दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और स्वराज इंडिया पार्टी के नेता तथा सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण के बाद अब कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते सहारा समूह से रिश्वत लेने के आरोप लगाए हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष भले ही इसे राजनीतिक स्तर पर देख रहा हो पर मेरा मानना है कि हम लोग इस मामले को इस तरह से देखें कि एक संस्था की वजह से हमारे देश के प्रधानमंत्री का नाम बदनाम हो रहा है। इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भले ही साम्प्रदायिक दंगों को लेकर तरह-तरह के आरोप लगते रहे हों पर उनकी ईमानदारी पर अभी तक कोई विरोधी भी आरोप नहीं लगा पाया था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, हालात और उनकी राजनीतिक कार्यशैली भी उनकी ईमानदार छवि बखान कर रही है। हां आयकर विभाग के छापे पड़े दो साल से ज्यादा बीत गए हैं। ऐसे में सहारा समूह के खिलाफ कार्रवाई न होना कहीं न कहीं केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है। ऐसे में सहारा समूह और आयकर विभाग पर जरूर जांच बैठनी चाहिए। आयकर विभाग पर इसलिए क्योंकि दो साल पहले नोएडा कार्यालय में पड़े छापे में वहांं से 134 करोड़ रुपए बरामद हुए थे। इस मामले में सहारा ग्रुप पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? यदि प्रधानमंत्री को रिश्वत देने संबंधी दस्तावेज आयकर विभाग को सहारा समूह से बरामद हुए थे तो इस मामले पर जांच क्यों नहीं बैठाई गई।
सहारा समूह पर कोई कार्रवाई न होने से कहीं-कहीं प्रधानमंत्री की कार्यशैली पर भी उंगली उठ रही है। इन आरोपों के बाद प्रधानमंत्री पर सहारा समूह के खिलाफ उच्चस्तरीय जांच कराने की और नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है। सहारा ग्रुप के खिलाफ जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके सुप्रीमो सुब्रत राय देशभक्ति के आड़ में लम्बे समय से देश की भोली-भाली जनता को ठग रहे हैं। भेड़ की खाल में घूम रहे इस भेड़िये ने जनता के खून-पसीने की कमाई पर जमकर अय्याशी की और बड़े स्तर पर नेताओं व नौकरशाह को कराई है। देश में कालेधन के खिलाफ माहौल बन रहा है और जगजाहिर है कि सहारा हमारे देश का स्विस बैंक रहा है।
निवेशकों के हड़पे पैसे के बदले सहारा समूह जो पैसा सुप्रीम कोर्ट में जो पैसा जमा करा रहा उसका स्रोस भी पूछा जाना चाहिए। इस संस्था पर जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जब नोएडा से 134 करोड़ रुपए जब्त किए गए थे, उस समय सहाराकर्मियों को कई महीने से वेतन नहीं मिल रहा था तथा सहारा प्रबंधन संस्था के पास पैसा न होने का रोना रो रहा था।
जांच इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि इस संस्था के चेयरमैन सुब्रत राय ने राजनीतिक दलों की पकड़ के चलते बनाए अपने रुतबे के बल पर देश में बड़े स्तर पर अनैतिक काम किए हैं। इस संस्थान में मालिकान और अधिकारी खूब अय्याशी करते हंै पर कर्मचारियों को भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है। दिखावे को तो सुब्रत राय देशभक्ति का ढोल पीटते फिरते हैं पर जमीनी हकीकत यह है कि यहां पर कर्मचारियों का जमकर शोषण और उत्पीड़न किया जाता रहा है। लंबे समय से कर्मचारियों का प्रमोशन नहीं हुआ है। 12-16 महीने का वेतन बकाया है। जो कर्मचारी अपना हक मांगते हैं उन्हें या तो नौकरी से निकाल दिया जाता है या फिर कहीं दूर स्थानांतरण कर दिया जाता है। अपना बकाया वेतन व मजीठिया वेजबोर्ड मांग रहे 22 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडिया में मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से वेतन नहीं दिया जा रहा है। गत सालों में एग्जिट प्लॉन क तहत कितने कर्मचारियों की नौकरी तो ले ली पर हिसाब अभी तक नहीं किया गया। इन कर्मचारियों ने पूरी जवानी इस संस्था को दे दी और अब वे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। यह संस्था अपने को बड़ा देशभक्त और भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत होना दिखाती है पर कर्मचारियों को नमस्ते, प्रणाम की जगह 'सहारा प्रमाणÓ करवा कर अपनी गुलामी कराती है। आगे बढ़ने का एकमात्र फार्मूला चरणवंदना और वरिष्ठों को अय्याशी कराना है।
देशभक्ति के नाम दिखावा तो बहुत किया जाता है पर सब अपने कर्मचारियों को ठग कर। 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में शहीद हुए हमारे सैनिकों के परिजनों की देखभाल के नाम पर संस्था ने अपने ही कर्मचारियों से 10 साल तक 100-200-500 रुपए तक वेतन से काटे। उस समय चेयरमैन ने यह बोला था कि दस साल पूरे होने पर यह पैसा ब्याज सहित वापस होगा पर किसी को कोई पैसा नहीं मिला। यह रकम अरबों-खरबों में बैठती है। इस मामले की उच्च स्तरीय जांच बैठाई की जाए तो पता चल जाएगा कि इस संस्था ने शहीदों की लाश पर ही अपने ही कर्मचारियों से अरबों-खरबों की उगाही कर ली।
गत साल चेयरमैन सुब्रत राय जब जेल गए तो अपने को जेल से छुड़ाने के नाम पर अपने ही कर्मचारियों से 10,000-100000 रुपए तक ठग लिए। जब हक की लड़ाई लड़ रहे कर्मचारियों में से एक प्रतिनिधिमंडल जेल में जाकर चेयरमैन से मिला तथा इस रकम के बारे में पूछा तो उन्होंने बड़ी ही बेशर्मी से यह कहा कि संस्था में किसी स्कीम में धन कम पड़ रहा था। इसलिए अपने ही कर्मचारियों से पैसा लेना पड़ा। यह पैसा कर्मचारियों ने ऐसे समय में दिया था जब कई महीने से उन्हें वेतन नहीं मिला था। किसी कर्मचारी ने अपनी पत्नी के जेवर बेच कर ये पैसे दिए तो किसी ने कर्जा लेकर। कर्मचारियों ने हर बार अपने चेयरमैन पर विश्वास किया और इस व्यक्ति ने हर बार उन्हें इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए बस ठगा। लंबे समय तक वेतन न देकर इस संस्था ने कितने कर्मचारियों के परिवार तबाह कर दिए। कितने बच्चों का जीवन बर्बाद कर दिया। कितने कर्मचारियों को मानसिक रूप से बीमार बना दिया।
देश का दुर्भाग्य है कि सब कुछ जानते हुए भी विभिन्न दलों के नेता इस संस्था के कार्यक्रमों में पहुंच जाते हैं। गत दिनों जब नोएडा के मेन गेट पर बड़ी तादाद में कर्मचारी जब अपना हक मांग रहे थे तो किसी दल के नेता का दिल नहीं पसीजा पर 18 दिसम्बर को लखनऊ में सहारा न्यूज नेटवर्क की ओर से थिंक विद मी, देश आदर्श बनाओ, भारत महान बनाओ कार्यक्रम किया गया तो विभिन्न दलों के नेता उस कार्यक्रम में पहुंचे और बड़ी-बड़ी बातें की। इस कार्यक्रम में लगभग सभी मुख्य दलों के नेता मौजूद थे। इनमें कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राजबब्बर और प्रभारी गुलाम नबी आजाद भी मुख्य रूप से उपस्थित थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर सहारा समूह से रिश्वत लेने का आरोप लगा रहे हैं तो उन्हें यह भी समझना चाहिए कि यदि सहारा ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते उन्हें रिश्वत दी होगी तो कुछ गलत काम पर पर्दा डालने के लिए ही दी होगी। वैसे भी संस्था के चेयरमैन के जेल जाने के बाद सहारा के काले कारनामे जगजाहिर हो चुके हैं तो वह क्यों नहीं सहारा के कार्यक्रमों में जाने से अपने नेताओं को रोकते और क्यों नहीं सहारा के निवेशकों के पैसे हड़पने के केस को लड़ रहे अपने नेता कपिल सिब्बल को उनकी नैतिक जिम्मेदारी समझाते ? यदि राजनीतिक दल वास्तव में देश में अब कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो अपने दलों की छवि सुधारने के साथ ही उन कारपोरेट घरानों के खिलाफ मोर्चा खोलें उनके वजूद का इस्तेमाल करते हुए अपने काले कारनामों से जनता व देश को ठग रहे हैं।
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