Tuesday 18 October 2016

नेताजी पर भारी अखिलेश की विचारधारा

      डॉ. राम मनोहर लोहिया के अनुयाई तथा चौधरी चरण सिंह के सबसे प्रिय शिष्य रहे जिद्दी स्वभाव के मुलायम सिंह यादव ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके राजनीतिक जीवन में ऐसा दिन भी आएगा कि उनका खुद का बेटा उन्हें अपनी बात मनवाने क लिए मजबूर कर देगा। जिस बेटे को उन्होंने देश के सबसे बड़े व सियासी प्रदेश उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया उसी बेटे से उनका वैचारिक मतभेद हो जाएगा। मतभेद भी ऐसा कि पिता-पुत्र दो खेमे में बंट जाएं। हुआ जो भी हो। किसी भी कारण से हो। अखिलेश यादव ने दिखा दिया कि उनके अंदर भी नेताजी वाला ही कलेजा है। यह अखिलेश यादव की छवि ही है कि चुनाव के बाद विधायकों के चुनने पर ही मुख्यमंत्री बनाने वाले पार्टी मुखिया को अंतत: अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करना ही पड़ा।
     बात वैचारिक मतभेद और पिता व पुत्र की हो रही है तो समय, हालात,  सही, गलत और नीतियां, सिद्धांत व उसूलों की भी होनी चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि मुलायम सिंह का जीवन विभिन्न संघर्षांे से होते हुए गुजरा है। इसमें भी दो राय नहीं कि अखिलेश यदि आज इस बुलंदी पर पहुंचे हैं तो अपने पिता के संघर्ष के बल पर। हां यदि आज के हालात की बात करें तो लोकप्रियता व छवि के मामले में अखिलेश यादव अपने पिता से आगे निकल गए हैं।
     समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव लोहिया जी की नीतियों पर चलने को मानते रहे हैं। यदि बात समाजवाद की हो। लोहिया की नीतियों की हो। ईमानदारी की हो। कर्त्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की हो। उत्तर प्रदेश को साफ-सुथरी सरकार देने की हो तो आज की तारीख में अखिलेश यादव की विचारधारा व तर्क मुलायम सिंह यादव पर भारी पड़ रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव के साथ सारथी के रूप में काम करने वाले अमर सिंह का पार्टी को आगे बढ़ाने में बहुत योगदान रहा है पर उनके दोबारा पार्टी में आने के बाद जो घटनाक्रम हुए। उन सब पर नजर डालें तो मुलायम सिंह का अमर सिंह को अपने लेटरपेड से महासचिव बना देना। दीपक सिंघल को पहले मुख्य सचिव पद से हटवाना और फिर बनवाने के लिए दबाव डालना। गायत्री प्रजापति को पहले हटवाना अखिलेश यादव के विरोध के बावजूद फिर बनवाने की बातें बाजार में आना। अखिलेश यादव के मुखर विरोध के बावजूद बाहुबलि मुख्तार अंसारी को पार्टी में लेना। अखिलेश यादव की वजह से प्रधनामंत्री न बन पाने की बात कहना लोहिया की नीतियों के ठीक विपरीत है। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने न कभी गलत लोगों को आगे बढ़ाया और न ही कभी किसी पद की लालसा रखी। खुद मुलायम सिंह यादव भी विभिन्न मंचों से कहते रहे हैं कि असली समाजवादी कभी किसी पद की लालसा नहीं रखता है। कार्यकाल की बात करें अखिलेश यादव का कार्यकाल नेताजी के सभी कार्यकालों पर भारी पड़ता दिख रहा है। नेताजी के कार्यकाल विभिन्न विवादों से घिरे रहे हैं पर अखिलेश यादव के कार्यकाल में पारिवारिक हस्तक्षेप के चलते भल ही उनको कई बार कटघरे में खड़ा किया गया हो पर व्यक्तिगत रूप से अखिलेश यादव को किसी ने गलत नहीं बताया।
     उधर अखिलेश यादव पार्टी ने पार्टी की छवि साफ-सुथरी बनाए रखने के लिए जहां बाहुबलि डीपी यादव को पार्टी में नहीं आने दिया वहीं मुख्तार अंसारी का लगातार विरोध करते रहे। पिता के पार्टी के मुखिया होने के बावजूद अखिलेश यादव ने राजनीति में आते ही संघर्ष का रास्ता अख्तियार किया। युवा प्रकोष्ठों के अध्यक्ष बनने पर भी उन्होंने युवाओं के कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी में काम किया।
    2012 के चुनाव में अखिलेश यादव ने साइकिल रैली निकालकर चुनावी माहौल बनाया तथा पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर ईमानदार मुख्यमंत्री के रूप में काम किया। हां अपने पिता मुलायम सिंह यादव, चाचा शिवपाल सिंह यादव, तुनकमिजाज आजम खां व दूसरे चाचा रामगोपाल यादव की वजह से उन्हें कई बार तरह-तरह के समझौते करने पड़े। कानून व्यवस्था समेत कई मामले में उनको फजीहत का भी सामना करना पड़ा। जब प्रदेश में चार मुख्यमंत्री बताए जा रहे थे तो किसी तरह से अखिलेश यादव इस चक्रव्यू से बाहर निकले और प्रदेश के विकास में ऐतिहासिक फैसले लिए। मैं उनकी सरकार की उपलब्धि तो नहीं गिनवाऊंगा पर प्रदेश में दिखाई दे रहे विकास कार्य खुद उनकी उपलब्धियां बखान कर रहे हैं।
     सरकार को पांच साल पूरे होने जा रहे हैं पर अखिलेश सरकार में चारों ओर से दबाव के बावजूद कोई घोटाला न होना अखिलेश को मजबूत इरादे वाला नेता दर्शाता है। आज की तारीख में जिस तरह से अखिलेश यादव पार्टी की छवि को साफ-सुथरी रखने के लिए न केवल पार्टी महासचिव अमर सिंह चाचा शिवपाल सिंह यादव बल्कि अपने पिता मुलायम सिंह यादव से भी मोर्चा ले रहे हैं यह संघर्ष उनके राजनीतिक कद को बहुत आगे ले जा रहा है।
   ऐसे नाजुक मोड़ पर देश की किसी भी पार्टी में कोई भी नेता पार्टी के लिए इतना बड़ा साहस नहीं दिखा पा रहा है। भले ही लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव में पार्टी को खींचने का माद्दा रहा है पर आज की तारीख में अखिलेश यादव ही हैं जो पार्टी के खेवनहार बन सकते हैं।

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