Saturday 26 June 2021

किसान ही नहीं जनता के हाथ की रोटी भी छीनने का षड्यंत्र है नये किसान कानून



नये किसान कानून वापस कराने के लिए दिल्ली बोर्डर पर आंदोलित भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के आह्वान पर किसान देश में विभिन्न राज्यों के राजभवनों का घेराव कर रहे हैं। गाजीपुर बार्डर के किसानों को दिल्ली के उप राज्यपाल से न मिलने दिये जाने से नाराज राकेश टिकैत ने दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। हालांकि इसी बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर आंदोलन खत्म कर किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रण कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि मोदी सरकार समस्या का हल चाहती है तो फिर  7 महीने से किसान सर्दी, बरसात और गर्मी झेलने को क्यों मजबूर हैं।

दरअसल किसान नये किसान कानूनों को वापस कराकर नये सिरे से कानून बनाने की बात कर रहे हंै। एमएसपी खरीद पर कानून चाह रहे हैं। मोदी सरकार है कि किसान कानून वापस लेने और एमएसपी खरीद पर कानून बनाने पर कोई बात करने को तैयार ही नहीं। वह बात दूसरी है कि मोदी सरकार आंदोलन को राजनीतिक बताकर खत्म करने के लिए हर हथकंडा अपना रही है। मोदी सरकार के समर्थक तो लगातार आंदोलन को चीन, पाकिस्तान से फंडिंग का भी आरोप लगा रहे हैं। गत दिनों तो सोनीपत और गाजियाबाद के आम लोगों की भी किसानों को उठने की चेतावनी मोदी सरकार ने दिलवाई। इन बस के बीच प्रश्न उठता है कि क्या किसान आंदोलन बिना वजह हो रहा है ? यदि ऐसा है तो मोदी सरकार 15 में से 12 प्वाइंट वापस लेने को तैयार क्यों हो गई ?
यह मोदी सरकार का बनाया गया माहौल ही है कि महानगरों के ग्लैमर की चकाचौंध में रहने वाले काफी लोग अपने बाप-दादा का संघर्ष भूल आंदोलित किसानों को आतंकवादी, नक्सली, देशद्रोही और नकली किसान न जाने क्या-क्या उपाधि दे रहे हैं। जो लोग आंदोलित किसानों को देश समाज और अपना दुश्मन समझ रहे हैं वे भली भांति समझ लें कि यदि ये नये किसान वापस नहीं हुए तो किसान तो अन्न उपजा कर अपने बच्चों को पाल लेंगे पर महानगरों में रह रहे लोगों को रोटी भी नहीं मिलेगी। सारा खाद्यान्न विदेश में जाएगा । देश में तो खाद्यान्न से प्रोडक्ट तैयार होंगे। जो महंगे दाम पर मिलेंगे। अभी भी समय है जमीनी हकीकत समझकर मोदी सरकार की कॉरपोरेट घरानों को बढ़ावा देने की नीति को पहचानो। बाहर निकलो हिन्दू-मुस्लिम के खेल से। आज के हालात में पहली प्राथमिकता अपने को जिंदा रहने की होनी चाहिए। यह बात कम से कम कोरोना की दूसरी लहर से प्रभावित होने वाले लोगों को तो समझ लेनी चाहिए। ये जितने भी स्वयंभू हिन्दुत्व के ठेकेदार बने घूम रहे हैं ये हिन्दुत्व के नहीं सत्ता के ठेकेदार हैं, इन्हें हिन्दुत्व के नाम पर बस हिन्दुओं का वोट चाहिए। क्या बेरोजगार हिन्दू नहीं हो रहे हैं ? क्या कोरोना कहर में हिन्दू नहीं मरे हैं ? क्या बेरोजगारी के चलते हिन्दू युवा आत्महत्या नहीं कर रहे हैं ? क्या इन ठेकेदारों ने किसी गरीब हिन्दू की बेटी की शादी में कोई योगदान दिया ? क्या इन्होंने किसी गरीब हिन्दू के बेटे की पढ़ाई में कोई योगदान दिया ? ये लोग हिन्दू राष्ट्र का भी दिखावा करते हैं। संविधान के होते लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संभव नहीं है। यह ये लोग भी भलीभांति जानते हैं। ये सब हिन्दुओं को भ्रमित करन के लिए किया जाता रहा है।
निश्चित रूप से देश में विपक्ष नाकारा है पर क्या हम सत्ता में बैठे नेताओं को लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की छूट दे दें ? जरूरत ठंडे दिमाग से सोचने की है। जो सरकार देश में पूंजपीतियों को खाद्यान्न स्टॉक की छूट दे सकती है, वह देश को बेच भी सकती है। कांट्रेक्ट फार्मिंग किसान को उसके ही खेत में बंधुआ मजदूर बनाने का षड्यंत्र है। जब बीमा कंपनियां किसान को ठग लेती हैं तो कल्पना करो, जो कंपनियां किसान की जमीन पर खेती करेंगी वह क्या-क्या करेंगी ? मोदी सराकर भोले-भाले किसानों को कॉरपोरेट संस्कृति का दिखावा दिखाकर कॉरपोरेट घरानों के यहां बंधुआ बनाना चाहती है। भाकियू नेता राकेश टिकैत में सौ कमियां होंगी पर वह आज किसान की जमीनी लड़ाई लड़ रहे हैं। नये किसान कानून किसान ही नहीं देश की जनता के गले में मौत का फंदा है। देश में एक किसान ही बचा है जिस पर कॉरपोरेट घरानों की कब्जा नहीं है। मोदी सरकार ने इसकी की व्यवस्था कर दी है। यह किसान ही नहीं आम लोगों को भी समझ लेना चाहिए।

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