Tuesday, 17 November 2015

धर्मनिरपेक्षता का मजाक बनाना रहा बिहार चुनाव परिणाम

    लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में काबिज होने वाली भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सहारे कई प्रदेश कब्जाए पर अति उत्साह में दिल्ली के बाद बिहार में मिली जबर्दस्त शिकस्त ने केंद्र सरकार की विफलता को उजागर कर दिया। प्रधानमंत्री भी देशवासियों की उम्मीदों को दरकिनार कर विदेशी दौरे में व्यस्त रहें। सरकार महंगाई आैर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के बजाय भावनात्मक से जुड़े मुद्दे उठाती रही आैर हिन्दुत्व में इतनी खो गई कि धर्मनिरपेक्षता उसके लिए मजाक बन रह गई।
   बात बिहार चुनाव की हो तो वह बिहार जहां से महात्मा गांधी से लेकर लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का बिगुल फूंका हो। जहां के गांधी मैदान ने कई समाजवादी नेता दिए हों। खुद नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक रैल की हो। वहां के चुनाव के बारे में देश की राजनीति की दिशा तय करने की बात कहना कहीं से गलत नहीं थी। जब नरेंद्र मोदी कांग्रेस की 40 सीटों को अपनी ही झोली में आने की बात कर रहे हों, जब वह समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता को हल्के में ले रहे हों। ऐसे में ये परिणाम कहीं से आश्चर्यजनक नहीं लग रहे है। बिहार चुनाव के बारे में कहा जा रहा है कि आरएसएस सर संचालक मोहन भागवत के आरक्षण विरोधी बयान ने भाजपा की लूटिया डुबोई।
  आरक्षण हटने का डर दिखाकर लालू प्रसाद व नीतीश कुमार ने अति दलित व पिछड़ों को अपने पक्ष में लामबंद कर लिया। दादरी में हुए गो-मांस को लेकर हुई एक वृद्ध की हत्या के बाद नीतीश कुमार व लालू प्रसाद धर्मनिरपेक्ष माहौल बनाने में कामयाब रहे। ये सब बातें तो है ही साथ ही भाजपा देश में जो हिन्दुत्व का माहौल बना रही थी उसे लोगों ने नकारते हुए धर्मनिरपेक्षता में आस्था जताई है। दरअसल जनता सामाजिक संतुलन चाहती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भाजपा के हारने के बाद पाकिस्तान में जश्न मनाने के बयान ने भी लोगों को सोचने को मजबूर किया।
    मोदी यहां पर गलत रहे कि भाजपा के कई नेता उजूल-फिजूल बयान देते रहते हैं पर वह कुछ नहीं बोले। असहिष्णुता को लेकर सरकार के खिलाफ लेखक-साहित्याकार लामबंद हो गए। अपने अवार्ड लौटाने लगे पर प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे। उल्टे उनके मंत्री गैरजिम्ेमदोराना बयानबाजी करने लगे। यदि चुनाव प्रचार की बात की जाए तो इन्हीं नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव में पटना गांधी मैदान में हो रही रैली में बम विस्फोट के बाद कहा था कि हिन्दू-मुस्लिम को एक-दूसरे से लड़ने के बजाय गरीबी से लड़ना चाहिए। जब भाजपा नेताओं ने हिन्दू-मुस्लिम को लेकर बयानबाजी की तो नरेंद्र मोदी चुप्पी साधे बैठे रहे। दादरी में गो मांस को लेकर हुए वृद्ध की हत्या पर मोदी ने यह मामला राज्य सरकार का है कहकर पल्ला झाड़ लिया। यह नरेंद्र मोदी जनता की जवाबदेही से बचना ही था। जब देश महंगाई व भ्रष्टाचार से जूझ रहा हो आैर सरकार भावनात्मक मुद्दों तक ही सिमट रह गई है।
   आज के दौर में भले ही समाजवादियों पर जातिवाद-परिवारवाद व अवसरवाद का आरोप लग रहा हो पर यह जमीनी हकीकत है कि देश आज भी समाजवाद के सहारे ही चल रहा है। समाजवाद किसी विशेष नेता के बजाय समाज में व्याप्त है। नरेंद्र मोदी विदेश में भी जाकर धर्मनिरपेक्षता का मजाक बनाने से नहीं माने। वह एक विशेष दल पर निशाना साधते हुए धर्मनिरपेक्षता को टारगेट बनाते रहे। सर्वविदित है कि देश की बुनियाद धर्मनिरपेक्ष है। इस ढांचे को यह हिलाने का प्रयास किया गया तो हलचल होना स्वाभाविक है। मोदी के अब तक के कार्यकाल में ऐसा कहीं से नहीं लगा तो उन्हें गरीब आदमी की फिक्र है। चाहे मोदी विदेश में घूम रहे हों या फिर देश में बैठकें कर रहे हों। अब तक के कार्यकाल में उन्होंने कोई बैठक किसान व मजदूरों के साथ नहीं की। इसमें दो राय नहीं कि नीतीश कुमार ने बिहार में काम किया है।

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