Tuesday, 10 March 2015

कहीं केजरीवाल का विकल्प न बन जाएं योगेंद्र यादव

     अन्ना आंदोलन के बल पर देश को अच्छी राजनीति देने के वादे के साथ दिल्ली को कब्जाने वाली आम आदमी पार्टी भी अन्य दलों के रास्ते पर चल पड़ी है। जिन कमियों को लेकर पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक दलों पर निशाना साधा था वह भी उन्हें अपनाने लगे हैं। आप में भी हाईकमान परिपाटी शुरू हो गई है। पार्टी को दिल्ली में प्रचंड बहुमत क्या मिला कि पार्टी ने दो दिग्गजों यागेंद्र यादव व प्रशांत भूषण को पीएसी से ही हटा दिया। इन नेताओं पर आरोप लगाया जा रहा है कि ये लोग पार्टी को दिल्ली में हराना चाहते थे। इन नेताओं को खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है। इस प्रकरण में दिलचस्प बात यह है कि अरविंद केजरीवाल पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी में इतना बड़ा फैसला ले लिया गया।
     योगेंद्र यादव आैर प्रशांत भूषण को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाने के लिए केजरीवाल के सिपहसालार लग गए हैं। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, पंकज गुप्ता, गोपाल राय ने इन दोनों नेताओं को गद्दार तक कह दिया है। प्रशांत भूषण को अनुशासन समिति के अध्यक्ष पद से भी हटाने की तैयारी है। प्रकरण से आहत योगेंद्र यादव भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ पदयात्रा निकालने जा रहे अन्ना हजारे के साथ हो लिए हैं। वह किसान आंदोलन में भाग लेने जा रहे हैं। राजनीति में विरोध से नेता मजबूत होता है। नरेद्र मोदी विरोध से प्रधानमंत्री बने। अरविंद केजरीवाल विरोध से मुख्यमंत्री बने। अब आप नेता योगेंद्र यादव का जमकर विरोध कर रहे हैं। यदि योगेद्र यादव की किसान आंदोलन में सही रूप से भागेदारी हो गई तो कहीं वह अरविंद केजरीवाल के विकल्प के रूप में उभर आएं।
     अरविंद केजरीवाल को यह समझना होगा कि प्रशांत भूषण आैर योगेंद्र यादव पार्टी के वह स्तंभ हैं जिनसे पार्टी को न केवल मजबूत आधार मिला बल्कि वे विरोधियों से बचाने के लिए उनके लिए ढाल के रूप में काम करते रहे। प्रशांत भूषण ही हैं जिनकी वजह से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ होने वाला हर कानूनी वार विफल कर दिया गया। योगेंद्र यादव को पार्टी का थिंक टैंक माना जाता है। यह थिंक टैंक पार्टी के खिलाफ खड़ा हो गया तो वैचारिक शक्ति क्या होती है यह कई बार साबित हो चुका है।
     दरअसल यह लड़ाई योगेंद्र यादव अरविंद केजरीवाल के बीच की मानी जा रही है। अरविंद केजरीवाल ने पहले योगेंद्र यादव को हरियाणा का प्रभारी बनाया। उन्हें हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में भी प्रस्तुत भी किया गया। जब उन्होंने जमीन तैयार करने का प्रयास किया तो अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा में चुनाव न लड़ने का निर्णय ले लिया। अरविंद केजरीवाल के विश्वसनीय माने जाने वाले नवीन जयहिंद ने योगेंद्र यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसी बीच केजरीवाल के अति विश्वसनीय माने जाने वाले मनीष सिसोदिया ने योगेंद्र यादव पर केजरीवाल को कमजोर करने का आरोप लगाया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में  प्रचंड बहुमत के बाद शपथ ग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल ने अन्य राज्यों में चुनाव न लड़ने का फैसला ले लिया। अब अरविंद केजरीवाल ने अपने विश्वसनीय लोगों को तो दिल्ली में समायोजित कर लिय है। योगेंद्र यादव की सोच है कि पार्टी अन्य प्रदेशों में चुनाव लड़ेगी तो अन्य कद्दावर नेताओं को उभरने का अच्छा मौका मिल जाएगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के नाते अरविंद केजरीवाल दिल्ली में ही व्यस्त रहंेगे। ऐसे में वह जनता आैर कार्यकर्ताओं में अपनी पैठ बना सकते हैं। इसलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश व बिहार में भी चुनाव लड़ने की बात कही। अरविंद केजरीवाल के समर्थकों को लगा कि यह केजरीवाल के निर्णय का विरोध है।
     प्रशांत भूषण का यह कहना कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के नाते संयोजक पद छोड़ देना चाहिए, केजरीवाल समर्थकों को बहुत खला। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब केजरीवाल मुख्यमंत्री बन ही गए तो उन्होंने खुद आगे आकर संयोजक पद क्यों नहीं छोड़ दिया। पार्टी की गतिविधयों पर नजर डाली जाए तो अब तक देखा गया है कि केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह के लिए गए निर्णय ही लागू होते हैं। इन तीनों लोगों ने ही परिवर्तन नामक एक सामाजिक संगठन बनाया था। ये ही तीनों आप में सबसे मजबूत देखे गए।
कुमार विश्वास का कद बढ़ा तो उन्हें आम चुनाव में अमेठी से चुनाव लड़ा कर अलग-थलग कर दिया गया। साजिया इल्मी तिकड़ी के कहने पर नहीं चलीं तो उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। अब प्रशांत भूषण आैर योगेंद्र यादव ने अपनी आवाज उठाई तो उन्हंे भी पीएसी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अरविंद केजरीवाल को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस बार मुकाबला प्रशांत भूषण आैर योगेंद्र यादव से है। एक कानून का विशेषज्ञ तो दूसरा विचार का। प्रशांत भूषण भले ही राजनीतिक संघर्ष न कर पाएं पर योगेंद्र राजनीतिक रूप से संघर्षशील व्यक्ति रहे हैं। वह न केवल राजनीतिक विश्लेषक बल्कि समाजवादी आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं। उनके इस बयान ने कि अब गांवों में जाकर किसानों के लिए संघर्ष करेंगे उन्हें किसान नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
     जहां तक प्रशांत भूषण की बात है केजरीवाल को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस पार्टी को खड़ा करने में प्रशांत भूषण आैर शांति भूषण का बड़ा योगदान है। न केवल आर्थिक बल्कि कानूनी व मनोबल के मामले में भी इस परिवार ने पार्टी को बड़ा सहयोग दिया है। यह सहयोग यदि योगेंद्र यादव को मिल गया तो केजरीवाल के लिए बड़ी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। प्रशांत भूषण व योगेंद्र यादव के पीएसी से बाहर करने के बाद सबसे ज्यादा विरोध उत्तर प्रदेश में देखा गया। दरअसल उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ता 2017 के विधानसभा चुनाव में अपना भविष्य देख रहे हैं। यदि योगेंद्र यादव उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए अड़ गए तो उत्तर प्रदेश में एक बड़ा तबका योगेंद्र यादव के साथ आ सकता है। यह हाल बिहार में भी देखने को मिलेगा। हरियाणा में तो बड़े स्तर पर कार्यकर्ता योगेंद्र यादव के साथ हैं ही। अरविंद केजरीवाल दिल्ली तक सिमट कर रहना चाहते हैं तो योगेंद्र यादव अन्य प्रदेशों में चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं। ऐसे में यादव अन्य प्रदेशों में कार्यकर्ताओं की सहानुभूति बटोर सकते हैं।
     अरविंद केजरीवाल को समझना होगा कि किसी भी समस्या को खत्म करने के लिए उसकी जड़ों में जाना जरूरी होता है। आखिरकार सरकार बनते ही पार्टी में ऐसी स्थिति क्यों आ गई कि दो दिग्गजों के खिलाफ इनता बड़ा निर्णय लेना पड़ा। याद कीजिए भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आप के आंदोलन के बल पर जब पहली बार  दिल्ली में आप की सरकार बनी तो देश का युवा नरेंद्र मोदी से ज्यादा प्रभावित अरविंद केजरीवाल से था, पर वोटबैंक की राजनीति कर अरविंद केजरीवाल ने यह सब माहौल खत्म कर दिया था। अब फिर से दिल्ली की जनता से उन पर विश्वास जताया तो पार्टी में ऐसी स्थिति उनको कमजोर कर सकती है। यदि योगेंद्र यादव ने अपने को इस आंदेालन में पूरी तरह से सक्रिय कर लिया तो वह बड़े समाजवादी नेता के रूप में उभर सकते हैं। यह आंदोलन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ चलाया जा रहा है। किसानों से संबंधित होने की वजह से इस आंदोलन का राष्ट्रीय स्तर पर छाने के पूरे आसार हैं।

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