Friday 29 July 2016

उप्र चुनाव : मायावती को मिला मजबूत हथियार

स्वामी प्रसाद मौर्य व आरके चौधरी की बगावत के बाद लगातार दलितों के निशानों को झेल रहीं मायावती को भाजपा उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के 'वेश्याÓ संबंधी बयान ने उत्तर प्रदेश चुनावी दंगल में जोर आजमाइश का एक मजबूत हथियार दे दिया है। जिस हथियार बल पर मायावती ने दलितों को एकजुट किया था, वही हथियार उनके हाथ में उस समय थमा दिया गया, जब दलितों के दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर उन पर पार्टी के संस्थापक कांशीराम की नीतियों से भटकने तथा टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं।
   अपनों के आरोपों से जूझ रहे मायावती ने बड़ी चालाकी से दलितों के अपमान का हवाला देकर पार्टी से छिटके दलितों को सवर्णांे के खिलाफ भड़का दिया है। भले ही बसपा नेताओं ने दयाशंकर सिंह के परिजनों को भद्दी-भद्दी गालियां दे दी हों। भले ही नसीमुद्दीन सिद्धिकी की गिरफ्तारी को लेकर भाजपा सड़कों पर हो पर मायावती के दांव के सामने भाजपा के सभी दांव फेल होते नजर आ रहे हैं।
    भाजपा को यह सोचना होगा कि जो माहौल भाजपा दलित-बनाम सवर्ण बनाने का प्रयास कर रही है। वही कार्ड कांग्रेस ने भी खेला है। कांग्रेस ने जहां ब्राह्मण चेहरे के रूप में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाया है। वहीं ठाकुर चेहरा संजय सिंह को चुनाव समिति के चीफ बनाया है। प्रमोद तिवारी पहले ही एक ब्राह्मण चेहरा मौजूद है। सपा में भी ठाकुर व ब्राह्मण बहुतायत में हैं। इतना ही नहीं मायावती से टिकट मांगने वाली लाइन में सबसे अधिक सवर्ण ही हैं। ऐसे में इस प्रकरण से भाजपा को फायदा हो या न हो पर मायावती इस मुद्दे को कैश करा ले जाएंगी। मौके की नजाकत को भांपते हुए इस प्रकरण में दिलचस्पी ले रही सपा को भी कुछ सूझ नहीं रहा है।
     सपा ने ठाकुरों को रिझाने के लिए दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वामी सिंह के पक्ष में बलिया से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के पुत्र नीरज शेखर को लगा दिया है। ये लोग यह भूल गए हैं कि ये वही मायावती हैं कि जिन्होंने 'तिलक तराजू और तलवार इनके मारो जूतें चारÓ का नारा देकर दलितों को एकजुट किया था। भले ही दयाशंकर के परिवार के साथ सपा नेता नीरज शेखर समेत कई सामाजिक संगठन आ गए हों पर दयाशंकर की एक भूल ने मायावती की पौ बारह कर दी है। मायावती अब इस मुद्दे को चुनाव में कैश कराने में युद्ध स्तर पर जुट गई हैं। अब वह दलितों के अपमान से जोड़ते हुए उत्तर प्रदेश में रैलियां करने जा रही हैं। इसकी पहल वह आगरा से कर रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों की संख्या बहुतायत में है, जिन्हें उकसाने के लिए उनके लिए यह मुद्दा बहुत है।     
     भाजपाइयों को यह समझना होगा कि गुजरात में बच्चों व मध्य प्रदेश में महिलाओं की पिटाई मामले को मायावती ने पूरी तरह से सुलगाकर दलितों में मैसेज दे दिया है। समझने की बात यह है कि उत्तर प्रदेश चुनाव ही नहीं मायावती इस मामले को पंजाव व उत्तरांचल चुनाव में भी लेकर जाएंगी। भले ही दयाशंकर सिंह के परिवार की तहरीर पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया हो। बिहार में भी एक मामला दर्ज करा दिया गया हो पर इस वोटबैंक की राजनीति में मायावती ने बढ़त बना ली है।
    मायावती की चतुराई देखिए कि माहौल को देखते हुए उन्होंने दलितों की न कहकर अपने को गरीबों की देवी बताया। इस प्रकरण से जहां भाजपा के दलितों को संगठन से जोड़ने के अभियान को झटका लगा है वहीं आरएसएस के दलितों के रिझाने का प्रयास भी कमजोर हुआ है। उत्तर प्रदेश चुनाव को देखते हुए जो भाजपा दलित कार्ड खेलने के फिराक थी, मायावती ने उसकी हवा ही निकाल दी है। इसके लिए भाजपा हाईकमान की संगठन पर नियंत्रण न रहना भी कहा जा सकता है।
    भले ही अभी जल्दबाजी लग रही हो पर जो गलती आरएसएस ने बिहार चुनाव में आरक्षण का मुद्दा छेड़कर लालू प्रसाद को एक मजबूत हथियार दे दिया था। ठीक उसी तरह से दयाशंकर सिंह ने मायावती को लेकर आपत्तिजनक बयान देकर मायावती का एक मजबूत हथियार दे दिया है। आरक्षण वाला बयान भी भावनाओं से जुड़ा था और दयाशंकर का आपत्तिजनक बयान भी भावनाओं से जुड़ा है। भावनाओं से जुड़ा बयान दयाशंकर सिंह के परिजनों को गाली देना वाला भी है पर आज की तारीख में जो जागरूकता दलितों में वह सवर्ण में नहीं दिखाई दे रही है।
   उधर मायावती को फॉर्म में आती देख नेताजी के माथे पर भी बल पड़ गए हैं। कांशीराम की नीतियों से भटकने का आरोप लगाकर मायावती को कटघरे में खड़ा कर रहे दलित नेताओं के बयानों से जो नेताजी मन ही मन मुस्करा रहे थे, वे अब बसपाईयों के दलितों के अपमान का हवाला देकर आक्रामक रुख अपमाने पर असहज महसूस कर रहे हैं। जगजाहिर है कि देश में एकमात्र मायावती ही ऐसी नेता हैं जो अपने वोटबैंक को किसी भी पार्टी में कंवर्ट करा सकती हैं। कहना गलत न होगा कि मायावती ने एक दांव से ही उत्तर प्रदेश चुनाव में बढ़त बना ली है। भले ही संसद में भाजपा के दिग्गजों ने मायावती से माफी मांग ली हो। भले ही बसपाईयों के उग्र रूप धारण कर लेने पर भाजपा और सपा लगातार मायावती पर निशाना साध रही हो। भले ही दयाशंकर सिंह के परिवार मायावती के विरोध और दयाशंकर के पक्ष में सड़कों पर उतर आया हो पर मायावती ने अपनी गति पकड़ ली है। यदि चुनाव में सपा व भाजपा को कोई मजबूत मुद्दा न मिला तो मायावती की रफ्तार को रोकना मुश्किल लग रहा है।

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