उत्तर प्रदेश में
विधानसभा चुनाव को लेकर रालोद व जदयू के गठबंधन की चल रही कवायद सपा के लिए
मुश्किल खड़ी कर सकती है। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश
में विरोध झेल रही सपा के लिए पुराने साथियों के विरोध में आ जाना बड़ी
परेशानी लेकर आना माना जा रहा है। सर्वे में बसपा को बढ़त दिखाना तथा आम
चुनाव में भाजपा की एकतरफा जीत से दबाव में चल रही सपा के खिलाफ समान
विचारधारा वाले दलों का ताल ठोक देना बड़ा झटका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश
(पउप्र) में गन्ना मूल्य, बकाया भुगतान, अलग राज्य की मांग से निपटना एक
अलग चुनौती के रूप में उभरे हैं।
आम चुनाव में पुप्र में भाजपा की एकतरफा जीत के चलते सभी दलों ने यहां पर विशेष ध्यान लगाया हुआ है। बसपा के बाद जहां सपा ने लगभग सभी सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं वहीं भाजपा प्रत्याशी चयन पर लगातार मंथन कर रही है। पउप्र के लोगों को रिझाने के लिए सभी दल अपने-अपने तरीके से प्रयास में लगे हंै। उत्तर प्रदेश पर राज कर रही सपा ने जहां बजट में किसानों के पक्ष ढेर सारी योजनाएं घोषित कर अपने को किसान हितैषी दिखाने का प्रयास किया वहीं बसपा ने संसद में पउप्र को अलग राज्य बनाने का मुद्दा उठाकर। भाजपा से प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बहाने तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गन्ना किसानों की समस्याओं को मुद्दा बनाकर। रालोद लगातार बकाया भुगतान व किसानों की समस्याओं को उठाता रहा है। पउप्र पर विशेष पकड़ के चलते ही जदयू रालोद से सट रहा है।
जदयू-रालोद गठबंधन का सपा के नुकसानदायक होने का कारण जदयू के केसी त्यागी की पउप्र में अच्छी पकड़ होना तथा आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रधामनंत्री पद के दावेदार बनने पर एनडीए से नाता तोड़ने वाले नीतीश कुमार का मुस्लिमों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने में सक्षम होना है। ईमानदार नेता की छवि रखने वाले शरद यादव की भाषा शैली पउप्र के लोगों को अलग प्रभावित करती है। उधर बसपा के अपने दम पर विस चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद कांग्रेस के रालोद व जदयू गठबंधन में शामिल होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। वैसे भी जदयू व राजद के साथ बिहार चुनाव लड़ चुकी कांग्रेस के लिए यह गठबंधन फायदे का सौदा रहा है। उधर नीतीश कुमार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगने पर मोदी सरकार की निंदा कर कांग्रेस के पक्ष में होने के संकेत दे दिए हैं।
प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था, यादव सिंह प्रकरण में हुई फजीहत तथा भाजपा से सटने के लग रहे आरोप को झेल रहे सपा के लिए उसकी विचारधारा वाले दलों का विरोध में जाना बड़ी मुसीबत माना जा रहा है। जदयू प्रमुख शरद यादव, महासचिव केसी त्यागी व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव व रालोद प्रमुख अजीत सिंह पुराने साथी रहे हैं। इन समाजवादियों ने एक साथ मिलकर जहां कांग्रेस का सामना किया वहीं कई बार साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ मोर्चा खोला। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के राष्ट्रवाद का राग अलापने, असहनशीलता पर बहस के इस दौर में इन लोगों के विरोध में आने से सपा का अलग-थलग होना माना जा रहा है।
ज्ञात हो कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंंह का स्मृति स्थल बनाए जाने को लेकर दिल्ली में हुई किसान स्वाभिमान रैली में चौधरी चरण सिंह की विचारधारा के पोषक सियासी धुरंधरों के जुटने से नए समीकरण उभरे थे। मंच पर रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह, जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव, जनता दल (एस) अध्यक्ष व पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश के काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने एक साथ मिलकर केंद्र सरकार को ललकारा था। इन नेताओं ने चरण सिंह स्मृति स्थल बनाए जाने को साझा संघर्ष करने का संकल्प लिया था। बिहार में राजद-जदयू के मिलने के बाद हरियाणा में देवीलाल की जन्मशती पर समाजवादियों के जुटने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की अगुआई में जनता परिवार के एकजुट होने की कवायद ने जोर मारा था।
हालांकि बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर नेताजी के पीछे हटने से इस गठबंधन के अस्तित्व में आने की संभावनाएं धूमिल हुर्इं तो सबसे अधिक नाराजगी नीतीश कुमार ने जताई थी। नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में जहां उनकी विचारधारा के लगभग सभी नेता वहां पहुंचे थे वहीं सपा के किसी कद्दावर नेता का मंच पर न दिखाई देना नीतीश व नेताजी के बीच बढ़ी दूरी को दर्शा रहा था। अब नीतीश कुमार अजित सिंह को साथ लेकर पउप्र से मुलायम सिंह को ललकारने की तैयारी मंे हैं।
आम चुनाव में पुप्र में भाजपा की एकतरफा जीत के चलते सभी दलों ने यहां पर विशेष ध्यान लगाया हुआ है। बसपा के बाद जहां सपा ने लगभग सभी सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं वहीं भाजपा प्रत्याशी चयन पर लगातार मंथन कर रही है। पउप्र के लोगों को रिझाने के लिए सभी दल अपने-अपने तरीके से प्रयास में लगे हंै। उत्तर प्रदेश पर राज कर रही सपा ने जहां बजट में किसानों के पक्ष ढेर सारी योजनाएं घोषित कर अपने को किसान हितैषी दिखाने का प्रयास किया वहीं बसपा ने संसद में पउप्र को अलग राज्य बनाने का मुद्दा उठाकर। भाजपा से प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बहाने तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गन्ना किसानों की समस्याओं को मुद्दा बनाकर। रालोद लगातार बकाया भुगतान व किसानों की समस्याओं को उठाता रहा है। पउप्र पर विशेष पकड़ के चलते ही जदयू रालोद से सट रहा है।
जदयू-रालोद गठबंधन का सपा के नुकसानदायक होने का कारण जदयू के केसी त्यागी की पउप्र में अच्छी पकड़ होना तथा आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रधामनंत्री पद के दावेदार बनने पर एनडीए से नाता तोड़ने वाले नीतीश कुमार का मुस्लिमों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने में सक्षम होना है। ईमानदार नेता की छवि रखने वाले शरद यादव की भाषा शैली पउप्र के लोगों को अलग प्रभावित करती है। उधर बसपा के अपने दम पर विस चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद कांग्रेस के रालोद व जदयू गठबंधन में शामिल होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। वैसे भी जदयू व राजद के साथ बिहार चुनाव लड़ चुकी कांग्रेस के लिए यह गठबंधन फायदे का सौदा रहा है। उधर नीतीश कुमार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगने पर मोदी सरकार की निंदा कर कांग्रेस के पक्ष में होने के संकेत दे दिए हैं।
प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था, यादव सिंह प्रकरण में हुई फजीहत तथा भाजपा से सटने के लग रहे आरोप को झेल रहे सपा के लिए उसकी विचारधारा वाले दलों का विरोध में जाना बड़ी मुसीबत माना जा रहा है। जदयू प्रमुख शरद यादव, महासचिव केसी त्यागी व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव व रालोद प्रमुख अजीत सिंह पुराने साथी रहे हैं। इन समाजवादियों ने एक साथ मिलकर जहां कांग्रेस का सामना किया वहीं कई बार साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ मोर्चा खोला। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के राष्ट्रवाद का राग अलापने, असहनशीलता पर बहस के इस दौर में इन लोगों के विरोध में आने से सपा का अलग-थलग होना माना जा रहा है।
ज्ञात हो कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंंह का स्मृति स्थल बनाए जाने को लेकर दिल्ली में हुई किसान स्वाभिमान रैली में चौधरी चरण सिंह की विचारधारा के पोषक सियासी धुरंधरों के जुटने से नए समीकरण उभरे थे। मंच पर रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह, जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव, जनता दल (एस) अध्यक्ष व पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश के काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने एक साथ मिलकर केंद्र सरकार को ललकारा था। इन नेताओं ने चरण सिंह स्मृति स्थल बनाए जाने को साझा संघर्ष करने का संकल्प लिया था। बिहार में राजद-जदयू के मिलने के बाद हरियाणा में देवीलाल की जन्मशती पर समाजवादियों के जुटने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की अगुआई में जनता परिवार के एकजुट होने की कवायद ने जोर मारा था।
हालांकि बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर नेताजी के पीछे हटने से इस गठबंधन के अस्तित्व में आने की संभावनाएं धूमिल हुर्इं तो सबसे अधिक नाराजगी नीतीश कुमार ने जताई थी। नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में जहां उनकी विचारधारा के लगभग सभी नेता वहां पहुंचे थे वहीं सपा के किसी कद्दावर नेता का मंच पर न दिखाई देना नीतीश व नेताजी के बीच बढ़ी दूरी को दर्शा रहा था। अब नीतीश कुमार अजित सिंह को साथ लेकर पउप्र से मुलायम सिंह को ललकारने की तैयारी मंे हैं।
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