Saturday, 20 February 2016

अंग्रेजी हुकूमत के कहर की दास्तां समेटे पत्थगरढ़ किला

    पत्थरगढ़ किले का निर्माण नजीबाबाद के नवाब नजीबुद्दौला ने कराया था। यह किला 40 एकड़ भूमि पर बना है। इसके निर्माण में मोरध्वज से लाए गए पत्थरों का भी इस्तेमाल हुआ था। यही वजह है कि लोग इसे मोरध्वज किले के नाम से भी जानते हैं। सुल्ताना के इस किले सभी गतिविधियां संचालित करने की वजह से यह किला सुल्ताना डाकू के किले के रूप में प्रसिद्ध हुआ। अंग्रेजी हुकूमत में भले ही सुल्ताना जैसे लोगों को डाकूओं की संज्ञा दी गई हो पर असल में ये लोग व्यवस्था से तंग आकर बागी बने थे। इन लोगों ने अंग्रेजों व जमींदारों आैर साहूकारों के अत्याचारों से तंग आकर गलत रास्ता अख्तियार किया था।
   
जनपद बिजनौर ऐसा स्थान है जहां पर महाभारत व मुगलकालीन तक की धरोहर अपनी उपस्थिति का एहसास कराती रहती हैं। यहां पर जहां विदुरकुटी महाभारत की यादें ताजा करती है वहीं कण्व ऋषि के आश्रम की निशानियां राजा दुष्यंत, शकुंतला उनके पुत्र सम्राट भरत के इतिहास की गवाही देती प्रतीत होती है। शायर दुष्यंत की जन्मस्थली रहे इस जिले में इतिहास के पन्नों में अपनी अनगिनत कहानियों को स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराने वाला पत्थरगढ़ किला ऐसी धरोहर है जो नवाबी शौक, अंग्रेजों के कहर आैर सुल्ताना के प्रतिशोध की दास्तां समेटे हुए है। नजीबाबाद शहर से लगभग दो किलोमीटर दूर बने इस किले को लोग सुल्ताना डाकू के किले के रूप में जानते हैं। किले का निर्माण 1755 में नजीबाबाद के नवाब नजीबुद्दौला ने कराया था आैर उन्होंने ही अपने नाम पर नजीजाबाद शहर बसाया। असल में नजीबुद्दौला का नाम नजीब  खां था। नजीबुद्दौला का खिताब उन्हें मुगलों के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार से मिला था।
   बात किले के स्वरूप की जाए तो यह किला लगभग 40 एकड़ भूमि पर बना है। इस किले के निर्माण में मोरध्वज से लाए गए पत्थरों का भी इस्तेमाल हुआ था। इसलिए इसे मोरध्वज किले के नाम से भी जानते हैं। किला कितनी मजबूती धारण किए हुआ था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी दीवारों की चौड़ाई दस फुट से भी अधिक है। इन दीवारों के बीच कुएं बने हुए हैं। इन कुओं की खासियत यह थी कि इनसे किले के अंदर से दीवारों के सहारे ऐसे पानी खींचा जा सकता था कि बाहरी आदमी को पता न चल सके। यह किला लखौरी इंटों व पत्थरों से बना है। किले के दो द्वार हैं, इन पर ऊपर आैर नीचे दो-दो सीढि़यां बनी हुई हैं। इसमें 16 फुट चौड़े व 26 फुट लम्बे कमरों की छतें बिल्कुल समतल हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसमें कहीं पर भी लौहे के गटर या स्तम्भ नहीं हैं। इस किले का मुख्य द्वार नजीबाबाद शहर की ओर है। कहा जाता है कि इसमें बड़े-बड़े दो दरवाजे लगे हुए थे। ये दरवाजे उतरवाकर हल्दौर रियासत (राजपूतों की) में लगा दिए गए थे, जहां पर ये आज भी मौजूद हैं। मुख्य द्वार की ऊंचाई लगभग 60 फुट है। इसके ऊपर कमल के फूल पर चार छोटी अष्ट भुजाकार बुर्जियां भी बनी हुई हैं। इन बुर्जियों पर लोहा लगा था। किले में सुरक्षा की दृष्टि से चारों ओर बुर्ज भी बने हुए थे, जो अब टूट गए हैं। किले के चारों ओर गहरी खाई भी खुदी हुई थीं, जो अब भर गई हैं। किले के बाहर सुरक्षा चौकियां बनी हुई थीं, जो अब खंडहर हैं। बताया जाता है कि इस किले के अंदर से दो सुरंगें भी निकाली गई थीं, जो कहीं दूर जंगल में जाकर निकलती थीं। इस किले के अंदर एक सदाबहार तालाब भी है। इस तालाब का पानी आज तक नहीं सूखा है। इसकी गहराई के विषय में अनेक मत हैं। कुछ लोग तो इसे पाताल तक बताते हैं।
   सुल्ताना डाकू के इस पर कब्जा करने के बाद इस किले ने देश ही नहीं बल्कि विदेश में प्रसिद्धि पाई। नाटकों, नौटंकी आैर कहानी में सुल्ताना को बिजनौर का  बताया जाता है पर वह आैर उसका गिरोह मुरादाबाद जिले का था। अंग्रजी हुकूमत के समय लगभग 155 साल पहले भांतू जाति का एक गिरोह मुरादाबाद में सक्रिय था, जिसमें सुल्ताना भी था। इस गिरोह ने सीधे अंग्रेजों हुकूमत को चुनौती दे रखी थी। गिरोह से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेजों ने पत्थरगढ़ किले को कब्जे में लेकर इस गिरोह के लोगों को पत्थरगढ़ किले में लाकर डाल दिया तथा उन्हें काम पर लगाने के लिए यहां पर एक कपड़े का एक कारखाना स्थापित कर दिया। इन लोगों को काम पर लगा दिया गया। यहां पर गिरोह बनने का कारण इन लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे थे। इन लोगों की मजदूरी इतनी कम थी कि इनके परिवार का पालन-पोषण नहीं हो पाता था। हां इनको सप्ताह में एक दिन नजीबाबाद शहर में जाने की इजाजत मिलती थी। जेलनुमा जिंदगी से परेशान तथा आर्थिक तंगी के चलते इन लोगों ने चोरी छिपे फिर से एक गिरोह बना लिया, जिसका सरगना बालमुकुंद को बनाया गया। कुछ समय बाद बालमुकुंद नजीबाबाद के पठानपुरा मोहल्ले के मोहम्मद मालूक खां की गोली का शिकार हो गया। बालमुकुंद के मरते ही गिरोह की बागडोर सुल्ताना के हाथ में आ गई, जिसने अपने जज्बे आैर चालाकी से अंग्रेजों को छकाकर नजीबाबाद के पास ही कंजली बन में डेरा डाल दिया। सुल्ताना का गिरोह इस वन में कितना सुरक्षित था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कंजली वन का विस्तार कई सौ किलोमीटर था।
   सुल्ताना ने नजीबाबाद के आसपास के गरीबों को विश्वास में लेकर जमींदारों व साहूकारों के घरों में डकैती डालनी शुरू कर दी। हर जगह अंग्रेजों व जमीदारों को चुनौती पेश करने वाले इस डाकू के चर्चे पूरे हिन्दुस्तान में होने लगे। सुल्ताना गरीबों में इसलिए भी ज्यादा लोकप्रिय था कि क्योंकि उसका कहर जमींदारों तथा साहूकारों पर ही टूटता था आैर उनसे लूटकर वह सब कुछ गरीबों में बांट देता था। कहा जाता है कि उसने कई गरीब बेटियों की शादी भी कराई। सुल्ताना की विशेष बात यह भी थी कि डाकू होने के बावजूद वह महिलाओं की इज्जत करता था तथा उनके द्वारा पहने जेवर को लूटने की इजाजत अपने लोगों को नहीं देता था। सुल्ताना के बारे में कहा जाता है कि डकैती डालने से पहले वह डकैती के दिन व समय का इश्तहार उस मकान पर चिपका देता था। इस बात में इतना दम नहीं, जितनी मजबूती के रूप में यह पेश की गई। हां, इतना जरूर था कि उसने बदले की भावना से कुछ जमींदारों के घर पर इश्तहार जरूर लगाए थे तथा इश्तहार लगाने कुछ ही समय बाद डकैती भी डाल दी थी। सुल्ताना ने नजीबाबाद के पास जहां डकैती डाली, उनमें जालपुर आैर अकबरपुर प्रमुख हैं। नजीबाबाद से लगभग 10 किलो दूर जालपुर में शुब्बा सिंह जाट जमींदार था, वह गरीबों पर बहुत अत्याचार करता था। किसी गरीब ने उससे छुटकारा पाने की गुहार सुल्ताना से लगाई तो उसने शुब्बा सिंह को सबक सिखाने की योजना बना ली। जमींदार ने अपनी हिफाजत के लिए कई गोरखा सिपाही भी रखे हुए थे, जो 24 घंटे उसे घर पर पहरा देते थे लेकिन वह भी सुल्ताना को नहीं रोक सके। सुल्ताना के गिरोह तथा गोरखा के बीच कई घंटे तक गालियां चलीं। इसी बीच सुब्बा सिंह घर से फरार हो गया। बाद में सुल्ताना सुब्बा सिंह को पकड़ तो न सका पर उसने वहां डकैती जरूर डाली। कहा जाता है कि सुल्ताना के पास एक घोड़ी थी, जिस पर सवार होकर वह एक से बढ़कर एक निशाना साध सकता था। अक्सर डकैती डालते समय वह इस घोड़ी को किसी दीवार से सटाकर खड़ा कर फायरिंग करता था।
    सुल्ताना का कहर जब साहूकारों तथा जमींदारों पर टूटने लगा तो उन्होंने अंग्रेज हुकूमत से सुल्ताना को गिरफ्तार करने की गुहार लगाई। अंग्रेजी हुकुमत ने तेज तरार अधिकारी यंगसाहब को इंग्लैंड से बुलाया तथा सुल्ताना को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंपी। यंग साहब ने नजीबाबद आकर सुल्ताना के करीबी रहे गफ्फूर खां से सुल्ताना की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा। पहले तो गप्फूर खां ने आना-कानी की पर बाद में यंग साहब के समझाने पर वह तैयार हो गए। नजीबाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मेमन सादात के रहने वाले डिप्टी सुपरिटेंडेंट अब्दुल कासिम के संबंध नजीबाबाद के लोगों से अच्छे थे। अब्दुल कासिम की वजह से ही नजीबाबाद के कुछ लोग सुल्ताना की गिरफ्तारी के लिए यंगसाहब का साथ देने को तैयार हो गए। सुल्ताना की मुखबिरी इतनी जबर्दस्त थी। यंगसाहब की हर योजना का पता उसे तुरंत चल जाता था। इसकी वजह से कई साल तक जूझने के बाद भी यंग साहब उसे नहीं पकड़ पाए। आखिरकार थककर वह आगरा हेड क्वार्टर चले गए।
आखिरकार वह हुआ जो हिन्दुस्तान में होता आया है। नजीबाबाद के मुंशी की मुखबरी पर यंग साहब नजीबाबाद आए आैर खेडि़यों के जंगल में बेफिक्र पड़े सुल्ताना को चारों ओर से घेर लिया पर किसी थानेदार के गोली चलाने पर सुल्ताना अपने साथियों के साथ भाग निकलने में सफल हो गया। यंगसाहब सिर पटक कर रह गए। कहा जाता है कि सुल्ताना वहां लाखों के जेवरात छोड़कर गया था। यंगसाहब ने झुंझलाकर थानेदार को नौकरी से निकाल दिया। अगले दिन जट्टीवाला में मुंशी की मुलाकात सुल्ताना से हुई, जिसमें उसने गैंडीखाता न जाने की सलाह दी। गैंडीखाता उस समय साहनपुर रियासत (जाटों की रियासत) का एक गांव था। कहा जाता है कि सुल्ताना महिलाओं से बहुत दूर रहता था। यह सही नहीं है। सुल्ताना गैंडीखाता स्थित एक स्कूल के चपरासी की पत्नी की सुंदरता पर मोहित था, वह उसकी कमजोरी थी, जिसका फायदा यंग साहब ने उठाया। मुंशी के मिलने के तीन-चार दिन बाद अपने साथियों के साथ सुल्ताना गैंडीखाता पहुंचा। यंगसाहब नजीबाबाद रुके हुए थे। पल-पल की खबर उन्हें थी। सुल्ताना आैर उसके दो साथी उस महिला के घर चले गए आैर अन्य साथी गैंडीखाता के बाग में ठहर गए। योजना के अनुसार सुल्ताना तथा उसके दोनों साथियों की वहां खूब खातिर हुई, उन्हें खूब शराब पिलाई गई।
   यंग साहब अपने जवानों के साथ उस महिला के घर में घुस गए आैर सुल्तान जिलेदार तथा गांव के चौकीदार मिथरादास ने पूरी ताकत से सुल्ताना को दबोच लिया, जब सुल्ताना ने राइफल पर डाथ डाला तो वह पहले ही हटा दी गई थी। गठीला व नाटा सुल्ताना इतना ताकतवर था कि शराब के नशे में भी वह दोनों को घसीटता हुआ बाहर की ओर भागा। एक सिपाही के उसके पैरों पर राइफल की बट मारने से वह गिर गया। अब सुल्ताना आैर उसके दोनों साथी पुलिस हिरासत में थे । सुल्ताना वह उसके साथियों को हरिद्वार स्टेशन पर ले जाया गया तथा स्पेशल ट्रेन से नजीबाबाद लाया गया। यह सुल्ताना की गरीबों में लोकप्रियता ही थी कि उसकी एक झलक के लिए पूरा नजीबाबाद तथा आसपास के गांवों के लोग स्टेशन पर मौजूद थे। सुल्ताना आैर उसके दोनों साथियों को आगरा जेल भेज दिया गया। धीरे-धीरे उसके गिरोह के 130 बदमाश भी गिरफ्तार कर लिए गए। उनमें से एक सरकारी गवाह बन गया, जिसने उन तमाम लोगों की शिनाख्त की जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सुल्ताना से संबंध था। सुल्ताना के गिरोह पर मुकदमा चलाया गया। यह केस इतिहास में 'गन केस" के नाम से मशहूर है। बाद में सुल्ताना समेत तीन को सजा-एक मौत हुई तथा उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। उसके अन्य साथियों में से कुछ को उम्र कैद तथा कुछ को अन्य अवधि की सजा दी गई। सुल्ताना के हाथ की तीन अंगुलियां कटी हुई थी, जिनसे उसकी शिनाख्त हुई थी।

Thursday, 18 February 2016

देशभक्त बनाने व जमीर जगाने की जरूरत

   आतंकवाद मामले में अंतरराष्ट्रीय जलालत झेल रहे पाकिस्तान ने अब अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई को हमारे देश के युवाओं को भटकाने के लिए लगाया है। इस मामले में आईएसआई का साथ खुंखार आतंकी संगठन आईएस से दे रहा है। आईएस के आस्ट्रेलिया, कनाडा आैर सीरिया में हमारे देश के खिलाफ हमारे ही युवाओं को आतंक का प्रशिक्षण देेने की सूचनाएं मिल रही हैं। कई युवाओं के सीरिया पहुंचकर आईएस संगठन में शामिल होने की बातें सामने आ रही हैं। स्थिति यह है कि आईएसआई ने कई प्रदेशों में नेटवर्क के अलावा विभिन्न विभागों में भी खुसपैठ बना ली है। हाल ही में सेना की गोपनीय सूचनाएं पाक को भेजने के आरोप में बाड़मेर से दो आैर जैसलमेर में एक व्यक्ति की गिरफ्तारी व एक महिला की हिरासत मामले को आैर गंभीर बना रही है। गत दिनों जयपुर के बिचून गांव के राजकीय विद्यालय में गणतंत्र दिवस पर कुछ युवकों के राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ने तथा जलाने की हरकत ने उन पर आतंकी संगठनों के प्रभाव को उजागर कर दिया।
   जम्मू-कश्मीर में आए दिन आईएस का झंडा लहराना देश के लिए खतरे की घंटी है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जिस देश के युवाओं ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिस देश के बच्चे देश पर मर मिटने का जज्बा लेकर पैदा होते हों। ऐसा क्या हो गया कि ये बच्चे उन लोगों का साथ देना को उतारू हैं जो हमारे देश को बर्बाद करने की नीयत पाले बैठे हैं। दरअसल देश में चल रही लूट-खसोट की राजनीति, भ्रष्ट होती नौकरशाही, शिक्षा के हो रहे व्यवसायीकरण, नैतिक शिक्षा व अच्छे संस्कारों के अभाव, परिजनों का बच्चों के मन में धन कमाने की लालसा पैदा करने का रवैया बच्चों को भटका रहा है। देश की भ्रष्ट होती व्यवस्था से त्रस्त होकर बड़े स्तर पर कुंठित बच्चे गलत रास्ता अपना ले रहे हैं। दिखावे की जिंदगी बच्चों के मन में भविष्य संवारने के बजाय मौज-मस्ती ज्यादा असर कर रही है। इसी का फायदा आतंकी संगठन उठा रहे हैं। इन परिस्थितियों में देश में कितनी एजोंसियां बन जाएं, कितने विभाग बन जाएं जब तक युवाओं में देशभक्ति का भाव पैदा नहीं होगा तथा लोगों के मरते जा रहे जमीर को जगाया नहीं जाएगा तब तक आतंकवाद ही नहीं किसी भी समस्या का निदान मुश्किल लग रहा है। इन सब परिस्थितिमें जेएनयू में देश विरोधी नारों देश का माहौल आैर खराब कर दिया है। देश की स्थिति कितनी विकट हो गई है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न जगहों से ऐसे 11 संदिग्ध लोग गिरफ्तार किए गए हैं जो बच्चों को आईएस संगठन में शामिल होने के लिए धन की व्यवस्था कर रहे थे।
   स्पेशल सेल के पकड़े गए आईएस आतंकी मोहसिम शेख तो फाइनेंसर नहीं बल्कि सीरिया पहुंचकर आईएस संगठन में शामिल होकर लड़ने की चाहत पाले बैठा था। उसने बताया कि कई बच्चे सीरिया पहुंचकर आईएस संगठन में शामिल हो गए हैं। हरदोई से गिरफ्तार किए गए खुद को मोलवी बताने वाले अब्दुस सामी काजमी के बारे में बताया जा रहा है कि वह बच्चों को देश के खिलाफ उकसाता था।
  गत दिनों राष्ट्रीय जांच एजेंसी के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से गिरफ्तार किए गए कर्नाटक, महाराष्ट्र आैर जम्मू-कश्मीर के तीन बच्चे देश में आईएस के नेटवर्क की पुष्टि करते देखे जा रहे हैं। इन युवकों को संयुक्त अरब अमीरात ने आईएस के संपर्क में होने का आरोप लगाकर वापस भेजा था। वैसे भी तमिलनाडु, बिहार व उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आईएसआई के नेटवर्क की बात पहले ही सामने आ चुकी है। इन परिस्थितियों में देश को बड़े स्तर पर मंथन की जरूरत है। मामले में जहां अंतरराष्ट्रीय दबाव समय की मांग है वहीं अपनी आतंरिक व्यवस्था को सुदृढ़ करना भी जरूरी हो गया है। इन हालात में देश की खुफियां एजेंसियों की जवाबदेही तो बनती ही है साथ ही युवाओं के भटकने के कारणों पर जाते हुए भटके युवाओं का सही रास्ते पर लाना भी हमारी जिम्मेदारी है।
   इसमें दो राय नहीं कि पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई इन युवाओं का ब्रोन वाश कर उन्हें आतंकी गतिविधियों में धकेल रही है पर ये लोग इस घिनौने काम में इतनी जल्द कैसे कामयाब हो जा रहे हैं ?  यह सोचनीय विषय है। ये लोग नाबालिग बच्चों पर ज्यादा डोरे डाल रहे हैं। इन बच्चों के अपरिपक्व मन में जमे फिल्मी स्टाइल का फायदा उठाते हुए आईएस इन्हें आतंकवादियों के स्टंट की वीडियो क्लीपिंग दिखा रहे हैं। आतंकवादियों को इन बच्चों के मन में हीरो की छवि बना रहे हैं। देश में आईएस का जाल फैलाने में सोशल साइटों का भी इस्तेमाल हो रहा है। ये हालात देश में अचानक नहीं बने हैं। इसके लिए देश व समाज दोनों जिम्मेदार हैं। देखना यह भी होगा कि भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था में सुधार का हर उपाय बेमानी साबित हो रहा है। देश को चलाने के लिए बनाए गए स्तंभ न्याय पालिका, कार्यपालिका, विधायिका आैर मीडिया में भी भ्रष्टाचार की बातें सामने आ रही हैं तो युवाओं को संभालेगा कौन ? वैसे भी भागदौड़ की इस जिंदगी में परिजनों के पास बच्चों के साथ बिताने के लिए समय है नहीं।
    केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने धर्मगुरुओं के साथ बैठक कर इस मामले को समझने का प्रयास जरूर किया है। धर्मगुरु भी मामले पर गंभीर बताए जा रहे हैं। देखना यह भी होगा कि अब तक तो मुस्लिम व सिख बच्चों के ही भटकाने की बातें सामने आ रही हैं। यदि मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं कि जब दलित बच्चे भी इस घिनौने काम में शामिल होते दिखेंगे। वजह साफ है कि कारण कोई भी हो आज भी दलित बच्चे जातीय वैमनस्यता व भेदभाव के शिकार हो रहे हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमूला की आत्महत्या भी इसमें से एक है। जिस तरह से ईसाइयों ने दलितों की इस परिस्थिति का फायदा उठाया, ठीक उसी तरह से आईएसआई भी दलित बच्चों पर डोरे डाल सकती है।    मुस्लिम, सिख आैर दलित बच्चे ही क्यों इस माहौल विभिन्न धर्म व जाति के बच्चे भटक रहे हैं, जो मौज-मस्ती के लिए विभिन्न अपराधों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। दूसरी ओर कुछ मुस्लिम संगठन गिरफ्तार किए गए युवाओं के पक्ष में आ गए हैं। जमात ए इस्लामी हिन्द, जमियत उलेमा ए हिन्द, जमियत अहले हदीश, ऑल इंडिया मुस्लिम ए मुशावरात, ऑल इंडिया मिल्ली कांउसिल और वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया के नेता कार्रवाई को आने वाले राज्यों में विधानसभा चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बता रहे हैं। इन लोगों का आरोप है कि मोदी सरकार में आतंकवाद को लेकर एकतरफा कार्रवाई की जा रही है।
    मामला इतना गंभीर है कि अब तक हुए आतंकी हमलों में पाक के आतंकी शामिल होने की वजह हम लोग पाक को घेर लेते हैं। पर हमारे ही देश के युवा आतंकी हमलों में शामिल होंगे तो हम लोगों की विवशता आैर बढ़ जाएगी। वैसे भी आतंकी हमलों में हम लोग पाकिस्तान पर भी दबाव नहीं बना पा रहे हैं। पाक हर बार पुख्ता सुबूत न देने का बहाना बनाकर अपनी जवाबदेही से बचता रहा है। चाहे संसद पर हुआ आतंकी हमला हो, मुंबई ताज होटल का हो या फिर पठानकोट हमला हर बार हमें निराशा ही हाथ लगी है। पठानकोट मामले में अमरीका के दबाव के बावजूद पाक ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जिसमें हम लोग संतुष्ट हो सकें। खुंखार आतंकी हाफिद सईद लगातार भारत पर आतंकी हमले की धमकी दे रहा है आैर पाक मूकदर्शक की भूमिका में है। यह पाक की गलत नीयत ही है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद पाक से आतंकी गतिविधियां कम नहीं हो रही हैं।

Friday, 5 February 2016

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना बनने जा रहा निर्णायक चुनावी मुद्दा

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना मूल्य व बकाये को लेकर किसानों के चल रहे आंदोलन ने ऐसा रूप ले लिया है कि यह मामला निर्णायक चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है। जो किसान गुस्से में अपना गन्ना जला देते थे, वे अब अपना हक मांगने सड़कों पर उतर आए हैं। आंदोलन को गरमाता देख जाति धर्म के नाम पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति करने वाले दल गन्ने पर चुनावी बिसात सजा रहे हैं। तीन साल से लगातार गन्ने का मूल्य 280 रुपए प्रति क्विंटल रहने से सपा किसानों के निशाने पर है। केंद्र में काबिज भाजपा इस मामले को भुनाने में लग गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पार्टी मानी जाने वाली रालोद से जदयू व पीस पार्टी सट रहे हैं। किसानों के एकजुट होने से दलितों के बल पर राजनीति करने वाली मायावती की भी निगाहें गन्ना किसानों पर है। वह गन्ने की समस्या को लेकर सपा सरकार को दोषी ठहरा रही हैं।
    प्रदेश में तीन साल से गन्ना मूल्य एक ही रहना, प्रदेश सरकार का किसानों को राहत न देकर चीनी मिलों को सोसायटी कमीशन, गन्ना क्रय कर आैर चीनी पर प्रवेश कर की छूट देना किसानों के आंदोलन में आग में घी का काम कर रहा है। सरकार का 14 दिनों के अंदर भुगतान मिलने का दावा भी कागजों तक ही सिमट कर रह गया है। प्रदेश सरकार ने बकाया भुगतान न देने पर 50 चीनी मिलों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज कराई पर इसका कोई खास फायदा किसानों को नहीं मिला।
   दरअसल गन्ना किसानों की समस्याओं को देखते हुए भाजपा ने भाकियू को आगे कर आंदोलन को हवा दी है। इस काम में केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान को लगाया गया है। आंदोलन की अगुआई भले ही भाकियू प्रमुख नरेश टिकैत व प्रवक्ता राकेश टिकैत कर रहे हों पर आंदोलन की असली सूत्रदार भाजपा बताई जा रही है। गत दिनों ग्रेटर नोएडा में किसान मोर्चे की बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गन्ना किसानों की समस्याओं को उठाकर पार्टी के रुख को इंगित कर दिया था। केंद्र सरकार 2400 करोड़ रुपए के बाद चीनी मिलों को 6000 करोड़ का ब्याजमुक्त कर्ज तथा साढ़े चार रुपए प्रति क्विंटल की सब्सिडी देकर गन्ना किसानों की हमदर्द होने का प्रयास कर चुकी है। वैसे अखिलेश सरकार ने भी 11 की जगह 40 रुपए प्रति क्विंटल से सब्सिडी तथा इस सत्र में 14 दिनों में गन्ने का भुगतान की घोषणा कर किसान हितैषी होने का दावा किया था। यह बात दूसरी है कि केंद्र व राज्य सरकारों के दावे कागजों तक ही सिमटे हुए हैं।
   गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर,  बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, शामली समेत लगभग एक दर्जन जिलों के किसानों की आर्थिकी मुख्य रूप से गन्ने की खेती पर निर्भर हैं। सालों से गन्ने का बकाया भुगतान न होने की वजह से उन पर कर्जा बढ़ता जा रहा है। वैसे भी इस साल पर्याप्त बारिश न होने से रबी की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है।