Tuesday 8 November 2016

अखिलेश को अपने दम पर लड़ना होगा चुनाव !

मुख्यमंत्री बनने के बाद तमाम दबाव को झेलते हुए सरकार चलाने वाले अखिलेश यादव को न चाहते हुए भी कई तरह के समझौते करने पड़े। यही वजह रही कि विरोधी दल प्रदेश में चार मुख्यमंत्री होने की बात करने लगे थे। इसे अखिलेश यादव की विचारधारा कहें या फिर दृढ़ इच्छा कि सरकार के अंतिम दौर में उन्होंने पार्टी में जो स्टैंड लिया वह समाजवाद के लिए मिसाल बन गया। विचारधारा, पार्टी और प्रदेश के लिए वह न केवल व्यवस्था बल्कि अपने चाचा-पिता पार्टी के मुखिया से भी टकरा गए।
समय-समय पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के दबाव में समझौते करने की वजह फजीहत झेलने वाले अखिलेश यादव ने जब निर्णय लिया तो राजनीतिक जगत को भौचक्का कर दिया। निर्णय भी ऐसा कि किसी भी कीमत में वह अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करेंगे। विचारधारा भी समाजवाद के प्रेरक डॉ. राम मनोहर लोहिया की। जिन परिस्थिति में अखिलेश यादव ने विचारधारा और व्यवस्था को लेकर दम भरा है, उनके इस निर्णय ने लोहिया जी के फैसलों की यादें ताजा कर दी। आजाद भारत में लोहिया जी के बाद अन्याय का इस हद तक यदि किसी ने विरोध किया है तो वह अखिलेश यादव हैं। भले ही नेताजी महागठबंधन की कवायद में लगे हों पर अखिलेश यादव का आत्मविश्वास ही है कि विचारधारा, जुझारूपन, प्रदेश का विकास और युवाओं के बल पर वह चुनाव जीतने निकल पड़े हैं।
5 नवम्बर को लखनऊ में मनाए गए समाजवादी पार्टी के स्थापना दिवस पर लोहिया जी के जब मैं मर जाऊंगा तब लोग मुझे याद करेंगे के कथन का हवाला देतेे हुए अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव की ओर इशारा करते हुए कहा कि कुछ लोग जब समझेंगे जब पार्टी में कुछ नहीं बचेगा तो उनकी सोच पर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्हें भेंट की गई तलवार के बारे में तलवार तो देते हो पर चलाने का अधिकार नहीं देते कहकर वह बहुत कुछ कह गए।
इन सब के बीच अखिलेश यादव को सोचना होगा कि उनके इस स्टैंड से जहां साफ-सुथरी छवि वाले समाजवादियों में उनके प्रति आस्था बढ़ी है वहीं राजनीतिक के क्षेत्र में करियर बनाने वाले युवा अखिलेश यादव की अगुआई में राजनीतिक सफर शुरू करने की सोचने लगे हैं। अखिलेश यादव को यह भी देखना होगा कि लंबे समय से पुराने समाजवादियों पर अपने पथ से भटकने के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में उनपर बहुत कुछ निर्भर करता है। आज की तारीख में देश जिस हालात से जूझ रहा है। ऐसे में सच्ची समाजवादी विचारधारा ही है जो सभी वर्गों को साथ लेकर देश को विकास के रास्ते पर ले जा सकती है।
उत्तर प्रदेश में चल रही महागठबंधन कवायद से अखिलेश यादव को नुकसान ही नुकसान होगा। यदि यह महागठबंधन चुनाव जीतता है तो इस जीत का श्रेय विभिन्न पार्टियों के बड़े नेता ले जाएंगे और उनका कद घटेगा। महागठबंधन के रूप में चुनाव लड़ने से अपनी पार्टियों के समाजवाद से भटके नेताओं तथा अन्य दलों की वजह उनकी छवि भी धूमिल होगी। साथ ही जिन युवाओं का रुझान अखिलेश यादव के प्रति बढ़ा है वह भी प्रभावित होगा। अखिलेश यादव को लंबी पारी खेलने के लिए युवा समाजवादियों की अगुआई करते हुए अपने दम पर चुनाव लड़ना होगा। अखिलेश यादव की अगुआई में देश युवा समाजवादियों की बड़ी फौज खड़ी होने की पूरी संभावनाएं है। यदि अखिलेश यादव ने अपने चेहरे पर यह चुनाव जीत लिया तो आने वाले समय में पुराने समाजवादी भी अखिलेश यादव की अगुआई में समाजवाद का नारा बुलंद करते दिखाई देंगे और देश में एक नए समाजवाद की स्थापना होगी।

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