भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गए अन्ना आंदोलन के बाद जब अरविन्द केजरीवाल ने
आम आदमी पार्टी बनाकर आंदोलन को आजादी की दूसरी लड़ाई नाम दिया तो बड़ी
संख्या में लोग आप से जुड़े। इन्ही लोगों के बलबूते अरविन्द केजरीवाल ने राजनीति की तो अन्ना आंदोलन का इतना असर था कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में
आप को 70 में से 28 सीटें मिली।
अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह से दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनाई, भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोला, वंशवाद, जातिवाद, पूंजीवाद का विरोध करते हुए आम आदमी और अन्य राजनीतिक दलों के अच्छी छवि के लोगों से उनकी पार्टी से जुड़कर देश समाज के लिए काम करने का आहवान किया, उससे आम आदमी में व्यवस्था सुधार की कुछ आस जगी थी। पर लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में पारदर्शिता न होना और उपेक्षा का आरोप लगाकर जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं की बगावत देखने को मिल रही है, यह कहीं न कहीं आप की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करती है। कहा जा रहा है कि बहुत दिनों से आप के कार्यकर्ताओं की जनरल बैठक भी नहीं हुई है। आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, योगेन्द्र यादव आम कार्यकर्ताओं से बात करने को तैयार नहीं।
अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह से दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनाई, भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोला, वंशवाद, जातिवाद, पूंजीवाद का विरोध करते हुए आम आदमी और अन्य राजनीतिक दलों के अच्छी छवि के लोगों से उनकी पार्टी से जुड़कर देश समाज के लिए काम करने का आहवान किया, उससे आम आदमी में व्यवस्था सुधार की कुछ आस जगी थी। पर लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में पारदर्शिता न होना और उपेक्षा का आरोप लगाकर जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं की बगावत देखने को मिल रही है, यह कहीं न कहीं आप की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करती है। कहा जा रहा है कि बहुत दिनों से आप के कार्यकर्ताओं की जनरल बैठक भी नहीं हुई है। आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, योगेन्द्र यादव आम कार्यकर्ताओं से बात करने को तैयार नहीं।
आप ने जिस तरह से 31 जनवरी के बाद
लोकसभा प्रत्याशी के लिए आवेदन स्वीकार न करने की बात कहकर बाद में काफी संख्या
में नामी गिरामी लोगों को पार्टी से जोड़कर टिकट दिए हैं, उससे तो आप के आम
आदमी की लड़ाई लड़ने के दावे की हवा ही निकल गई। इससे तो ऐसा ही लगता है
कि आप ने आवेदन के नाम पर जनता और कार्यकर्ताओं की भावनाओं से खिलवाड़ किया है।
अरविन्द केजरीवाल कह रहे थे कि वह सत्ता के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन
के लिए राजनीति में आये हैं पर कुछ दिनों से वह वोटबैंक की राजनीति करने
लगे हैं , उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि वह भी अन्य दलों की तरह इस व्यवस्था
में ढलते जा रहे हैं।
अरविन्द केजरीवाल का अल्पसंख्यक सम्मेलन में
साम्प्रदायिकता को भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा बताकर मुस्लिम वोटों को रिझाने
की कोशिस बताया जा रहा है। इसी तरह कानपुर रैली में आप को 100 सीटें
मिलने का दावा कर अरविन्द केजरीवाल का यह कहना कि आप के बिना केंद्र में
सरकार नहीं बन सकती, उनकी सत्तालोलुपता को उजागर करता है। तो यह माना जाये
कि अरविन्द केजरीवाल जिन दलों को अब तक चोर कहते रहे हैं, उनके साथ मिलकर
ही सरकार बनाएंगे या उनकी सरकार में शामिल होंगे। मेरा अरविन्द केजरीवाल से
सवाल है कि भ्रष्ट व्यवस्था के पोषक लोगों के साथ मिलकर आप कैसे व्यवस्था
बदलेंगे ? ऐसे में सवाल उठता है कि उन लोगों के दिलों पर क्या गुजर रही
होगी जो अरविन्द केजरीवाल के रूप में व्यवस्था परिवर्तन का नायक देख रहे
थे। उस आम आदमी की मनोस्थिति क्या होगी जो राजनीति में आने का सपना देखने
लगा था। साथियों हम लोगों को किसी भी हालत में जनता का भरोसा नहीं टूटने
देना है। व्यवस्था परिवर्तन की जो आस आम आदमी में जगी थी, उसे धुमिल नहीं
होने देना है। मेरा अपना मानना है कि हम लोग मिलकर एक सामाजिक संगठन बनाएं
और मिलकर भ्रष्ट व्यवस्था परिवर्तन के लिए सड़कों पर उतरें। मेरा सभी
साथियों से अनुरोध है कि इस लेख पर कुछ न कुछ प्रतिक्रिया जरूर दें।
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