Friday, 29 April 2016

संघर्ष अपनाकर लड़ें समस्याओं से

    इसे समस्याओं में जकड़े व्यक्ति की टूटती मनोदशा कहें, एकल परिवार में रहने के कारण एक-दूसरे के दुख-दर्द न बांट पाना कहें,  बेरोजगारी की मार कहें, अच्छे संस्कारों के अभाव में भटकना या संघर्ष से बचने की आंतरिक कमजोरी या फिर भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था से प्रभावित होती जिंदगी। वजह कुछ भी हो मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण आदमी में समस्याओं से लड़ने का माद्दा कम होता जा रहा है। छोटी-छोटी परेशानियों से लोग टूट जा रहे हैं। हाल यह है कि आए दिन आत्महत्याओं की खबरें सुनने को मिल रही हैं। हाल ही में भरतपुर में पॉलिटेक्निक की एक छात्रा ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि एक युवक ने प्रेम कर उसे धोखा दे दिया। इस छात्रा ने सुसाइड नोट में लड़के को किसी से प्यार कर धोखा न देने की नसीहत देते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की है।
    दरअसल आधुनिकता की दौड़ में काफी युवा अपने पथ से भटक जा रहे हैं आैर गलत कदम उठा ले रहे हैं। ये युवा तो जान से जा ही रहे हैं साथ ही इनके अभिभावक भी बूरी तरह से टूट रहे हैं।  गलत राह अपनाने वाले युवा यह भी नहीं समझ पाते कि उनके इस कदम से अभिभावकों की स्थिति क्या हो रही है। जो अभिभावक इनके पालन-पोषण में अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं। बड़े-बड़े अरमान पाले रहते हैं उन्हें ये लोग बीच रास्ते में छोड़ दे रहे हैं। बात प्रेम-प्रसंग के चलते आत्महत्या की ही नहीं है। विभिन्न कारणों से बड़े स्तर पर लोग आत्महत्या कर ले रहे हैं। हमारे देश में  आत्महत्या की घटनाओं का आलम यह है कि गत दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में भी विश्व में सबसे अधिक आत्महत्याएं हमारे देश में होने का दावा किया गया था। डब्ल्यूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशिया संबंधी रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश के युवाओं आैर उम्रदराज लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है।
   इसे देश की विडम्बना ही कहा जाएगा कि तमाम संसाधनों के बावजूद देश में ऐसे हालात पैदा कर दिए गए हैं कि जहां लोगों को संघर्ष करके अपने को साबित करना चाहिए वहीं परेशानियों से जूझने के बजाय बड़े स्तर पर लोग ईश्वर के इस अनमोल तोहफे को खत्म ही कर दे रहे हैं। लोग कुछ भी कहें पर मेरा मानना है कि समझौतावादी प्रवृत्ति के चलते आदमी आंतरिक रूप से कमजोर होता जा रहा है। सच का साहस न जुटा पाना, झूठ का सहारा लेना, गलत को गलत न कहना, व्यवस्था में अपने को ढाल लेना, संघर्ष से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाना आदमी को कमजोर कर रहा है, जिसका असर आदमी जिंदगी में यह हो रहा है कि आदमी की परेशानियों से जूझने की क्षमता कम होती जा रही हैं। किसी भी तरह से संसाधन जुटाना तथा कोई भी समझौता कर एशोआराम की जिंदगी बिताना आदमी की मानसिकता बनती जा रही है। जिस देश में शालीनता ही आदमी का गहना माना जाती थी। उस देश में अब झूठ-फरेब, चालाकी से काम निकालने वाले को चतुर समझा जा रहा है। यही वजह है कि संघर्ष, निर्भीकता, सत्य, देशभक्ति, अनुशासन, साहस, आचरण जैसे रचनात्मक शब्द आदमी के जीवनशैली से गायब होते जा रहे हैं। जब कभी बड़ी मुसीबत व्यक्ति पर  आती है तो वह जल्द टूट जाता है तथा आत्महत्या जैसा कायरतापूर्ण कदम उठा लेता है।
   मेरा मानना है कि सही आचरण, दूसरों के भावनाओं की कद्र करना, गलत बात का विरोध करना, दबाव के आगे न झुकना, जीवन में मेहनत करना आदमी को आंतरिक रूप से मजबूत बनाता है आैर कितनी भी परेशानी पड़ जाए वह अपने पथ से नहीं डिगता। देश में आत्महत्या की घटनाएं कम हों,  इसके लिए लोगों को अपना जमीर जगाकर अपने हक आैर अधिकार के लड़ना सीखना होगा। संघर्ष ही ऐसा माध्यम है जो आत्महत्या की घटनाओं पर रोक लगा सकता है। संघर्ष से आदमी आंतरिक से मजबूत होता है तथा उसकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जाती है। कम समय आैर किसी भी तरह से संसाधन जुटा लेने की प्रवृत्ति आदमी को खोखला कर दे रही है। अच्छे संस्कार आैर नैतिक शिक्षा के अभाव में हमारी नई पीढ़ी अपने पथ से भटक रही है। कई बार गलत संगति, पश्चिमी सभ्यता में ढलने की कोशिश, कम समय में अधिक पैसा कमाने की होड़ भी आत्महत्या का कारण बन जाती है।
   आत्महत्या मामलों में यह समझ लेना चाहिए कि आत्महत्या जैसा कदम एक पल में नहीं नहीं उठाया जा सकता। जब आदमी इस ओर जा रहा होता है तो कुछ ऐसे संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं कि डिप्रेशन में होकर मिलनसार न होना, लापरवाहीपूर्वक कार्य करना, हावभाव, स्वभाव व व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देना, नशे की लत लग जाना। बात-बात में झल्ला जाना, जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर बिल्कुल न बोलना, एकाकीपन, एकांत स्थान में बार-बार जाना, समय-बेसमय खाना खाना, जरूरत से कम या ज्यादा खाना आदि ऐसे संकेत हैं जो व्यक्ति के अति तनाव में ले जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति अवसाद में घिरा हो तथा तरह-तरह की परेशानियां उसे सता रही हों तो उसे चाहिए कि वह अकेला न रहे। उसे घर-परिवार में रहकर हंसना-बोलना, चाहिए। मनोरंजक साधनों को आनंद लेना चाहिए। मित्रों के साथ थोड़ा दूर घूमने निकलना चाहिए। किसी भी तरह के खेल खेलकर मन बहलाना चाहिए। या फिर बच्चों के साथ बच्चा बनकर उनके साथ खेलना चाहिए। इस प्रकार के कुछ उपाय अगर व्यक्ति उपाय में के रूप में इस्तेमाल करे तो वह अवसाद से बाहर आ सकता है।
   हमें यह समझना होगा कि मानव जीवन ईश्वर की दी हुई अनुमोल भेंट है। इसे आप अपने ही हाथों से कैसे नष्ट कर सकते हैं। इसे नष्ट करने का अधिकार केवल ईश्वर को है। आत्महत्या कर आप ईश्वरीय संरचना में भी हस्तक्षेप करते हैं। जब भी आदमी के मन में आत्महत्या जैसा ख्याल आए दृढ़तापूर्वक उस विचार को झटक दें। ऐसी स्थिति में अपने मनोबल को मजबूत कर समस्या को चकनाचूर कर देने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि हमें समस्या को मिटाना है स्वयं को नहीं। मेरा मानना है कि आत्महत्या मामलों में काफी हद तक समाज भी जिम्मेदार होता है। जब आदमी परेशानी में होता तो उसका साथ हर कोई छोड़ देता है। सबसे ज्यादा पीड़ा उसके अपने ही पहुंचाते हैं। अपनों को अपने साथ रखने के लिए स्वार्थीपन से आगे बढ़ें। सामूहिकता की बात करें।

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