Friday 20 September 2013

क्या प्यार इतना बड़ा गुनाह है ?

हम आधुनिकता की बातें चाहे जितनी कर भी लें। कुरीतियों व रूढ़िवादिता को खत्म करने की जितनी भी कसम खा लें,  गांवों में आए परिवर्तन की चाहे जितनी भी डुगडुगी पीट लें। सच तो यह है कि परिवर्तन की राह पर हम उतने आगे नहीं बढ़ पाए हैं जितना अपेक्षित था। क्या गांव क्या शहर, प्रेम करना आसानी से लोग पचा नहीं पाते और इस अपाच्य का शिकार होते हैं युगल। लोग झूठी शान के लिए कुछ भी कर बैठते हैं, कानून को ताक पर रखकर अपने बच्चों का कत्ल भी। गत दिनों हरियाणा के रोहतक जिले के गरनावठी गांव में एक प्रेमी युगल के शादी कर लेने पर परिजनों के हत्या कर देना इसका जीता-जागता उदाहरण है इंतहा तो तब हो गई जब समाज में भय का मैसेज देने के लिए लड़के के शव के टुकड़ों को उसके ही घर के सामने फ़ेंक दिया गया।
    वैसे तो झूठी शान के लिए हत्या जैसे मामले पूरे उत्तर भारत में हो रहे हैं पर हरियाणा, प. उत्तर प्रदेश, दिल्ली व  पंजाब में इस  तरह की वारदात आम बात हो गई है। यहां खुले विचारों के लिए स्पेस कम से कम है। अक्सर लड़कियों की आजादी को लेकर पंचायतों में तरह-तरह के फरमान जारी दिए जाते हैं मसलन, जींस न पहनो, मोबाईल का इस्तेमाल हरगिज न करों और पार्क में सुबह या शाम हवाखोरी को अकेले बिल्कुल मत जाओ।  प्रेम-प्रसंग को लोग अपनी इज्जत से जोड़कर देखने लगते हैं।  जहां जरा सा मामला हुआ कि निकल गई तलवारें।  भले ही कानून के अनुसार २१ वर्ष की उम्र में लड़के व १८ वर्ष में लड़की अपनी पसंद से शादी करने के हकदार माने जाते हों पर कितने मामले ऐसे हुए कि प्रेम को गुनाह मानते हुए सर कलम कर दिए गए।  कहीं लड़के, कहीं लड़की तो कहीं दोनों को अपनी जान गंवानी पड़ी।  ऐसे मामलों में अक्सर देखने में आता है कि लड़की पक्ष के लोग ही वारदात को अंजाम देते हैं।  हरियाणा व प. उत्तर प्रदेश  में भले ही एक विशेष वर्ग सगोत्र को लेकर बवाल मचाता हो पर हाल ही में एक सामाजिक संगठन के किये गए सर्वे के अनुसार इस तरह के मामलों में ७२ फीशद  अंतरजातीय विवाह, १५ अपनी ही जाति के, तीन फीसद  सगोत्र और एक फीसद  अंतर्धार्मिक शादियां कारण रहीं।
     अक्सर देखने में आता है कि एक विशेष वर्ग में सगोत्र विवाह के खिलाफ तालिबानी झंडा बुलंद कर दिया जाता है।  दरअसल इस तरह के लोग आज भी रूढ़िवादी समाज का हिस्सा बने हुए हैं।  ये लोग आधुनिक समाज की बदलती विचारधारा में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। हरियाणा, दिल्ली व  प. उत्तर प्रदेश में लिंगानुपात की स्थिति ख़राब है। रूढ़िवादी लोग तर्क देते हैं कि सगोत्र में जन्में सभी व्यक्ति एक ही आदि पुरुष की संताने हैं।  वे समगोत्री विवाह को वर्जित मानते हैं।  ऐसे लोगों को देखना चाहिए कि 1950 में बंबई उच्च न्यायालय में हरिलाल कनिया और गजेंदर गडकर की दो सदस्यीय पीठ ने सगोत्र हिन्दू विवाह को कुछ शर्तों के साथ वैध ठहराया था।
सगोत्र विवाह का विरोध खप पंचायतों में जयादा देखने को मिलता है।  ये पंचायतें हर्षवर्धन के काल में सातवीं शताब्दी में अस्तित्व में आयी थीं।  प्राचीनकाल में प. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का व्यक्ति ही पंचायत का महामंत्री हुआ करता था। अंग्रेजी हुकूमत में सबसे बड़ी खाप पंचायत मुजफ्फरनगर की ही हुआ करती थी। खाप पंचायतों ने देश में बड़ी पंचायतें कर देश व समाज हित में भी निर्णय लिए हैं। युद्ध के दौरान भी खाप पंचायतों ने देशभक्ति की मिसाल पेश की थी प्राचीनकाल में भी इन महापंचायतों ने युद्ध के दौरान राजाओं-महाराजाओं की मदद की। हां देश में परिवार की ज्जत के लिए कत्ल की परिपाटी पुरानी है। भले ही हमारे समाज में इस तरह के मामले रोकने के लिए तरह-तरह के कानून बने हों पर समाज का संवेदनशील मुद्दा होने के कारण सरकारें  भी इन मामलों में हस्तक्षेप करने से कतराती रही हैं।  हमें यह भी देखना होगा कि समाज के ठेकेदार भले ही महिलाओं के अधिकार के लिए तरह-तरह के दावे करते हों पर आज भी पुरुष प्रधान समाज में लड़की के अपने जीवन साथी चुनने पर परिजन इसे अपनी इज्जत के साथ खिलवाड़ मानते हैं। ऐसा भी नहीं हैं कि ऐसी वारदात को रोकने के लिए देश में कोई प्रयास नहीं हो रहा है।  सरकार के स्तर पर अंतरजातीय अथवा दूसरे धर्म में विवाह करने वाले लोगों के लिए विशेष विवाह अधिनियम के तहत दी जाने वाले ३० दिनों की नोटिस अवधि को भी समाप्त करने पर विचार किया जा रहा है।  हॉल ही में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने  पी. चिदंबरम की अगुआई में इस बाबत आठ सदस्यीय मंत्री समूह का गठन किया है।  केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अलग से एक विशेष समिति का गठन कर रहा है।

2 comments:

  1. अकसर खबर के रुप में पढ़ते हुए तो हमें खाप पंचायतों के निर्णय ऊल-जुलूल लगते हैं। परन्‍तु सगोत्र विवाह-वर्जना एक सामाजिक परिपाटी है। आखिर कोई कानून सा मसविदा या अधिनियम बहन-भाई का आपस में विवाह कैसे करवा सकता है। इन बातों को समाज की मूल्‍यहीनता के रुप में क्‍यों नहीं देखा जा रहा है। लड़की-लड़के का प्‍यार क्‍या शारीरिक मिलन के वास्‍ते विवाह की औपचारिका पूरी करके नैतिक सिद्ध हो सकता है। इस बात पर भी सोचने की आवश्‍यकता है।

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  2. झूठी इज्जत ही जिनकी जिन्दगी है उनके लिए क्या कहना ?

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