मोदी सरकार आखिरकार चाहती क्या है ? क्या अभी इतनी मौतों पर उसका मन नहीं भरा है। देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर का कहर अभी थमा नहीं है। ब्लैक फंगस की एक महामारी और आ गई है। ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक व्हाइट फंगस और इससे भी खतरनाक येलो फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। कोरोना की तीसरी लहर के खतरे अंदेशा अलग से। वह बच्चों की जान को खतरा। इन सबके बावजूद केंद्र सरकार सीबीएसई बोर्ड 12वीं की परीक्षाएं कराने का फैसला लेने जा रही है। बस परीक्षा की तिथियों की आधिकारिक घोषणा होना अभी बाकी रहने की बात सामने आ रही है।15 जुलाई से 25 अगस्त के बीच परीक्षा कराने की सूचनाएं आ रही हैं। यह सब तब करने का दम भरा जा रहा है जब देशभर के स्टूडेंट्स और पैरेंट्स परीक्षा होने का विरोध कर रहे हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंकÓ, शिक्षा राज्य मंत्री, अन्य केंद्रीय मंत्रियों और विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंत्रियों व शिक्षा सचिवों की 23 मई को जो उच्च स्तरीय बैठक हुई है, उसमें से तो यही बातें निकल कर सामने आई हैं। हालांकि औचारिकता के लिए सुझाव भी मांगे गये हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब परीक्षा देने वाले विद्यार्थी और दिलाने वाले अभिाभावक परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं तो सुझाव किससे मांगे जा रहे हैं ? क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को पता नहीं है कि जो बच्चे कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों का तांदव देख रहे हैं उनकी मनोस्थिति क्या होगी ? क्या इन बच्चों में ऐसे कितने बच्चे नहीं होंगे जिनके अपने कोरोना की चपेट में आकर दम तोड़ गये होंगे। या फिर दम तोडऩे की स्थिति में होंगे। क्या इन सब में से कितने बच्चे ऐसे नहीं होंगे जिनके अपने ब्लैक, व्हाइट या फिर येलो फंगस के शिकार हो गये होंगे। ऐसी परिस्थिति में केंद्र सरकार 12वीं के बच्चों को खतरे में डालकर आखिर क्या दिखाना चाहती है ?
क्या परीक्षा केंद्रों पर विद्यार्थियों को एक दूसरे मिलने और बात करने से रोका जा सकेगा ? क्या जब बच्चे परीक्षा देकर बाहर निकलेंगे तो एक दूसरे से बात नहीं करेंगे ? क्या इस माहौल में परीक्षा में शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक सुरक्षित रह पाएंगे ? यदि 12वीं सीबीएसई की परीक्षा होती है तो केंद्र का यह फैसला उत्तर प्रदेश शिक्षकों को पंचायत चुनाव में धकेलने से भी ज्यादा घातक साबित होगा। जब एक प्रदेश के एक दिन के चुनाव में 1629 शिक्षक कोरोना संक्रमण से दम तोड़ सकते हैं तो कल्पना कीजिए कि पूरे देश में लाखों विद्यार्थी परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा देंगे और हजारों शिक्षक दिलाएंगे तो बच्चों के साथ ही शिक्षकों में भी संक्रमण और मौत होने का कितना अंदेशा पैदा हो जाएगा ?
वैसे भी जब दसवीं की परीक्षा रद्द कर दी गई हैं तो 12वीं की परीक्षा रद्द करने करने में दिक्कतें क्या आ रही हैं ? 12वीं के बच्चे 10वीं के बच्चों से मात्र दो साल बड़े ही तो होते हैं। रही उनके भविष्य की बात तो कोरोना कहर ने तो देश में न कितने बच्चों का भविष्य प्रभावित कर दिया है। क्या 12वीं के विद्यार्थियों के अंक10वीं के बच्चों की तरह नहीं दिये जा सकते हैं हैं ? केंद्र सरकार ऐसी व्यवस्था बनाए कि जिस आधार पर 12वीं के विद्यार्थियों को अंक मिले, उसी आधार पर विश्वविद्यालयों में दाखिलों के साथ विदेश में जाने वाले विद्यार्थियों की भी व्यवस्था हो। मात्र अंकों के लिए बच्चों को एक बड़े खतरे में झोंक देना कहां की अकलमंदी है ? केंद्र सरकार इन सब बातों पर भी विचार कर ले कि यदि बच्चों और शिक्षकों में संक्रमण फैल गया तो परीक्षा देने वाले कितने विद्यार्थियों और कितने शिक्षकों की मौत होगी ? अभिभावकों पर खतरा अलग से। यदि परीक्षा देने वाले बच्चों की मौत होती है तो ये सब केंद्र सरकार द्वारा की जाने वाली हत्याएं कहलाएंगी।
गजब खेल है मोदी सरकार का। किसान नये कानूनों का विरोध कर रहे हैं तो उन पर जबर्दस्ती लादे जा रहे हैं। अब 12वीं के विद्यार्थी और उनके अभिभावक परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं बच्चों के भविष्य को आधार बनाकरउन पर परीक्षा लादी जा रही है। रही बात परीक्षा कराने वाले राज्यों की। तो भाजपा शासित प्रदेश तो मोदी सरकार का विरोध कर ही नहीं सकते। इन सब राज्य के मुख्यमंत्रियों को तो कोरोना महामारी में हुई मौतों पर भी कोई शर्मिंदगी नहीं है। हालांकि दिल्ली, महाराष्ट्र और प. बंगाल ने पहले बच्चों को वैक्सीन लगाने की मांग की है। वैसे केंद्र सरकार बच्चों के भविष्य की चिंता करने का ड्रामा तो ऐसे कर रही है जैसे कि गत 7 साल में उसने विद्यार्थियों के भविष्य को संवारने के लिए बहुत कुछ कर दिया हो। कितने बच्चों को रोजगार छीन गया, कितने चलने जाने और कितने रोजगार न मिलने से फांसी के फंदे पर लटक गये, कितने डिप्रेशन में हैं।
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