-नाते व्यवहार और जिम्मेदारी सब कुछ देखने को मिल गई है। जिन मां-बाप ने जिन बच्चों की परिवरिश में अपना सब कुछ लूटा दिया। उन्होंने ही उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। संक्रमित होने के बाद दम तोडऩे वाले कितने मां-बाप को उसके बच्चों देखने से भी इनकार कर दिया। इतना ही विभिन्न शमशानों में कितने बुजुर्गांे की अस्थियां अपनों का इंतजार कर रही हैं। उत्तर प्रदेश और हिार में विभिन्न नदियों में कितने शवों को कुत्तों औेर कौवें के नोचने के दृश्य आज के बनावटी रिश्तों के संबंधों औेर लगाव को उजागर कर रहे हैं। ये क्या हो गया है हमारे समाज को हम किसका नुकसान कर रहे हैं। हम किसका परिवार बर्बाद कर रहे हैं। हम किसे धोखा दे रहे हैं ? हमें यह समझना चाहिए यह सब कुछ हम अपने ही लिये ही कर रहे हैं। जो लोग आज अपने मां-बाप और बुजुर्गांे के साथ दुव्र्यवहार कर रहे हैं कल उनके बच्चे जब उनके साथ ऐसा करेंगे तब उनकी समझ में आएगा। क्या हम अपनी इन गलतियों को आज ही नहीं सुधार सकते हैं। क्या इस गलती के सुधारने से हम अपने बुजुर्गांे औेर अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छा नहंी कर जाएंगे। देश औेर समाज सुधारने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत बनावटी रिश्तों से निकलकर आत्मीयता के रिश्तों को अपनाने की जरूरत है। देश में जितनी जरूरत राजनीति में सुधार की है उससे कहीं ज्यादा सुधार की जरूरत समाज में है। हर कोई महसूस करे कि क्या देश बदल गया है ? जमीन बदल गई है ? क्या हमारे ॅघर बदल गये हैं ? वही देश, वही समाज, वही लोग फिर ये बनावटी पन क्यों ? जैसे भी हैं वैसे ही रहें। जो भी रिश्ते बनाएं आत्मीयता से बनाएं। यह करके हम किसी और का नहीं बल्कि अपना ही फायदा करेंगे। क्योंकि बनावटी रिश्ते विकार पैदा करते हैं औेर आत्मीयता के खुशी।
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