Friday 15 January 2016

... ऐसे में अयोध्या क्यों ?

    जब लोग महंगाई व भ्रष्टाचार से जूझ रहे हों। बेरोजगारों की बड़ी फौज सड़कों पर घूम रही हो। देश आतंकवाद की चपेट में हो। समाज में भाईचारा कायम करना बड़ी चुनौती बनी हो। समस्याओं से जूझते-जूझते किसान आत्महत्या कर रहे हों। प्रधानमंत्री मुस्लिम देशों का भ्रमण कर धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने का प्रयास कर रहे हों। भाजपा भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश मिलाकर अखंड भारत बनाने की बात करने लगी हो। ऐसे में हिन्दूवादी संगठनों का अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का राग अलापने का क्या आैचित्य है ? वह भी ऐसे समय में जब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचारधीन हो। इसका मतलब साफ है कि भाजपा 'राम मंदिर निर्माण" का मुद्दा छेड़कर हिन्दू वोटबैंक के सहारे सिर्फ उत्तर प्रदेश 2017 का विधानसभा चुनाव जीतने की फिराक में है। चाहे जनता को इसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े। यदि ऐसा नहीं है तो क्या यह मु्द्दा उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद नहीं छेड़ा जा सकता था।
     तो यह माना जाए कि दिल्ली के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद भाजपा का आत्मविश्वास डिगा है। ऐसी परिस्थिति में भाजपा प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी के बजाय राम के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की तैयारी में लग गई है। भाजपा को समझना होगा कि अब चुनाव में युवाओं का वोटबैंक निर्णायक भूिमका निभाने लगा है। वे युवा ही थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल पर विश्वास कर केंद्र में भाजपा की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज की तारीख में युवाओं को मंदिर से ज्यादा रोजगार व संसाधन चाहिए। पूजा से पहली जरूरत रोजी-रोटी है। वैसे भी असहनिष्णुता मुद्दे पर भाजपा को देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी आलोचना झेलनी पड़ी है। लेखकों व साहित्कारों का कोप भाजन होना पड़ा है। जब गत गणतंत्र दिवस परेड में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भाजपा पर कटाक्ष करते हुए महात्मा गांधी के अहिंसा के पाठ को याद करा गए हों। इस गणतंत्र दिवस पर फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांकोइस होलंदे को मुख्य अतिथि बनाया जा रहा हो तो ऐसे में भाजपा का राम मंदिर निर्माण का मुद्दा अपने आप में पार्टी की धार्मिक कट्टरता वाली छवि प्रस्तुत कर रहा है। यह उसकी छवि को आैर नुकसान ही पहुंचाएगा।
    दरअसल भाजपा उत्तर प्रदेश में 1990 का इतिहास दोहराने के प्रयास में है। राम मंदिर आंदोलन के नायकों को फिर से आगे लाने की तैयारी में है। कहा जा रहा आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री आैर मौजूदा राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को नई भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में मनाया गया उनका जन्मदिन इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे भी उन्होंने यह कहकर कि 'देश के सभी लोग अयोध्या में राम मंदिर देखना चाहते हैं" सनसनी फैला दी है। बात कल्याण सिंह की ही नहीं है माहौल को गर्माने के लिए भाजपा के कट्टरवादी नेता सक्रिय कर दिये गये हैं।
     भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो दिसम्बर से मंदिर निर्माण की शुरुआत हो जाने की घोषणा भी कर दी है। सुब्रमण्यम ने डीयू में राम मंदिर निर्माण पर आयोजित संगोष्ठी में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम का हवाला देते हुए कांग्रेस से मंदिर निर्माण में सहयोग देने की बात कर मामले को गर्मा दिया है।  इस संगोष्ठी को लेकर एनएसयूआई व आइसा ने जमकर विरोध तो किया पर सुब्रामण्यम स्वामी अपना काम कर गए। वह अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर, मथुरा में कृष्ण मंदिर और काशी विश्वनाथ पर किसी तरह का समझौता न करने की बात कर व्यव्सथा को चुनौती दे रहे हैं।
     राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले भाजपा सांसद विनय कटियार संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाकर राम मंदिर निर्माण  के लिए विधेयक पारित करने की सलाह दे रहे हैं। विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडि़या सोमनाथ मंदिर का हवाला देते हुए संसद में कानून बनाकर मंदिर बनाने की पैरवी कर रहे हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहले से ही राम मंदिर निर्माण की पैरवी कर रहे हैं। तो क्या ये लोग सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी कर राम मंदिर बनवा लंेगे ? इसका मतलब साफ है कि भाजपा ने सोची-समझी रणनीति के तहत इस मुद्दे को सुलगाया है। भाजपा भी जानती है कि इस मुद्दे पर मात्र विवाद ही बढ़ेगा।
    यह भी कहा जा सकता है कि 1990 के आंदोलन में कारसेवा की गई थी तो इस बार पत्थर तराशने के नाम पर राम मंदिर आंदोलन को नया रूप दिया जा रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या बिना सुप्रीम कोर्ट, सरकार और संसद के राम मंदिर का निर्माण किया जा सकता है। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हो तो ऐसे में मंदिर निर्माण की इतनी जल्दी क्यों ? भाजपा की सोच है कि इस बार भी उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार है आैर उसकी सख्ती हिन्दूओं को भाजपा के पक्ष में एकजुट करने में सहयोग करेगी। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि धार्मिक भावनाओं के सहारे वह 1990 जैसा माहौल बनाने में कामयाब हो जाएगी। भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि भावनाओं के सहारे लोगों का विश्वास ज्यादा दिनों तक नहीं जीता जा सकता है।
    मंदिर निर्माण के मुद्दे पर इस बार जनता यह जरूर पूछना चाहेगी कि मंदिर निर्माण में खर्च किया जाने वाला पैसा कहां से आएगा ? इन संगठनों के पास इतने बड़े स्तर पर धन की व्यवस्था है तो यह पैसा जन कल्याण में क्यों नहीं खर्च किया जा सकता ? अभी हाल ही में बंबई हाईकोर्ट ने सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट से कहा है कि वह अपना पैसा आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों आैर गरीबों की मदद करने में लगाए। ऐसे में धन का सवाल अदालत के जरिए भी किया जाए तो अचरज नहीं। विश्व हिन्दू परिषद अयोध्या से शुरू कर उत्तर प्रदेश में राम मंदिर  निर्माण का माहौल बनाने में जुट गई है। कानपुर में हुई बैठक में विहिप ने राम मंदिर निर्माण के लिए बड़े स्तर पर अभियान छेड़ने का निर्णय लिया है। रामसेवकपुरम एवं श्रीरामजन्मभूमि न्यास की कार्यशाला की सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर रामघाट चौराहे व लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय मार्ग पर लगाई गई पुलिस व पीएससी खराब होने जा रहे माहौल को बयां कर रहे हैं। राम मंदिर निर्माण को हवा देने की तैयारी किस स्तर पर चल रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां विश्व हिन्दू परिषद ने अपने कार्यकर्ताओं को इस काम में लगा दिया है वहीं इलाहाबाद में होने वाले माघ मेले में संत व धर्माचार्यांे को एकजुट करने की रणनीति बना ली गई है। अप्रैल माह में उज्जैन में होने वाले अर्धकुम्भ में धर्म संसद बुलाकर आंदोलन को गति देने की तैयारी है। इसका मतलब है कि मंदिर निर्माण के लिए साधु-संतों को साधने का काम शुरू हो चुका है। वैसे भी विश्व हिन्दू परिषद साधु-संतों को साथ लेकर भाजपा की मदद करती रही है।
     जगजाहिर है कि भाजपा में आरएसएस के साथ ही विश्व हिन्दू परिषद पूरा दखल रहा है। महत्वपूर्ण पदों के लिए इन संगठनों की पूरी पैरवी चलती है। वैसे भी विश्व हिन्दू परिषद ने आम चुनाव नरेंन्द्र मोदी के पक्ष में माहौल बनाया था। चुनाव के ठीक पहले 2013 में राम मंदिर निर्माण आंदोलन में अग्रिम भूमिका निभाने वाले अशोक सिंघल ने इलाहाबाद महाकुम्भ की धर्म संसद में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए नरेन्द्र मोदी के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित कराया था। सिंघल का आभार व्यक्त करने के लिए नरंेद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री की हैसियत से वहां पहुंचे भी थे।
    भाजपा भले ही विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात करती हो पर पार्टी की गतिविधियों से तो ऐसा ही लग रहा है कि उसके पास राम के नाम पर भावनाएं भड़काने के अलावा कुछ है ही नहीं। वैसे भी 'राम" इस पार्टी के लिए विशेष नहीं, महत्वपूर्ण है। इन्हीं राम के नाम को भाजपा ने भुनाकर अपना वजूद बनाया है। भाजपा को आगे बढ़ाने में राम शब्द का बड़ा योगदान रहा है। वह राम मंदिर आंदोलन का प्रभाव ही था कि भाजपा ने 1991 में उत्तर प्रदेश में तथा 1996 आैर 1998 में केंद्र में सरकार बनाई थी। भाजपा को यह भी देखना होगा कि जिस आंदोलन के बल पर वह उत्तर प्रदेश फतह करने की फिराक में है, उसी के अगुआ रहे कल्याण सिंह ने 2009 के आम चुनाव में अपने घोर विराधी माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव से हाथ मिला लिया था आैर वह उनके सहयोग से सांसद भी बने थे। अब देखना यह है कि जब कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं। उमा भारती केंद्रीय मंत्री हैं। विनय कटियार राज्य सदस्य हैं। अशोक सिंघल परलोक सिधार गए हैं। लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी से दरकिनार चल रहे हैं तो मंदिर आंदोलन कितना जोर पकड़ता है आैर भाजपा किस गति को प्राप्त होती है।

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