Friday, 5 February 2016

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना बनने जा रहा निर्णायक चुनावी मुद्दा

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना मूल्य व बकाये को लेकर किसानों के चल रहे आंदोलन ने ऐसा रूप ले लिया है कि यह मामला निर्णायक चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है। जो किसान गुस्से में अपना गन्ना जला देते थे, वे अब अपना हक मांगने सड़कों पर उतर आए हैं। आंदोलन को गरमाता देख जाति धर्म के नाम पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति करने वाले दल गन्ने पर चुनावी बिसात सजा रहे हैं। तीन साल से लगातार गन्ने का मूल्य 280 रुपए प्रति क्विंटल रहने से सपा किसानों के निशाने पर है। केंद्र में काबिज भाजपा इस मामले को भुनाने में लग गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पार्टी मानी जाने वाली रालोद से जदयू व पीस पार्टी सट रहे हैं। किसानों के एकजुट होने से दलितों के बल पर राजनीति करने वाली मायावती की भी निगाहें गन्ना किसानों पर है। वह गन्ने की समस्या को लेकर सपा सरकार को दोषी ठहरा रही हैं।
    प्रदेश में तीन साल से गन्ना मूल्य एक ही रहना, प्रदेश सरकार का किसानों को राहत न देकर चीनी मिलों को सोसायटी कमीशन, गन्ना क्रय कर आैर चीनी पर प्रवेश कर की छूट देना किसानों के आंदोलन में आग में घी का काम कर रहा है। सरकार का 14 दिनों के अंदर भुगतान मिलने का दावा भी कागजों तक ही सिमट कर रह गया है। प्रदेश सरकार ने बकाया भुगतान न देने पर 50 चीनी मिलों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज कराई पर इसका कोई खास फायदा किसानों को नहीं मिला।
   दरअसल गन्ना किसानों की समस्याओं को देखते हुए भाजपा ने भाकियू को आगे कर आंदोलन को हवा दी है। इस काम में केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान को लगाया गया है। आंदोलन की अगुआई भले ही भाकियू प्रमुख नरेश टिकैत व प्रवक्ता राकेश टिकैत कर रहे हों पर आंदोलन की असली सूत्रदार भाजपा बताई जा रही है। गत दिनों ग्रेटर नोएडा में किसान मोर्चे की बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गन्ना किसानों की समस्याओं को उठाकर पार्टी के रुख को इंगित कर दिया था। केंद्र सरकार 2400 करोड़ रुपए के बाद चीनी मिलों को 6000 करोड़ का ब्याजमुक्त कर्ज तथा साढ़े चार रुपए प्रति क्विंटल की सब्सिडी देकर गन्ना किसानों की हमदर्द होने का प्रयास कर चुकी है। वैसे अखिलेश सरकार ने भी 11 की जगह 40 रुपए प्रति क्विंटल से सब्सिडी तथा इस सत्र में 14 दिनों में गन्ने का भुगतान की घोषणा कर किसान हितैषी होने का दावा किया था। यह बात दूसरी है कि केंद्र व राज्य सरकारों के दावे कागजों तक ही सिमटे हुए हैं।
   गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर,  बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, शामली समेत लगभग एक दर्जन जिलों के किसानों की आर्थिकी मुख्य रूप से गन्ने की खेती पर निर्भर हैं। सालों से गन्ने का बकाया भुगतान न होने की वजह से उन पर कर्जा बढ़ता जा रहा है। वैसे भी इस साल पर्याप्त बारिश न होने से रबी की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है।

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