Friday, 10 January 2014

होने लगा है केजरीवाल के व्यवस्था परिवर्तन के प्रयास का असर

      व्यवस्था परिवर्तन के लिए अन्ना आंदोलन के बाद ब्यूरोक्रेट के बाद समाजसेवी बनने वाले अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाकर मूल्य पर आधारित सचाई और ईमानदारी की राजनीति से व्यवस्था परिवर्तन का जो बीड़ा उठाया था, उसमें वह काफी हद तक सफल हो रहे हैं। जो लोग व्यवस्था से निराश हो चुके थे, उनमें एक आशा की किरण जन्म ले रही है,  राजनीति से घृणा करने वाले लोगों को अब राजनीति अच्छी लगने लगी है। अब तक गुंडे, बाहुबलियों की मानी जानी वाली राजनीति में अच्छे और शरीफ लोग भी आने लगे हैं। किसी भी तरह से पैसा कमाकर चुनाव लड़ने की परिपाटी पर अंकुश लग रहा है। जनता के दिए गए चंदे से भी चुनाव लड़ा जाने लगा है। राजनीतिक दल और कुछ कारपोरेट घरानों के गठबंधन से चल रही लूटखसोट बंद होने की संभावना बलवती हुई है। दिल्ली में  आप का चुनाव लड़ना इसका प्रमाण है।
     जो महिलायें राजनीतिक खबरों में दिलचस्पी नहीं लेती थी, वे अब राजनीति पर चर्चा करते देखी जा रही हैं। जो युवा फेसबुक और मौजमस्ती की बात करते देखे जाते थे वे अब केजरीवाल के राजनीति करने के तरीके पर चर्चा कर रहे हैं।  जो युवा अब तक वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल हो रहे थे, वे अब राजनीति में भी भविष्य तलाशने लगे हैं। वंशवाद की राजनीति पर अंकुश लगने की उम्मीद जगने लगी हैं। दिल्ली में जिस तरह  भ्रष्टाचार पर अंकुश लग रहा है, उससे अन्य प्रदशों में भी आस जगने लगी हैं। केजरीवाल की यह राजनीति लोकसभा चुनाव में गुल खिलाने वाली है। दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद आम आदमी के हित में जो प्रयास हो रहे हैं, उनका असर पूरे देश में हो रहा है।
       जो राजनीतिक दल किसी की सुनने को तैयार नहीं होते थे, उन पर अरविन्द केजरीवाल की सादगी का गजब का असर पड़ रहा है। भाजपाई और सपाई आजकल टोपी से सुसस्जित दिखाई दे रहे हैं। लगभग सभी दल आम आदमी की बात करते देखे जा रहे हैं, कांग्रेस में राहुल गांधी के बाद दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश ने अरविन्द केजरीवाल के राजनीति करने के तरीके की तारीफ की है। भाजपा का मार्गदर्शन करने वाले संघ ने भी आप को गंभीरता से लेने की बात की है। कहना गलत न होगा कि केजरीवाल ने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी है।

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