भानगढ़ किले को किदवंदियों ने बनाया 'भूतहा किला"
माधव सिंह के वंशजों की गाथाओं को समेटे है यह किला
माधव सिंह के दो वंशजों ने आैरंगजेब के दबाव में अपना लिया था मुस्लिम धर्म
महाराजा सवाई जय सिंह ने कब्जा कर फिर से बनाया था राजपूतों का आशियाना
माधव सिंह के वंशजों की गाथाओं को समेटे है यह किला
माधव सिंह के दो वंशजों ने आैरंगजेब के दबाव में अपना लिया था मुस्लिम धर्म
महाराजा सवाई जय सिंह ने कब्जा कर फिर से बनाया था राजपूतों का आशियाना
भानगढ़ से लौटकर ...
सबसे बड़ा भूत तो आदमी ही होता है। यह वाक्य सुनने को मिला उस लड़के से जो 'भूतहा किला" के नाम से प्रसिद्ध भानगढ़ किले के पास गाडि़यों से पार्किंग का शुल्क वसूल रहा था। हम लोगों ने उस लड़के से किले के बारे में इसलिए पूछा था क्योंकि स्थानीय लोगों से कि 'रात में किले पर भूतों पर वास होता है, जो रात में किले के अंदर जाता है तो वापस नहीं आता।" कहते सुना है। भानगढ़ किले का भ्रमण करते समय उस लड़के का यह वाक्य मेरे जेहन में घूमता रहा। उस साधारण से लड़के ने बातों-बातों में पूरे समाज की व्यवस्था पर कटाक्ष जो कर दिया था। यह व्यथा उस लड़के नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो इंसानियत की दृष्टि से समाज को देख रहा है। मुझे भी उसकी बात में दम लगा। कभी रात में आदमी को देखकर हौसला बढ़ जाता था तो आज के दौर में यदि रात में कोई आदमी देख ले तो भूत जैसा ही भय आदमी के मन में बैठ जाता है। देखने गए थे भूतों का किला आैर पाठ सीखने को मिला गया इंसानियत का।
भानगढ़ किले के बारे में सुना है कि अंधेरी रात में लोगों ने ने वहां पर भूतों का तांडव देखा है। किले से तरह-तरह आवाजें आती हैं। यही वजह रही होगी कि रात में वहां पर किसी के जाने अनुमति नहीं है। भ्रमण के दौरान हम लोगों ने इन सभी बातों पर विशेष ध्यान दिया। हमें वहां पर बंदर, लंगूर व कुत्तों की जमात दिखाई दी। शायद इन्हीं जानवरों की आवाज को लोग भूतों की आवाज समझते होंगे। जो सामग्री वहां पर देखने को मिली। उससे ऐसा लगता है कि प्रतिबंध के बावजूद रात में वहां पर असामाजिक तत्व व तांत्रिकों जाते रहते होंगे। तांत्रिकों के वहां जाने का कारण शायद यह भी हो सकता है कि सिंघिया नामक तांत्रिक इसी किले मे रहता था। तांत्रिकों को भ्रम हो कि वहां पर वे तंत्र विद्या में पारंगत हो जाएंगे।
इसमें दो राय नहीं कि अरावली पहाडि़यों की गोद में बसा यह स्थल बालीवुड को जरूर आकर्षित करता है। जिस तरह का किले, जगह वह यहां के मंदिरों का इतिहास आैर पृष्ठभूमि है। वह फिल्म व ऐतिहासिक धारावाहिकों के लिए पर्याप्त है। वैसे भी इस क्षेत्र में राकेश रोशन की 'करन अजुर्न" समेत कई फिल्मों की शूटिंग इस क्षेत्र में हो चुकी है। जिस तरह से इस क्षेत्र में वनों व पहाडि़यों के बीच से संकरी सड़क जाती है। रमणीक स्थल है। भानगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, अजबगढ़ जैसे रजवाड़े रहे हैं। इस क्षेत्र को जोड़कर भी धारावाहिक बनाया जा सकता है। शोध व लिखने के लिए भी यह क्षेत्र उपजाऊ लगा।
बात भानगढ़ किले के इतिहास की जाए तो 'भूतहा किला" के नाम से जाने जाने वाले इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवत दास के छोटे बेटे आैर मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मान सिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रियासत बना लिया। माधो सिंह के सुजान सिंह, छत्र सिंह आैर तेज सिंह तीन बेटे थे। परिस्थिति ऐसी बनी कि माधो सिंह के बाद छत्र सिंह को भागनढ़ का शासक बनाया गया। छत्र सिंह के बेट अजब सिंह ने अपने नाम से अजबगढ़ बसाया। कहा जाता है कि अजब सिंह का एक बेटा काबिल सिंह अजबगढ़ आैर दूसरा हरी सिंह भागनढ़ में रहा। कहा जाता है कि हरी सिंह के दो बेटों ने धर्म परितर्वन पर मुसलमान धर्म ग्रहण कर लिया आैर आैरंगजेब की कृपा से भागनगढ़ के शासक बने रहे। मुगलों के कमजोर पड़ने पर महाराजा सवाई जय सिंह ने इन्हें मारकर भानगढ़ पर अपना अधिकार जमा लिया। बताया जाता है कि 1783 तक यह किला पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था। भानगढ़ के बारे में कहा जाता है कि इसकी बनावट ऐसी थी कि यहां राजशी वैभव यौवन पर रहता था। यहां पर जहां भव्य महल, ससज्जित बाजार, तवायफों की कोठी होने की बात सामने आती हैं वहीं गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगला देवी, कृष्ण केशव मंदिर भी हैं। आज की बात करें तो भानगढ़ का किला चहारदीवारी से घिरा है, जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी आैर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार के खंडहर बताए जाते हैं, जिसमें सड़क के दोनों ओर कतार में दुकानों के खंडहर प्रतीत होते हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल बताया जाता है, जिसका ऊपर का भाग लगभग पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है।
भानगढ़ के बारे में एक कथा कि राजकुमारी रत्नावती अपूर्व सुंदर थी। पूरे राज्य में उसकी सुंदरता के चर्चे थे। इसी राज्य में सिंघिया नाम का तांत्रिक उसकी सुंदरता पर मोहित था पर उसा पाना उसके लिए दुर्लभ था। जब राजकुमारी के श्रृंगार के लिए उसकी दासी बाजार में इत्र लेने आई तो दासी को लालच देकर तांंत्रिक ने सम्मोहित करने वाला बना दिया। बताया जाता है कि राजकुमारी ने इत्र चट्टान पर गिरा दी। चट्टान लुड़कती हुई तांत्रिक पर जा गिरी। जिस पर तांत्रिक ने मरते समय उस नगरी व राजकुमारी को अनाथ होने का श्राप दे दिया, जिससे यह नगर ध्वस्त हो गया। तभी से इस किले में भूतों के वास की बात कही जाती है।
भानगढ़ से संबंधित एक किदवंदिती यह भी है कि यह स्थल बालूनाथ योगी की तपस्या स्थल था, जिसने इस शर्त पर भानगढ़ के किले को बनाने की सहमति दी थी कि कभी किले की परछाई उसकी तपस्या स्थल पर नहीं पड़नी चाहिए। कहा जाता है कि माधो सिंह के वंशजों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया तथा किले का निर्माण ऊपर की ओर जारी रखा। बताया जाता है कि एक दिन किले की परछाई तपस्या स्थल पर पड़ गई, जिससे क्रोधित होकर योगी बालूनाथ ने भानगढ़ को श्राप देकर ध्वस्त कर दिया। बालूनाथ की समाधि आज भी इस किदवंदिती की ओर इशारा करती है।
सबसे बड़ा भूत तो आदमी ही होता है। यह वाक्य सुनने को मिला उस लड़के से जो 'भूतहा किला" के नाम से प्रसिद्ध भानगढ़ किले के पास गाडि़यों से पार्किंग का शुल्क वसूल रहा था। हम लोगों ने उस लड़के से किले के बारे में इसलिए पूछा था क्योंकि स्थानीय लोगों से कि 'रात में किले पर भूतों पर वास होता है, जो रात में किले के अंदर जाता है तो वापस नहीं आता।" कहते सुना है। भानगढ़ किले का भ्रमण करते समय उस लड़के का यह वाक्य मेरे जेहन में घूमता रहा। उस साधारण से लड़के ने बातों-बातों में पूरे समाज की व्यवस्था पर कटाक्ष जो कर दिया था। यह व्यथा उस लड़के नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो इंसानियत की दृष्टि से समाज को देख रहा है। मुझे भी उसकी बात में दम लगा। कभी रात में आदमी को देखकर हौसला बढ़ जाता था तो आज के दौर में यदि रात में कोई आदमी देख ले तो भूत जैसा ही भय आदमी के मन में बैठ जाता है। देखने गए थे भूतों का किला आैर पाठ सीखने को मिला गया इंसानियत का।
भानगढ़ किले के बारे में सुना है कि अंधेरी रात में लोगों ने ने वहां पर भूतों का तांडव देखा है। किले से तरह-तरह आवाजें आती हैं। यही वजह रही होगी कि रात में वहां पर किसी के जाने अनुमति नहीं है। भ्रमण के दौरान हम लोगों ने इन सभी बातों पर विशेष ध्यान दिया। हमें वहां पर बंदर, लंगूर व कुत्तों की जमात दिखाई दी। शायद इन्हीं जानवरों की आवाज को लोग भूतों की आवाज समझते होंगे। जो सामग्री वहां पर देखने को मिली। उससे ऐसा लगता है कि प्रतिबंध के बावजूद रात में वहां पर असामाजिक तत्व व तांत्रिकों जाते रहते होंगे। तांत्रिकों के वहां जाने का कारण शायद यह भी हो सकता है कि सिंघिया नामक तांत्रिक इसी किले मे रहता था। तांत्रिकों को भ्रम हो कि वहां पर वे तंत्र विद्या में पारंगत हो जाएंगे।
इसमें दो राय नहीं कि अरावली पहाडि़यों की गोद में बसा यह स्थल बालीवुड को जरूर आकर्षित करता है। जिस तरह का किले, जगह वह यहां के मंदिरों का इतिहास आैर पृष्ठभूमि है। वह फिल्म व ऐतिहासिक धारावाहिकों के लिए पर्याप्त है। वैसे भी इस क्षेत्र में राकेश रोशन की 'करन अजुर्न" समेत कई फिल्मों की शूटिंग इस क्षेत्र में हो चुकी है। जिस तरह से इस क्षेत्र में वनों व पहाडि़यों के बीच से संकरी सड़क जाती है। रमणीक स्थल है। भानगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, अजबगढ़ जैसे रजवाड़े रहे हैं। इस क्षेत्र को जोड़कर भी धारावाहिक बनाया जा सकता है। शोध व लिखने के लिए भी यह क्षेत्र उपजाऊ लगा।
बात भानगढ़ किले के इतिहास की जाए तो 'भूतहा किला" के नाम से जाने जाने वाले इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवत दास के छोटे बेटे आैर मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मान सिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रियासत बना लिया। माधो सिंह के सुजान सिंह, छत्र सिंह आैर तेज सिंह तीन बेटे थे। परिस्थिति ऐसी बनी कि माधो सिंह के बाद छत्र सिंह को भागनढ़ का शासक बनाया गया। छत्र सिंह के बेट अजब सिंह ने अपने नाम से अजबगढ़ बसाया। कहा जाता है कि अजब सिंह का एक बेटा काबिल सिंह अजबगढ़ आैर दूसरा हरी सिंह भागनढ़ में रहा। कहा जाता है कि हरी सिंह के दो बेटों ने धर्म परितर्वन पर मुसलमान धर्म ग्रहण कर लिया आैर आैरंगजेब की कृपा से भागनगढ़ के शासक बने रहे। मुगलों के कमजोर पड़ने पर महाराजा सवाई जय सिंह ने इन्हें मारकर भानगढ़ पर अपना अधिकार जमा लिया। बताया जाता है कि 1783 तक यह किला पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था। भानगढ़ के बारे में कहा जाता है कि इसकी बनावट ऐसी थी कि यहां राजशी वैभव यौवन पर रहता था। यहां पर जहां भव्य महल, ससज्जित बाजार, तवायफों की कोठी होने की बात सामने आती हैं वहीं गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगला देवी, कृष्ण केशव मंदिर भी हैं। आज की बात करें तो भानगढ़ का किला चहारदीवारी से घिरा है, जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी आैर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार के खंडहर बताए जाते हैं, जिसमें सड़क के दोनों ओर कतार में दुकानों के खंडहर प्रतीत होते हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल बताया जाता है, जिसका ऊपर का भाग लगभग पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है।
भानगढ़ के बारे में एक कथा कि राजकुमारी रत्नावती अपूर्व सुंदर थी। पूरे राज्य में उसकी सुंदरता के चर्चे थे। इसी राज्य में सिंघिया नाम का तांत्रिक उसकी सुंदरता पर मोहित था पर उसा पाना उसके लिए दुर्लभ था। जब राजकुमारी के श्रृंगार के लिए उसकी दासी बाजार में इत्र लेने आई तो दासी को लालच देकर तांंत्रिक ने सम्मोहित करने वाला बना दिया। बताया जाता है कि राजकुमारी ने इत्र चट्टान पर गिरा दी। चट्टान लुड़कती हुई तांत्रिक पर जा गिरी। जिस पर तांत्रिक ने मरते समय उस नगरी व राजकुमारी को अनाथ होने का श्राप दे दिया, जिससे यह नगर ध्वस्त हो गया। तभी से इस किले में भूतों के वास की बात कही जाती है।
भानगढ़ से संबंधित एक किदवंदिती यह भी है कि यह स्थल बालूनाथ योगी की तपस्या स्थल था, जिसने इस शर्त पर भानगढ़ के किले को बनाने की सहमति दी थी कि कभी किले की परछाई उसकी तपस्या स्थल पर नहीं पड़नी चाहिए। कहा जाता है कि माधो सिंह के वंशजों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया तथा किले का निर्माण ऊपर की ओर जारी रखा। बताया जाता है कि एक दिन किले की परछाई तपस्या स्थल पर पड़ गई, जिससे क्रोधित होकर योगी बालूनाथ ने भानगढ़ को श्राप देकर ध्वस्त कर दिया। बालूनाथ की समाधि आज भी इस किदवंदिती की ओर इशारा करती है।
No comments:
Post a Comment