देश के समाजवादियों की राजनीतिक विरासत अब नई पीढ़ी के हाथ में आ रही है। चौधरी चरण सिंह की विरासत उनके पौत्र जयंत सिंह संभाल रहे हैं तो मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक कारवां को उनके बड़े पुत्र अखिलेश यादव आगे ले जा रहे हैं। तो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं उनके छोटे पुत्र नीरज शेखर। लालू प्रसाद ने अपनी कमान अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को सौंप दी है। तो चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के नये चिराग बन गए हैं। देवगौड़ा ने कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनवाकर अपनी सालों की राजनीतिक पूंजी अपने बेटे एचडी कुमार स्वामी को सौंप दी।
ऐसा नहीं कि सारे वारिस स्थापित ही हो गए हैं या फिर उनके पैर राजनीति की जमीन में पूरी तरह से जम ही गए हैं। इनमें से कुछ जगहों पर विरासत को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इन्हीं में से एक है हरियाणा में चौधरी देवीलाल की विरासत। उनके पुत्र ओम प्रकाश चौटाला के एक दौर तक राजनीतिक भूमिका निभाने के बाद अब कुनबा संकटग्रस्त हो गया है।
ये संकट हरियाणा में चौधरी देवीलाल की जयंती के मौके पर गोहाना में हुई रैली में खुलकर सामने आ गया। इस मौके पर पार्टी की कमान संभाल रहे अभय चौटाला की जमकर हूटिंग हुई। खास बात यह है कि ये सब कुछ पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला की मौजूदगी में हो रहा था। दरअसल ऐसा हुआ कि अभय चौटाला के भाषण देने के लिए खड़े होने के साथ ही मंच के सामने बैठे दुष्यंत चौटाला के समर्थकों ने नारेबाजी और हूटिंग शुरू कर दी।
मंच से रोके जाने और समझाए जाने के बाद भी वो शांत नहीं हुए। बताया जाता है कि जब पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला खड़े हुए तब भी ये सिलसिला जारी रहा। जिस पर उन्होंने जबर्दस्त नाराजगी जाहिर की। और चेतावनी भरे लहजे में उन्होंने यहां तक कह डाला कि इसके पीछे कौन है वो उसे समझ रहे हैं और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
रैली में चौटाला की नाराजगी की गाज दुष्यंत सिंह उनके भाई दिग्विजय सिंह पर गिरी। और दोनों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया गया। इस कार्रवाई के बाद अपनी गलती के लिए माफी मांगने या फिर किसी दूसरे तरीके से अपने दादा की सहानुभूति हासिल करने की जगह दुष्यंत ने बगावती तेवर अपना लिया है। और उन्होंने अपने परदादा चौधरी देवीलाल के नाम पर बने जननायक सेवादल संगठन को एक बार फिर सक्रिय कर दिया।
दूसरी तरफ अभय चौटाला की कोशिश संगठन पर कब्जा करने की है। इस तरह से चाचा और भतीजे के बीच चौधरी देवीलाल की राजनीतिक विरासत पर कब्जे की जंग शुरू हो गयी है। पूरे मामले को नजदीक से देखने पर ऐसा लगता है कि संगठन पर अभय चौटाला का प्रभाव है जबकि लोकप्रियता के मामले में दुष्यंत चौटाला अपने चाचा से कहीं आगे खड़े हैं।
इस बीच दुष्यंत चौटाला की गतिविधियां तेज हो गयी हैं। दुष्यंत हरियाणा से लेकर दिल्ली तक कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं। और कार्रवाई के खिलाफ संघर्ष करने का दावा कर रहे हैं। दिल्ली में अपने आवास पर बड़े स्तर पर समर्थकों के साथ बैठक करने के जरिये और सोमवार को हिसार के देवीलाल सदन और कल भिवानी में दुष्यंत कार्यकर्ताओं से रूबरू हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि “मैं हर संघर्ष के लिए तैयार हूं।
संघर्ष से नहीं डरता और यह मैंने अपने परदादा, दादा और पिता से सीखा है”। पार्टी में अजय चौटाला के योगदान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि “उन्होंने पार्टी के लिए 40 साल लगाए हैं”। दुष्यंत चौटाला कार्यकर्ताओं की मेहनत की बदौलत इनेलो को फिर सत्ताह तक पहुंचाने की बात कर रहे हैं। हिसार और भिवानी में जिस तरह से बुजुर्गों, महिलाओं व युवाओं ने दुष्यंत का स्वागत किया, उससे तो ऐसा ही लग रहा था कि निष्कासन के बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ी है।
अभय चौटाला के इनेलो कार्यकारिणी में दुष्यंत समर्थकों को कम तवज्जो देने पर दुष्यंत चौटाला ने ट्वीट कर लिखा कि “ना मैं विचलित हूं, ना मैं भयभीत हूं”। उनका नेताओं से मिलने का सिलसिला जारी है। सूत्रों की मानें तो दुष्यंत चौटाला बसपा सुप्रीमो मायावती से भी मिलने का समय ले चुके हैं। इनेलो के कार्यकर्ताओं का एक गुट अभय चौटाला को भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता है तो एक गुट दुष्यंत चौटाला के पक्ष में है।
31 साल पहले भी इस राजनीतिक परिवार में इसी तरह के हालात चौधरी देवीलाल के सामने बने थे। दरअसल 1987 में एकतरफा जीत ही देवीलाल के बेटों के बीच वर्चस्व की जंग की बड़ी वजह बन गई थी। 1989 में देश में हुए बदलाव के बाद केंद्र में चौधरी देवीलाल की मांग बढ़ने पर उनके सामने अपने तीनों बेटों रणजीत सिंह, प्रताप सिंह और ओमप्रकाश चौटाला में से किसी एक को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाने का विकल्प था।
विधानसभा में 90 में से 85 सीट जीत कर हरियाणा में बड़ी ताकत के रूप में उभरे देवीलाल के लिए यह चयन करना बड़ा मुश्किल था। अंतत: उन्होंने ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री पद पर बैठा दिया। यह कलह उस वक्त भी बढ़ी थी। और इसके नतीजे के तौर पर उनके दूसरे बेटे रणजीत और प्रताप सिंह चौटाला धीरे-धीरे अलग राह पकड़ लिए।
आज के हालात दूसरे हैं। ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े पुत्र अजय चौटाला जेबीटी टीचर घोटाले में दोषी पाए जाने पर जेल में सजा काट रहे हैं। ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे पुत्र अभय चौटाला को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं पर पार्टी कार्यकर्ताओं पर दुष्यंत की पकड़ ज्यादा है। देवीलाल की राजनीतिक विरासत पर कब्जा करने के लिए अभय चौटाला और उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला के बीच चल रही जंग घर की चाहरदीवारी से बाहर सड़कों पर आ गयी है।
पार्टी के आज के हालात विपरीत हैं। ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा सौंपते समय पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में थी और आज जब ओमप्रकाश चौटाला पार्टी की कमान अभय चौटाला के हाथ सौंपना चाहते हैं तो लगभग 15 साल से पार्टी सत्ता से बाहर है। ऐसे में संघर्ष का पलड़ा भारी होना स्वाभाविक है। और दुष्यंत चौटाला व्यवहार और संघर्ष दोनों मामलों में अभय चौटाला पर 21 बैठ रहे हैं।
चरण सिंह
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