भले ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जबर्दस्त जीत से जनता परिवार खुश हो रहा हो पर समाजवादियों को समझना होगा कि अब भाजपा ने मुख्यमंत्री जीतन मांझी को गले लगाकर जनता परिवार में सेंध लगा दी है। भाजपा का जीतन मांझी का बहुमत सिद्ध कर लेने का दावा कहीं न कहीं बड़ा इशारा कर रहा है। मांझी आैर नीतीश कुमार दोनों ही बहुमत सिद्ध करने की बात कर रहे हैं। भले ही जीतन मांझी को पार्टी से निकाल दिया गया हो। भले ही नीतीश कुमार सरकार बना लें पर भाजपा ने बिहार में अपना दांव चलकर समाजवादियों को झटका दिया है। राजद सांसद पप्पू यादव का मांझी के सुर में सुर मिलाना भाजपा के लिए सोने पर सुहागा जैसा है। जहां भाजपा के साथ उपेंद्र कुशवाहा, राम विलास पासवान जैसे दिग्गज हैं वहीं जीतन मांझी, नरेंद्र सिंह, साधु यादव आैर पप्पू यादव के मिलने से नीतीश कुमार आैर लालू प्रसाद की परेशानी बढ़नी तय है।
दिल्ली में चुनाव हारने के बाद भाजपा अब पूरी ताकत बिहार पर लगाएगी क्योंकि 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं आैर बिहार आैर उत्तर प्रदेश में अक्सर चुनाव जातीय समीकरणों के आधार पर लड़े जाते हैं। जीतन मांझी आैर नीतीश कुमार का सत्ता संघर्ष दूरगामी परिणाम लेकर आएगा। जनता परिवार अभी एकजुट भी नहीं हो पाया था कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उसमें सेंध लगानी शुरू कर दी। इस संघर्ष को आैर दिलचस्प बना रहे हैं रमई राम । उन्होंने कह दिया है कि मुख्यमंत्री कोई भी बने वह उप मुख्यमंत्री जरूर बनेंगे, जबकि लालू प्रसाद अपनी बेटी मीसा भारती को उप मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। ऐसे में यदि रमई राम उप मुख्यमंत्री बनते हैं तो लालू प्रसाद प्रसाद की नाराजगी आैर मीसा भारती बनती हैं तो रमईराम नाराज। रमईराम भी महादलित हैं। समाजवादियों को यह समझना होगा कि दिल्ली में हारने के बाद भाजपा ने अब पूरा ध्यान बिहार पर लगा दिया है।
इसमें दो राय नहीं राजद, जदयू, वामपंथी आैर कांग्रेस इस मामले में एक हो गए हैं पर राज्यपाल भाजपा से हैं आैर इस देश में राज्यपाल के सहारे एक से बढ़कर एक खेल हुए हैं। 1979 में हरियाणा में भजनलाल ने देवीलाल का बहुमत होने के बावजूद उनके विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बना ली थी। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने मांझी को 20 को बहुमत सिद्ध करने को कहा है। उधर नीतीश कुमार ने दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के सामने 129 विधायकों की परेड करा दी है।
राजनीति की जननी माने जाने वाले बिहार में सियासत करवट लेती रहती है। कभी जाति के आधार पर तो कभी वर्चस्व के आधार पर आैर कभी हक की लड़ाई को लेकर। भाजपा के खिलाफ जनता परिवार को एकजुट करने की कवायद भी बिहार से शुरू हुई तो टूट भी यहां से ही। जीतन मांझी आैर नीतीश कुमार का सत्ता संघर्ष न केवल बिहार बल्कि देश के समीकरण बदलने वाला साबित होगा। सियासत देखिए कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें फेस करने से बचने के लिए अति दलित नेता जीतन मांझी को मुख्यमंत्री बनवाने के बाद नीतीश कुमार ने पर्दे के पीछे से सरकार चलाने का दांव चला था। उन्हें क्या पता था कि मांझी ही नरेंद्र मोदी को घेरने के अभियान की कमजोर कड़ी साबित होने वाले हैं। वह जनता परिवार को संगठित करने के लिए दिल्ली में बैठकें करते रहे आैर जीतन राम मांझी ने बिहार में हक-हकूक का हवाला देतेे हुए अति दलित व दलितों को रिझाने रहे।
नीतीश कुमार ने शुरू में तो उनके बयानों को गंभीरता से नहीं लिया। नीतीश कुमार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया जब उन्हें जीतन मांझी का खेल समझ में आ गया तब तक वह अपना खेल कर चुके थे। समय का फायदा उठाते हुए भाजपा ने उन्हें शह देने शुरू कर दी। जीतन मांझी को हटाने को लेकर कई दिनों तक नीतीश कुमार, लालू प्रसाद व शरद यादव में माथा-पच्ची होती रही। जब उन्हें लगा कि अब मांझी भाजपा के हाथों खेल रहे हैं तो अंतत: उन्होंने उन्हें हटाने का निर्णय ले लिया। जीतन मांझी समय की नजाकत को समझते हुए नीति आयोग की बैठक में भाग लेने दिल्ली क्या आए कि लगते हाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल लिए आैर नीतीश कुमार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया। अब वह नीतीश कुमार को सत्ता का लोभी तक कह रहे हैं। यह संघर्ष दिलचस्प मोड़ पर आ गया है। पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने अनुशसनहीनता का आरोप लगाकर जहां जतीन मांझी को निष्काशित कर दिया है वहीं नीतीश कुमार ने बहुमत के विधायकों के साथ राजभवन के सामने परेड कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। मांझी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं। वह भी बहुमत सिद्ध करने की बात कर रहे हैं। भाजपा नेता शहनवाज हुसैन का मांझी बहुमत सिद्ध कर देंगे वाला बयान अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है। जीतन मांझी आैर नीतीश कुमार का सत्ता संघर्ष बिहार में नए समीकरण पैदा कर सकते हैं। जिस तरह से राजनीतिक परिदृश्य उभरकर सामने आया है कि उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि जीतन मांझी जदयू तोड़कर एक नई पार्टी बना सकते हैं आैर आने वाला चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ सकते हैं। मांझी की मुहिम को इसलिए भी नीतीश के लिए झटका माना जा रहा है कि क्योंकि नरेंद्र सिंह आैर साधु यादव जैसे कई कद्दावर नेता उनके साथ है। कभी नीतीश कुमार के करीब रहे पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी मांझी की इस मुहिम को हवा दे रहे हैं।
दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार भले ही नरेंद्र मोदी को दबाव में मानकर चल रहे हों पर बिहार में जीतन मांझी ने उनका यह दबाव काफी हद तक कम कर दिया है। बिहार चुनाव के लिए दिल्ली चुनाव बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा था तभी तो नीतीश कुमार ने आम आदमी पार्टी कोे बिना मांगे समर्थन दे दिया था आैर दिल्ली में आप जीत भी गई। ऐसे में प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी ने अमित शाह को जीतन मांझी के सहारे जनता परिवार को कमजोर करने में लगा दिया है। नरेंद्र मोदी भी जानते हैं कि आने वाले समय उनके सामने कांग्रेस कम जनता परिवार बड़ी चुनौती देगा। यह चुनौती उन्हें नवम्बर में बिहार में मिलने वाली है। उसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर है। ऐसे में भले ही भाजपा दिल्ली चुनाव हार गई हो पर उनका पूरा प्रयास होगा कि किसी भी तरह से वह बिहार चुनाव जीतें।
नरेंद्र मोदी भली भांति जानते हैं कि अमित शाह आैर उनकी जोड़ी को उनके अपने ही नहीं पचा पा रहे हैं। ऐसे में जहां अब उन्हें अपनों से जूझना होगा वहीं उनकी टक्कर जनता परिवार के लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह, शरद यादव सरीखे समाजवादियों से है। समय आने पर वामपंथी भी उनके साथ हो सकते हैं। दिल्ली की भरपाई करने के लिए उन्हें जीतन मांझी के रूप में मजबूत मोहरा मिल गया है। यह बात भाजपाई भी जानते हैं कि समाजवादियों का आंदोलन देश में कोई भी समीकरण पैदा करने में सक्षम है। इसलिए वह जीतन मांझी के सहारे समाजवादियों के आंदोलन को कुंद करने का भरपूर प्रयास करेंगे। वैसे भी एक ओर जहां नीतीश कुमार व लालू प्रसाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं वहीं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने 2017 के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है।
स्वभाविक है कि समाजवादी किसान-मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने का नाम देकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। वैसे भी वह इसका आगाज गत दिनों दिल्ली के जंतर-मंतर से कर चुके हैं। अन्य पार्टियों के नेताओं को मोदी आम चुनाव आैर दिल्ली के चुनाव में भी इस्तेमाल कर चुके हैं। जहां उन्होंने आम चुनाव में कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं को इस्तेमाल किया वहीं दिल्ली के चुनाव में अन्ना आंदोलन से निकलीं पूर्व आईपीएस किरण बेदी का इस्तेमाल आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ किया। हालांकि यह प्रयोग उनके लिए उल्टा ही बैठा। फिर भी राजनीतिक जीत में विभीषणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश की सियासत में नीतीश-मांझी सत्ता संघर्ष कोई नया नहीं है। इस तरह के मामले में देश में होते रहे हैं। हरियाणा में भगवत दयाल शर्मा को बंसीलाल ने ऐसे ही झटका दिया था। जनता परिवार में इस तरह के मामले होते रहे हैं। नीतीश कुमार आैर लालू प्रसाद आैर मुलायम सिंह यादव लड़ते आैर मिलते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अजीत सिंह मुलायम सिंह केंद्र में मोरारजी देसाई आैर चरण सिंह का सत्ता संघर्ष जगजाहिर है। हां पहले समाजवादी नेताओं का इस्तेमाल कांग्रेस करती रही है आैर अब यह खेल भाजपा ने शुरू किया है।
दिल्ली में चुनाव हारने के बाद भाजपा अब पूरी ताकत बिहार पर लगाएगी क्योंकि 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं आैर बिहार आैर उत्तर प्रदेश में अक्सर चुनाव जातीय समीकरणों के आधार पर लड़े जाते हैं। जीतन मांझी आैर नीतीश कुमार का सत्ता संघर्ष दूरगामी परिणाम लेकर आएगा। जनता परिवार अभी एकजुट भी नहीं हो पाया था कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उसमें सेंध लगानी शुरू कर दी। इस संघर्ष को आैर दिलचस्प बना रहे हैं रमई राम । उन्होंने कह दिया है कि मुख्यमंत्री कोई भी बने वह उप मुख्यमंत्री जरूर बनेंगे, जबकि लालू प्रसाद अपनी बेटी मीसा भारती को उप मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। ऐसे में यदि रमई राम उप मुख्यमंत्री बनते हैं तो लालू प्रसाद प्रसाद की नाराजगी आैर मीसा भारती बनती हैं तो रमईराम नाराज। रमईराम भी महादलित हैं। समाजवादियों को यह समझना होगा कि दिल्ली में हारने के बाद भाजपा ने अब पूरा ध्यान बिहार पर लगा दिया है।
इसमें दो राय नहीं राजद, जदयू, वामपंथी आैर कांग्रेस इस मामले में एक हो गए हैं पर राज्यपाल भाजपा से हैं आैर इस देश में राज्यपाल के सहारे एक से बढ़कर एक खेल हुए हैं। 1979 में हरियाणा में भजनलाल ने देवीलाल का बहुमत होने के बावजूद उनके विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बना ली थी। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने मांझी को 20 को बहुमत सिद्ध करने को कहा है। उधर नीतीश कुमार ने दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के सामने 129 विधायकों की परेड करा दी है।
राजनीति की जननी माने जाने वाले बिहार में सियासत करवट लेती रहती है। कभी जाति के आधार पर तो कभी वर्चस्व के आधार पर आैर कभी हक की लड़ाई को लेकर। भाजपा के खिलाफ जनता परिवार को एकजुट करने की कवायद भी बिहार से शुरू हुई तो टूट भी यहां से ही। जीतन मांझी आैर नीतीश कुमार का सत्ता संघर्ष न केवल बिहार बल्कि देश के समीकरण बदलने वाला साबित होगा। सियासत देखिए कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें फेस करने से बचने के लिए अति दलित नेता जीतन मांझी को मुख्यमंत्री बनवाने के बाद नीतीश कुमार ने पर्दे के पीछे से सरकार चलाने का दांव चला था। उन्हें क्या पता था कि मांझी ही नरेंद्र मोदी को घेरने के अभियान की कमजोर कड़ी साबित होने वाले हैं। वह जनता परिवार को संगठित करने के लिए दिल्ली में बैठकें करते रहे आैर जीतन राम मांझी ने बिहार में हक-हकूक का हवाला देतेे हुए अति दलित व दलितों को रिझाने रहे।
नीतीश कुमार ने शुरू में तो उनके बयानों को गंभीरता से नहीं लिया। नीतीश कुमार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया जब उन्हें जीतन मांझी का खेल समझ में आ गया तब तक वह अपना खेल कर चुके थे। समय का फायदा उठाते हुए भाजपा ने उन्हें शह देने शुरू कर दी। जीतन मांझी को हटाने को लेकर कई दिनों तक नीतीश कुमार, लालू प्रसाद व शरद यादव में माथा-पच्ची होती रही। जब उन्हें लगा कि अब मांझी भाजपा के हाथों खेल रहे हैं तो अंतत: उन्होंने उन्हें हटाने का निर्णय ले लिया। जीतन मांझी समय की नजाकत को समझते हुए नीति आयोग की बैठक में भाग लेने दिल्ली क्या आए कि लगते हाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल लिए आैर नीतीश कुमार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया। अब वह नीतीश कुमार को सत्ता का लोभी तक कह रहे हैं। यह संघर्ष दिलचस्प मोड़ पर आ गया है। पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने अनुशसनहीनता का आरोप लगाकर जहां जतीन मांझी को निष्काशित कर दिया है वहीं नीतीश कुमार ने बहुमत के विधायकों के साथ राजभवन के सामने परेड कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। मांझी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं। वह भी बहुमत सिद्ध करने की बात कर रहे हैं। भाजपा नेता शहनवाज हुसैन का मांझी बहुमत सिद्ध कर देंगे वाला बयान अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है। जीतन मांझी आैर नीतीश कुमार का सत्ता संघर्ष बिहार में नए समीकरण पैदा कर सकते हैं। जिस तरह से राजनीतिक परिदृश्य उभरकर सामने आया है कि उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि जीतन मांझी जदयू तोड़कर एक नई पार्टी बना सकते हैं आैर आने वाला चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ सकते हैं। मांझी की मुहिम को इसलिए भी नीतीश के लिए झटका माना जा रहा है कि क्योंकि नरेंद्र सिंह आैर साधु यादव जैसे कई कद्दावर नेता उनके साथ है। कभी नीतीश कुमार के करीब रहे पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी मांझी की इस मुहिम को हवा दे रहे हैं।
दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार भले ही नरेंद्र मोदी को दबाव में मानकर चल रहे हों पर बिहार में जीतन मांझी ने उनका यह दबाव काफी हद तक कम कर दिया है। बिहार चुनाव के लिए दिल्ली चुनाव बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा था तभी तो नीतीश कुमार ने आम आदमी पार्टी कोे बिना मांगे समर्थन दे दिया था आैर दिल्ली में आप जीत भी गई। ऐसे में प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी ने अमित शाह को जीतन मांझी के सहारे जनता परिवार को कमजोर करने में लगा दिया है। नरेंद्र मोदी भी जानते हैं कि आने वाले समय उनके सामने कांग्रेस कम जनता परिवार बड़ी चुनौती देगा। यह चुनौती उन्हें नवम्बर में बिहार में मिलने वाली है। उसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर है। ऐसे में भले ही भाजपा दिल्ली चुनाव हार गई हो पर उनका पूरा प्रयास होगा कि किसी भी तरह से वह बिहार चुनाव जीतें।
नरेंद्र मोदी भली भांति जानते हैं कि अमित शाह आैर उनकी जोड़ी को उनके अपने ही नहीं पचा पा रहे हैं। ऐसे में जहां अब उन्हें अपनों से जूझना होगा वहीं उनकी टक्कर जनता परिवार के लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह, शरद यादव सरीखे समाजवादियों से है। समय आने पर वामपंथी भी उनके साथ हो सकते हैं। दिल्ली की भरपाई करने के लिए उन्हें जीतन मांझी के रूप में मजबूत मोहरा मिल गया है। यह बात भाजपाई भी जानते हैं कि समाजवादियों का आंदोलन देश में कोई भी समीकरण पैदा करने में सक्षम है। इसलिए वह जीतन मांझी के सहारे समाजवादियों के आंदोलन को कुंद करने का भरपूर प्रयास करेंगे। वैसे भी एक ओर जहां नीतीश कुमार व लालू प्रसाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं वहीं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने 2017 के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है।
स्वभाविक है कि समाजवादी किसान-मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने का नाम देकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। वैसे भी वह इसका आगाज गत दिनों दिल्ली के जंतर-मंतर से कर चुके हैं। अन्य पार्टियों के नेताओं को मोदी आम चुनाव आैर दिल्ली के चुनाव में भी इस्तेमाल कर चुके हैं। जहां उन्होंने आम चुनाव में कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं को इस्तेमाल किया वहीं दिल्ली के चुनाव में अन्ना आंदोलन से निकलीं पूर्व आईपीएस किरण बेदी का इस्तेमाल आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ किया। हालांकि यह प्रयोग उनके लिए उल्टा ही बैठा। फिर भी राजनीतिक जीत में विभीषणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश की सियासत में नीतीश-मांझी सत्ता संघर्ष कोई नया नहीं है। इस तरह के मामले में देश में होते रहे हैं। हरियाणा में भगवत दयाल शर्मा को बंसीलाल ने ऐसे ही झटका दिया था। जनता परिवार में इस तरह के मामले होते रहे हैं। नीतीश कुमार आैर लालू प्रसाद आैर मुलायम सिंह यादव लड़ते आैर मिलते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अजीत सिंह मुलायम सिंह केंद्र में मोरारजी देसाई आैर चरण सिंह का सत्ता संघर्ष जगजाहिर है। हां पहले समाजवादी नेताओं का इस्तेमाल कांग्रेस करती रही है आैर अब यह खेल भाजपा ने शुरू किया है।
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