Thursday, 3 March 2016

आरक्षण ने बिगाड़ा उत्तर भारत का भाईचारा

   हरियाणा में हुए हिंसक हुए आंदोलन से जाटों को आरक्षण मिले या न मिले पर जातीय वैमनस्यता जरूर मिल गई। आंदोलन में विशेष जाति के हुए भारी नुकसान से उपजा आक्रोश जाटों के खिलाफ लामबंदी का रूप ले रहा है बल्कि उन्हें आरक्षण न देने देने के लिए माहौल बना रहा है। आरक्षण का लाभ ले रही जातियां कोटा कम होने की डर से जहां एकजुट हो रही हैं वहीं कई जातियां पिछड़ों में शामिल होने के लिए सड़कों पर उतर गई हैं। आरक्षण को लेकर हो रही विभिन्न जातियों की गोलबंदी जातीय टकराव का रूप ले रही हैं। जिस तरह से हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व राजस्थान में अन्य जातियां आंदोलन की आलोचना कर आरक्षण पर अपना हक जताने के लिए मैदान में उतरी हैं, उससे उत्तर भारत में बड़े संघर्ष की आशंका बलवती हो गई है। किसी समय पंजाब गुजरात आए पटेल समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए पहले ही हिंसक आंदोलन हो चुका है। इस आंदोलन की लपटें बिहार तक पहुंची थी। आंदोलन से हुए नुकसान की टीस लोगों में बरकरार है। जाट महासभा ने बैठक कर हिंसा पर माफी तो मांगी पर सीबीआई की जांच मांग करते हुए हिंसा में जाट समुदाय का हाथ न होने का प्रयास किया। साथ ही हरियाणा व केंद्र सरकार को आरक्षण न मिलने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी। उधर गुजरात में पाटीदार अमानत आंदोलन समिति (पीएएसएस) के नेताओं ने जेल में कैद अपने नेता हार्दिक पटेल से मुलाकात कर गुजरात सरकार को धमकी दी कि यदि 10 दिनों के अंदर पटेल समुदाय को आरक्षण नहीं दिया गया तो वे फिर से आंदोलन शुरू कर देंगे।
   आजादी के समय दबे-कुचलों को उभारने के लिए 10 वर्ष तक बनाई गई आरक्षण नाम की इस व्यवस्था वह जातीय रूप ले लिया कि संपन्न जातियां भी इसे पाने के लिए मैदान में कूद पड़ीं। वर्ष 1989 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने पर गुर्जर व यादव आरक्षण में क्या आए कि जाटों को भी आरक्षण की जरूरत महसूस होने लगी। आंदोलन के बल पर इन लोगों ने राजस्थान व उत्तर प्रदेश में आरक्षण हासिल कर भी लिया। जाटों के वजूद को देखते हुए वर्ष 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने केंद्र में भी आरक्षण की सिफारिश कर दी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया। हरियाणा व केंद्र में आरक्षण के लिए हिसार से शुरू हुए जाटों के आंदोलन ने वह रूप लिया कि उसकी लपटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड तक फैल गई। आंदोलन में प्रभावशाली नेतृत्व न होने के की वजह से आंदोलन ने ऐसा हिंसक  रूप लिया कि हरियाणा में 30 मौतें तथा लगभग 35 हजार करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो गया।
   आंदोलन खत्म होने के बाद ऐसा माहौल बना कि पूरे उत्तर भारत में अन्य जातियां जाटों के खिलाफ एकजुट होना शुरू हो गर्इं। हरियाणा में भिवानी, करनाल गुड़गांव व नारनौल के साथ कई जिलों में 35 बिरादरियों ने प्रदर्शन कर जाटों के खिलाफ एकजुट होने का आाह्वान किया। माहौल को भांपकर कुरुक्षेत्र में  रोड़, बिश्नोई, त्यागी व जट सिखों ने भी प्रदेश और केंद्र सरकार की ओर से आरक्षण के लिए बनाई गई कमेटी से आरक्षण की मांग कर दी। गत दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरधना में दलितों व मुस्लिमों ने जाट आरक्षण में हुई हिंसा के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया। जाटों को आरक्षण मांगते देख राजस्थान में राजपूतों को आरक्षण दिलाने के लिए करणी सेना मैदान में उतर गई। दरअसल पिछड़ों में शामिल जातियां अपना कोटा कम होने की आशंका से जाटों को आरक्षण न देने देने पर अड़ रही हैं। हालांकि हरियाणा सरकार पिछड़ों के आरक्षण में छेड़छाड़ न करने की बात कर रही है।
   दरअसल उत्तर भारत में जातीय वर्चस्व का बड़ा महत्व है। हर जाति अपने-अपने हिसाब से अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है। यही वजह है कि हर चुनाव जमीनी मुद्दों को छोड़कर अंतत: जातीय आधार पर आ जाता है। हरियाणा में भी यही हुआ। हरियाणा की राजनीति पर दबदबा रखने वाले जाटों को सत्ता से फिसलना  अखर रहा था। यही वजह रही कि आंदोलन में आरक्षण की मांग कम आैर सत्ता जाने का आक्रोश ज्यादा देखने को मिला। आरक्षण मामले में बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व झारखंड में भी हरियाणा व उत्तर प्रदेश की तरह जातीय आंकड़े हैं। जिस तरह से विभिन्न जातियां आरक्षण की मांग को लेकर आगे आई हैं उससे इन प्रदेशों में भी

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