लंबे समय से अराजकता एजेंडे पर काम कर रहे संघ मानसिकता के लोग लगातार अपने मकसद में कामयाब हो रहे हैं। संघियों के स्थापित होने के पीछे समाजवादियों का परिवारवाद, वंशवाद और पूंजीवाद में ढलना, वामपंथियों से अपनी विचारधारा से भटकना औेर कांग्रेस का नैतिक पतन होना रहा है।
वैसे तो कांग्रेस भी अपने करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी पर भाजपा की अगुआई में चल रही मोदी सरकार ने तो सभी हदें ही पार कर दी हैं। चाहे संवैधानिक संस्थाएं हों, कार्यपालिका हो, मीङिया हो सबको अपना बंधुआ बनाने में उतारू है। यह सरकार काफी हद तक अपने मकसद में कामयाब भी हो रही है। समाज का लगातार हो रहा नैतिक पतन मोदी सरकार को के संघ के एजेंडे को लागू करने में काफी मदद कर रहा है। देश में भाईचारा, रोजी-रोटी, खेतबाड़ी, मान-सम्मान और अधिकार जैसे शब्द तो जैसे इतिहास बन चुके प्रतीत हो रहे हैं। धर्म के नाम पर देश में जो आडंबर चल रहा है वह न केवल देश औेर समाज के लिए घातक साबित हो रहा हेै बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए तबाही का मंजर ला रहा है।
जयश्रीराम के नारे को लेकर अब तक तो सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर ही कुछ शरारती तत्वों द्वारा उत्पात मचाने की खबरें सुनने को मिलती हैं। पर झारखंड विधानसभा में सीपी सिंह की जो उत्दंदडता देखने को मिली उससे तो यही लग रहा है कि केंद्र व राज्य सरकार में बैठे भाजपा के प्रतिनिधि भी इन सब मामलों में सक्रिय हैं।
चिंता की बात तो यह है जिस न्यायपालिका पर इस तरह से मामलों में न्याय पाने की उम्मीद होती थी अब उसका भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। स्थिति यह है कि सत्ता पक्ष के समर्थक सत्ता के खिलाफ न कोई आंदोलन बर्दाश्त कर पा रहे हैं औेर न ही देश को चलाने वाले जिम्मेदार लोगों से किसी तरह का पत्राचार।
उन्मादी भीड़ की हिंसा को लेकर फिल्मी कलाकारों और 49 बुद्धिजीवियों ने मॉब लिंचिंग को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र क्या लिख दिया कि बिहार के मुजफ़्फरपुर के मुख्यन्यायिक दंडाधिकारी सूर्य कांत तिवारी की अदालत में अधिवक्ता सुधीर कुमार ओझा ने अभिनेत्री अर्पणा सेन, सौमित्र चटर्जी, श्याम बेनेगल समेत 49 फ़िल्म कलाकारों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा ही दर्ज करा दिया। उनको लगता है कि इन लोगों के प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र से देश की छवि विदेशों में खराब हुई है। उनको इस पत्र में अलगावादियों से मिलकर देश को विखंडित करने का काम नजर आ रहा है। हद तो यह हो गई कि कोर्ट ने भी मामले को स्वीकार कर लिया है। जबकि अक्सर देखा जाता हेै कि कोर्ट महत्वपूर्ण मामलों से संबंधित भी याचिका को नामंजूर कर देता है।
याचिकाकर्ता ने इस मामले में बालीवुड के कुछ कलकारों को ढाल के रूप में इस्तेमाल किया है। याचिकाकर्ता ने अभिनेत्री कंगना रनौत, मधुर भंडारकर और विवेक अग्निहोत्री को इस केस में गवाह के रूप में नामजद किया है। दरअसल कंगना रनौत, मधुर भंडारकर और विवेक अग्निहोत्री समेत 62 लोगों ने 49 हस्तियों द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखे जाने के खिलाफ प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर विरोध दर्ज कराया था।
इन महाशय को यह मालुम नहीं है कि विदेश में बैठे लोगों को मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बारे में भी पता चलता है। विदेशियों को यह भी पता है कि देश में तरह से रोजी-रोटी का संकट आन पड़ा है। किस तरह से सत्ता में बैठे लोग मां-बहनों की अस्मत से खेल रहे हैं और जब वे इस अत्याचार के खिलाफ खड़ी होती हैं तो उन्हें मरवा दिया जाता है या फिर मरवाने का प्रयास होता है। किस तरह से लोग अपना जमीर बेचकर सत्ता से चिपकने के लिए देश के संविधान से खिलवाड़ कर रहे हैं। देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को किस तरह से तहस-नहस करने पर तुले हैं। किसी तरह से महात्मा गांधी को गालियां दी जा रही हैं। किस तरह से पूरे विश्व में भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को निखारने वाले पंङित जवाहर लाल नेहरू को खलनायक बना दिया गया है। किस तरह से महात्मा गांधी के हत्यारे को एक नायक के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। इन मामलों में देश की छवि खराब नहीं हो रही है।
इन महाशय को जानकारी होनी चाहिए कि जिस सेना का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना सीना चौड़ा कर लेते हैं। उस सेना के ही 100 से अधिक रिटायर्ड सैनिकों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर दलितों और मुसलमानों के खिलाफ हो रही हिंसा की निंदा की है। इन महाशय को इन सैनिकों के खिलाफ भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करा देना चाहिए था।
इन पूर्व सैनिकों का कहना था कि अहसमति को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने मीडिया संस्थानों, व्यक्तियों, सिविल सोसाइटी ग्रुप, विश्वविद्यालयों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के बोलने की आज़ादी पर हो रहे हमले और उन्हें राष्ट्रविरोधी करार दिये जाने की भी निंदा की है। मतलब इन सबकी आवाज को दबाने का प्रयास हो रहा है।
यदि मॉब लिंचिंग मामले पर बुद्धिजीवियों द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखने पर उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है औेर कोर्ट उस सुनवाई को सुनने को तैयार हो जाता है। तो यह समझ लेना चाहिए कि ये लोग मोदी सरकार के खिलाफ कोई भी आंदोलन नहीं बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।
तो यह माना जाए कि यदि किसान, मजदूर, नौजवान अपने हक के लिए आवाज उठाएगा तो उनके खिलाफ भी देशद्रोह के मुकदमे दर्ज किये जाने लगेंगे। जो भाजपा इमरजेंसी को लेकर हायतौबा करती है। उसके शासनकाल में सरकार की खामियों को गिनाने को भी देशद्रोह मान लिया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि ओझा मात्र एक व्यक्ति हैं, जिन्होंने इस तरह के मामले में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया है। सत्ता में बैठे लोग भी इस तरह की व्यवस्था करने में लगे हैं कि उनकी मनमानी के खिलाफ कोई आवाज न उठे। अब तो सरकार ऐसा कानून बनाने जा रही है जिसमें किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने में कोर्ट की भी जरूरत नहीं होगी। सरकार जिसे चाहेगी आतंकवादी बना देगी। मतलब किसी भी तरह से लोगों को डराकर रखना है। यदि मुंह खोला तो तैयार रहो आतंकवादी बनने के लिए।
अंग्रेजी हुकुमत में भी इस तरह से जनता की आवाज को दबाने का दुस्साहस इस हद तक नहीं हुआ था। उनके राज में भी व्यक्ति को अपनी बात कोर्ट में रखने का अधिकार था। मोदी सरकार तो जनता से कोर्ट में अपनी बात रखने का अधिकार भी छीनने की तैयारी में है।
मोदी सरकार का यह हथकंडा काफी कारगर भी साबित हो रहा है। मोदी ने विपक्ष के स्थापित अधिकतर नेताओं को डराकर चुप करा दिया है। पत्रकारों, लेखकों और फिल्म निर्मार्ताओं को इस तरह से अपने समर्थकों से चुप कराने का प्रयास किया जा रहा है।
इस माहौल में यह तो क्लीयर हो गया है कि सत्ता में बैठे इन अराजक लोगों के खिलाफ अब जीवट नेतृत्व ही टिकेगा। इस सरकार से टकराने के लिए आजादी की लड़ाई जैसे जज्बा, जुनून और जूझारूप रखे आंदोलनकारी ही टिक पाएंगे। एशोआराम से दूर धूप में तपा नेतृत्व ही अब मोदी सरकार से टकराने में सफल होगा। कमजोर, निकम्मे औेर विलासिता में डूबे विपक्ष के बल पर अब मोदी सरकार की इस अराजकता से नहीं लड़ा जा सकता है। देश में एक दमदार नेतृत्व तैयार करना ही होगा।
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