Sunday 23 March 2014

सदियों दिलों के अन्दर वो गूंजते रहेंगे

         शहीदी दिवस (23 मार्च) पर विशेष 
    भगत सिंह का नाम आते ही हमारे जहन  में बंदूक से लैस किसी क्रांतिकारी की छवि उभरने लगती है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि 23 वर्ष की अल्पायु में भी वह हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंग्ला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ, चिन्तक और विचारक तो थे ही, समाजवाद के मुखर पैरोकार भी थे। आज की व्यवस्था और राजनेताओं की सत्तालिप्सा को देखकर लोग अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि इससे तो  बेहतर ब्रितानवी हुकूमत थी पर भगत सिंह ने 1930  में यह बात महसूस कर ली थी।  उन्होंने कहा था कि हमें जो आजादी मिलेगी, वह सत्ता हस्तांतरण के रूप में ही होगी।  गरीबी पर पर लोग भले ही महात्मा गांधी के विचारों को ज्यादा तवज्जो देते हों पर भगत सिंह ने छोटी सी उम्र में गरीबी को न केवल अभिशाप बताया था बल्कि पाप तक की संज्ञा दे दी थी।  भगत सिंह की शहादत को भले ही 82 साल बीत गए हों  पर आज भी वह अपने विचोरों की ताजगी से सामायिक  और प्रासंगिक ही लगते हैं।  आने वाले वक्त में भी वह उतने ही प्रासंगिक रहेंगे क्योंकि मुश्किलों से निजात पाने को हमने जो फार्मूला इजात किया,  उसमें हजारों-हजार चोर छेद हैं।
    भगत सिंह को अधिकतर लोग क्रांतिकारी देशभक्त के रूप में जानते हैं पर वह सिर्फ एक क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, कला के धनी,  दार्शनिक, चिन्तक, लेखक और पत्रकार भी थे।  बहुत कम आयु में उन्होंने फ्रांस, आयरलैंड  और रुस की क्रांतियों का गहन अध्ययन किया था। लाहौर के नेशनल कालेज से लेकर फांसी की कोठरी तक उनका यह अध्ययन लगातार जारी रहा कि और यही अध्ययन था जो उन्हें उनके समकालीनों से अलग करता है कि उन्हें हम और क्रांतिकारी दार्शनिक के रूप में जानते हैं। भगत सिंह के भीतर एक प्रखर अखबारनवीस भी था, जिसकी बानगी हम प्रताप जैसे अख़बारों के सम्पादन में देख सकते हैं।  यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि एक महान विचारक के ये महत्वपूर्ण विचार देश के तथाकथित कर्णधारों के षडयंत्र के फलस्वरूप अब तक उन लोगों तक नहीं पहुच पाए जिनके लिए वह शहीद हुए थे।
    सरकार का रवैया देखिये कि आजादी के लिए 23 साल की छोटी सी उम्र में फांसी के फंदे को  चूमने वाले शहीद आजम भगत सिंह को सरकार शहीद ही नहीं मानती है।  इस बात पर एक बारगी यकीन करना मुश्किल है पर सरकारी कागजों में यही दर्ज है। एक आरटीआई से इसका खुलासा भी हुआ है। आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल में गृह मंत्रालय ने साफ किया है कि ऐसा कोई रिकार्ड नहीं कि भगत सिंह को कभी शहीद घोषित किया गया था।

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