देश में इस समय असहिष्णुता को लेकर
बवाल मचा हुआ है। जहां लेखक-साहित्यकार अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, वहीं
बालीवुड में भी भूचाल आ गया है। अभिनेता आमिर खान के इस बयान के बाद कि
'असहिष्णुता से भयभीत मेरी पत्नी ने मुझे देश छोड़ने तक कह दिया था",
वालीवुड की बड़ी हस्तियों के साथ ही भाजपा ने भी आमिर खान को निशाने पर ले
लिया है। असहिष्णुता को लेकर प्रश्न उठता है कि जिस शब्द को लेकर देश का
बड़ा वर्ग चर्चा में मशगूल है, उस शब्द को आम आदमी तो दूर की बात है, काफी
संख्या में पढ़े-लिखे लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं। इन हालात में बवाल मचाने
से ज्यादा असहिष्णुता के बारे में लोगों को जाग्रत करने की जरूरत है।
जरूरत इस बात की है कि कैसे इस पर अंकुश लगाया जा सकता है ? कैसे यह समस्या
बढ़ी है ? इस समस्या के बढ़ने में कौन-कौन से कारण व कौन लोग हैं?
असहिष्णुता के बढ़ने का दारोमदार किसी एक वर्ग या कौम पर नहीं है, यह बात
साफ है। लोगों आैर सरकार को यह बताया भी जाना चाहिए कि इस ब्राहृपिशाच से
मुक्ति कैसे आैर किस योजना के तहत मिल पाएगी।
असहिष्णुता के विरोध के माध्यम से केंद्र सरकार बुद्धिजीवियों के निशाने पर है। यदि लेखकों व साहित्यकारों की बात करें तो उनके अनुसार गलत बात का विरोध करने पर समाज सेवकों, लेखकों व साहित्यकारों का दमन, उत्पीड़न व हत्या तक की जा रही है, जिसका जिम्मेदार ये लोग केंद्र सरकार को मानते हैं। एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दोभालकर आैर गोविंद पानसरे की हत्याओं को भी असहिष्णुता से जोड़कर देखा जा रहा है। असहिष्णुता देश में ऐसा मुद्दा बन गया है कि प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को सफाई देने पड़ रही है। वैसे तो देश में अपने-अपने तरीके से असहिष्णुता का विरोध जताया जा रहा है पर सबसे अधिक मुखर वामपंथी लेखक व साहित्यकार हैं। स्थिति यह हो गई है कि गत दिनों बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ विरोध जता रहे भारतीय लेखकों पक्ष में वाशिंगटन में लेखकों के वैश्विक संघ ने केंद्र सरकार से अपील की कि इन लोगों को बेहतर सुरक्षा, अभिव्यक्ति व स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान किया जाए।
कनाडा के क्यूबेक सिटी में हुई पेन इंटरनेशनल की 81वीं कांग्रेस में भाग लेने वाले 73 देशों के प्रतिनिधियों ने प्रतिष्ठित पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों व साहित्यकारों के साथ एकजुटता दिखाई। पेन इंटरनेशनल के अध्यक्ष जॉन राल्स्टन सॉल ने हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आैर साहित्य अकादमी को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से लेखकों आैर कलाकारों समेत हर किसी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है। असहिष्णुता का विरोध करने वाले लेखक, साहित्यकार, अभिनेता व अन्य लोग जो केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं, यदि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की बजाय समाज में असहिष्णुता को खत्म करने पर बल दें तो यह ज्यादा कारगर होगा। केंद्र सरकार को झुकना भी पड़ेगा। असहिष्णुता का विरोध करने वाले ये वे लोग हैं, जिनकी कलम व विचार से समाज परिवर्तित होता है। यह वर्ग फिर क्यों केंद्र सरकार की ओर आशा भरी निगाह से देख रहा है? वैसे भी इस वर्ग की समाज के प्रति बड़ी जवाबदेही है -पुरस्कार लौटाने व बयानबाजी करने के बदले। यदि यह वर्ग इस काम को कर ले गया तो ये लोग जनता से असली रिवार्ड पाएंगे, जो कोई सरकार व संस्था नहीं दे सकती है।
असहिष्णुता के विरोध के माध्यम से केंद्र सरकार बुद्धिजीवियों के निशाने पर है। यदि लेखकों व साहित्यकारों की बात करें तो उनके अनुसार गलत बात का विरोध करने पर समाज सेवकों, लेखकों व साहित्यकारों का दमन, उत्पीड़न व हत्या तक की जा रही है, जिसका जिम्मेदार ये लोग केंद्र सरकार को मानते हैं। एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दोभालकर आैर गोविंद पानसरे की हत्याओं को भी असहिष्णुता से जोड़कर देखा जा रहा है। असहिष्णुता देश में ऐसा मुद्दा बन गया है कि प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को सफाई देने पड़ रही है। वैसे तो देश में अपने-अपने तरीके से असहिष्णुता का विरोध जताया जा रहा है पर सबसे अधिक मुखर वामपंथी लेखक व साहित्यकार हैं। स्थिति यह हो गई है कि गत दिनों बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ विरोध जता रहे भारतीय लेखकों पक्ष में वाशिंगटन में लेखकों के वैश्विक संघ ने केंद्र सरकार से अपील की कि इन लोगों को बेहतर सुरक्षा, अभिव्यक्ति व स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान किया जाए।
कनाडा के क्यूबेक सिटी में हुई पेन इंटरनेशनल की 81वीं कांग्रेस में भाग लेने वाले 73 देशों के प्रतिनिधियों ने प्रतिष्ठित पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों व साहित्यकारों के साथ एकजुटता दिखाई। पेन इंटरनेशनल के अध्यक्ष जॉन राल्स्टन सॉल ने हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आैर साहित्य अकादमी को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से लेखकों आैर कलाकारों समेत हर किसी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है। असहिष्णुता का विरोध करने वाले लेखक, साहित्यकार, अभिनेता व अन्य लोग जो केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं, यदि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की बजाय समाज में असहिष्णुता को खत्म करने पर बल दें तो यह ज्यादा कारगर होगा। केंद्र सरकार को झुकना भी पड़ेगा। असहिष्णुता का विरोध करने वाले ये वे लोग हैं, जिनकी कलम व विचार से समाज परिवर्तित होता है। यह वर्ग फिर क्यों केंद्र सरकार की ओर आशा भरी निगाह से देख रहा है? वैसे भी इस वर्ग की समाज के प्रति बड़ी जवाबदेही है -पुरस्कार लौटाने व बयानबाजी करने के बदले। यदि यह वर्ग इस काम को कर ले गया तो ये लोग जनता से असली रिवार्ड पाएंगे, जो कोई सरकार व संस्था नहीं दे सकती है।
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