सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को जब अपने पुत्र अखिलेश यादव की साफ-सुथरी छवि और उत्तर प्रदेश में हुए ऐतिहासिक विकास कार्यांे पर गर्व होना चाहिए था। प्रदेश को अच्छा शासन देनेपर जब उन्हें अखिलेश यादव की पीठ थपथपानी चाहिए थी। जब उन्हें सीना चौड़ा कर देश की राजनीति में संदेश देन चाहिए था कि सीखो उनके बेटे से राजनीति, जिसने उनसे भी आगे बढ़कर जनहित के कार्य किए। ऐसे समय में वह खुद देश के उभरते हुए समाजवादी सितारे को धूमिल करने में लग गए। जब देश में समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया व लोकनायक जयप्रकाश नारायण के तैयार किए गए समाजवादी अपने रास्ते से भटकने लगे तो आगे बढ़कर ऐसे नौजवान ने समाजवाद का झंडा संभाला जिसने अपने पिता को बस संघर्ष करते ही देखा। अखिलेश यादव गत दिनों जनहित और समाजवादी विचारधारा के पक्ष में जो निर्णय लिए उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया की याद दिला दी। उन्होंने दबाव में गलत काम के लिए बोलने पर नेताजी को जो आइना दिखाने का प्रयास किया उसने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का दिल जीत लिया। दीपक सिंघल को मुख्य सचिव और गायत्री प्रजापति पहले हटाने और फिर मंत्री बनाने पर अखिलेश यादव की जो किरकिरी हुई उसके लिए खुद मुलायम सिंह यादव जिम्मेदार थे। नेताजी आपके राज में नीरा यादव और अखंड प्रताप सिंह ने मुख्य सचिव रहते सरकार की जो छवि धूमिल की थी क्या वह सही थी ?
अखिलेश यादव की पांच साल की सरकार में उन पर व्यक्तिगत रूप से कोई आरोप न लग सका। निश्चित रूप से उनका पहला ही कार्यालय प्रदेश के अन्य मुख्यमंत्री रहे नेताओं पर भारी पड़ रहा है। समाजवादी विचारधारा के लिए दागी लोगों को पार्टी में न घुसने देने के उनके निर्णय ने उनके समकालीन नेताओं से कहीं आगे कर दिया। जहां उन्होंने बाहुबलि डी.पी. यादव को पार्टी में न घुसने दिया, वहीं मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का भी विरोध किया। इन लोगों ने अखिलेश यादव का विरोध ताक पर रखकर मुलायम सिंह में विश्वास जताया था। ऐसे में नेताजी ने अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को गले लगाकर अखिलेश यादव को नीचा नहीं दिखाया बल्कि अपना खुद का कद घटाया है।
निश्चित रूप से संघर्ष के समय में अमर सिंह और शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी और नेताजी आपका साथ दिया। उसके हिसाब से उन्हें सम्मान भी मिल रहा है। अमर सिंह राष्ट्रीय महासचिव राज्यसभा सदस्य और संसदीय बोर्ड में हैं तो शिवपाल सिंह यादव प्रदेश के अध्यक्ष। इसमें दो राय नहीं कि समाजवादी पार्टी को यहां तक नेताजी अपने दम पर खींच लेकर आए हैं पर क्या 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के चेहरे पर वोट नहीं मिला ? क्या अखिलेश यादव ने परिवार और बड़े नेताओं के दबाव से निकलकर प्रदेश में विकास के ऐतिहासिक कार्य नहीं किए ? क्या यदि दोबारा सपा की सरकार बनती है तो अखिलेश यादव मुख्यमंत्री नहीं बनने चाहिए ? क्या अखिलेश यादव से योग्य चेहरा समाजवादी पार्टी में है ? यदि है तो कौन है ? यदि नहीं तो अखिलेश यादव के पसंद के प्रत्याशी क्यों नहीं बनने चाहिए ?
जब चुनाव में 25 फीसद युवा निर्णायक भूमिका निभा रहा हो। यह युवा वह है जिस पर किसी जाति धर्म का असर नहीं पड़ता है और आज की तारीख में युवा वर्ग अखिलेश यादव में उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का भविष्य देख रहा है तो नेताजी आप इस युवा वर्ग को क्यों नाराज करने में लगे हैं? अखिलेश यादव की इच्छा के विरुद्ध बाहुबलि अतीक अहमद और खनन माफिया गायत्री प्रजापति को टिकट देकर आप क्या साबित करना चाहते हैं ?
नेताजी तो यह माना जाए कि जितने भी बुजुर्ग नेता हैं बस दिखावे के ही लिए युवाओं का आगे बढ़ाने की बात करते हैं। जितने भी टिकट आपने काटे हैं ये सब युवा नेता हैं। उत्तर प्रदेश के योग्य मुख्यमंत्री को नीचा दिखाकर आप लोगों में क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या अब भी आप अखिलेश यादव से लंबी राजनीतिक पारी खेलने की स्थिति में है ? क्या आप देश के उभरते हुए समाजवादी चेहरे को ढकने का प्रयास नहीं कर रहे हंै ? आपने हमेशा ही जनहित और देशहित की बात कही है। समाजवादियों के संघर्ष का अध्ययन कर काम करने की बात कही है। जब आपका खुद का बेटा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में समाजवाद का झंडा बुलंद करने चला है तो आप ही उसके इस बुलंद इरादे में रोड़ा बनने लगे। नेताजी अब अखिलेश यादव को कोई रोकना वाला नहीं है। आप क्यों नायक से खलनायक बन रहे हंै। आज की तारीख में अखिलेश यादव का चेहरा ऐसा बन चुका है कि वह पूरी समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ रहे हैं।
सोचिए वह भी आपके ही बेटे हैं कहीं यदि उन्होंने अलग पार्टी बनाकर अपने प्रत्याशी चुनावी समर में उतार दिए तो आपके साथ खड़े नेताओं की राजनीति का क्या होगा ? नेताजी समझ लीजिए यदि आप लोग अपने पथ से न भटके होते तो आज देश में जहां संघी खड़े हैं वहां समाजवादी होते। संघियों को परास्त करने का जज्बा अखिलेश यादव में है उन्हें देश में समाजवादियों का परचम लहराने दीजिए। सपा में बने इस माहौल में अखिलेश यादव को भी संदेशनात्मक और कड़े निर्णय लेने होंगे।
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