Thursday 12 September 2013

सियासत समझें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग


इसे वोटबेंक की राजनीति कहें या फिर बनाये गये हालात मुजफ्फनगर के दंगे से यह साबित हो गया कि सियासत ने अपना काम शुरू कर दिया है लड़की के साथ छेड़छाड़ के बाद लड़के की धुनाई उसके बाद लड़की के सगे भाई व मामा के लड़के की हत्या। फिर एक पक्ष की जनसभा उसके जवाब में दूसरे पक्ष की महापंचायत। ये सब दंगे की पटकथा नहीं थी तो क्या थी। धारा १४४ लगने के बावजूद महापंचायत में मुजफ्फनगर जिले के दूरदराज गांवों के अलावा आसपास के जिले सहारनपुर, बिजनौर, शामली, मेरठ, मुरादाबाद, बागपत व उत्तराखंड और हरियाणा प्रदेश से विशेष दलों के नेताओं समेत लगभग एक लाख लोग मुजफ्फनगर आये और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा इसे क्या कहेंगे ? यह प्रशासन की लापरवाही और सियासत का रंग ही था कि गांव जौली, भोपा, तिस्सा, भोकरहेड़ी से आये लोगों पर योजनाबद्ध तरीके से हमला हुआ और कई की मौत के बाद जिले में जो दंगा हुआ उसने कितने लोगों की जान ले ली। आज की तारीख में फिर से महेंद्र सिंह टिकैत की याद आ रही है। १९८९ में भोपा क्षेत्र में नईमा कांड के बाद टिकैत ने हिन्‍दू-मुस्लिम एकता की जो मिसाल कायम की थी वह सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों के मुंह पर तमाचा था। उस समय लड़की के पक्ष में ४० दिन आन्दोलन चला था। नईमा के न्याय की लड़ाई हिन्‍दुओं ने लड़ी थी। तब भोपा नहर पर नईमा की मजार बनाई गई थी। वह दौर राम मंदिर आन्दोलन का थाकितनी जगह दंगे हुए थेसांप्रदायिक दंगों की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेंकी ईं थीं। अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के दंगे चुनाव के समय ही क्‍यों होते हैं ?
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, बिजनौर, शामली, मेरठ, मुरादाबाद व बागपत जिले संवेदनशील माने जाते हैं। वोट के लिए चुनाव के समय इन जिलों में माहौराब कर वोट हथियाने का प्रयास किया जाता है और काफी नेता लोगों की लाशों पर चुनाव लड़ने का प्रयास करते हैं। वैसे तो मुस्लिमों को वोटबैंक मानने वाले दलों को यह समझना चाहिए कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जमात-ए-इस्लामी हिन्द, आल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुसवरत संगठनों ने साझा प्रेस कांफ्रेस कर दंगों के लिए दो विशेष दलों को जिम्मेदार ठहराया है। कुछ नेताओं के उकसावे में आने वाले लोगों को यह समझना होगा कि दंगों में हर वर्ग का नुकसान होता है। आगजनी होती है तो हर किसी का घर जलता है। दंगों में सबसे ज्‍यादा प्रभावित होता है गरीब। गरीब को हर दिन कमा कर लाना होता है तो स्‍वाभाविक है कि दंगों की चपेट में वही ज्‍यादा आता है। लोगों को समझना होगा कि बिजनौर, अलीगड़, मेरठ,  मुरादाबाद में दंगे कराकर क्या-क्या स्वार्थ साधे गए थे।
ज्ञात हो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकतर लोग खेती पर निर्भर हैं और बरसात में काम न होने की वजह से असामाजिक तत्त्व सक्रिय हो जाते हैं ऎसे लोग मौकों की तलाश में रहतें हैं ये लोग जरा-जरा से मामले को तिल का ताड़ बनाने में माहिर होतें हैं लोगों को इनको चिन्हित करना होगा किसी भी तरह इन्हें सक्रिय नहीं होने देना है

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