गुरु गोविंद
दोऊ खड़े काके लागो पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। यह दोहा
संत गुरु कबीरदास ने शायद इसलिए लिखा होगा क्योंकि हमारे समाज में गुरु का
दर्जा भगवान से बड़ा माना गया है। भगवान से बड़ा दर्जा होने का कारण शायद
इसलिए माना जाता है कि क्योंकि शिक्षक ही है जो भगवान को पाने का रास्ता
बताते हैं। बच्चों का भविष्य संवारते हैं। तो स्वभाविक है कि शिक्षक अपनी
योग्यता के बल पर हमें संस्कारवान बनाने के साथ ही हमें योग्य बनाकर समाज
में सम्मान दिलाते हैं। यह शिक्षक की योग्यता पर उंगली उठने लगे तो देश का
भविष्य ही संकट में पड़ जाता है। यह मैं नहीं कह रहा हूं यह बात जहां
लगातार सुनने को मिलती रहती है वहीं हाल ही में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय
ने खुली अदालत में एक अध्यापक जहां गाय पर निबंध नहीं मिल पाया वहीं वह
चौथी कक्षा के गणित का सवाल भी हल नहीं कर पाया।
दिलचस्प बात यह है कि उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड दिल्ली आैर ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी, नगालैंड के जारी इस अध्यापक का प्रमाणपत्र मान्यता प्राप्त नहीं हैं, जबकि दिल्ली बोर्ड द्वारा जारी की गई अंकतालिका दर्शाती है कि मोहम्मद ने उर्दू, अंग्रेजी आैर गणित में क्रमश: 74 फीसद, 73 फीसद आैर 66 फीसद अंक हासिल किए थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इस तरह के प्रमाणपत्र पाकर कितने अध्यापक बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। कितने लोगों का हक मार रहे हैं। कितने स्कूलों का माहौल खराब कर रहे हैं। हालांकि व्यथित नजर न्यायाधीश इस शिक्षक पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया पर उन लोगों के खिलाफ कौन कार्रवाई करेगा जिन्होंने इन शिक्षकों को प्रमाणपत्र जारी किये हैं, या जिनकी शह पर ये लोग स्कूलों में रख लिए जाते हैं। या जो लोग इनकी योग्यता को अनदेखा करते हुए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ होते देख रहे हैं।
बात शिक्षकों की ही नहीं आज के हालात में देश के विभिन्न विभागों में अयोग्य लोग योग्य पदों पर बैठकर देश का बंटाधार करने में लगे हैं। एक ओर जहां आरक्षण देश को बर्बादी की ओर ले जा रहा है वहीं लोगों की नशों में दौड़ रहे भ्रष्टाचार से देश का विकास प्रभावित होता रहा है। इन सबके बीच प्रतिभा दम तोड़ रही है। कार्यपालिका, विधायिका की मिलीभगत से होनहारों का भविष्य चौपट करने का जो खेल में देश में चल रहा है यदि समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगा तो वह दिन दूर नहीं जब हम लोग पिछड़ी पंक्ति में खड़े दिखाई देंगे। बात शिक्षा क्षेत्र की ही नहीं है बल्कि देश को चलाने के लिए बनाए गए जिम्मेदार स्तंभ ही डगमगा गए हैं। काम कौन कर रहा है आैर श्रेय कोई ओर ले रहा है। दूसरों के हक की आवाज उठाने का दावा करने वाले मीडिया पर भी उंगली उठने लगी है। प्रकाशन का यह हाल है कि लेखों के मामले में छप किसी आैर के नाम से रहा है तो लिख कोई आैर रहा है। संसद का भी यही हाल है विचार किसी आैर के हैं आैर बोल कोई आैर रहा है। कितने संपादक हैं, जिनके नाम से हम लोग बड़े-बड़े लेख पढ़ते हैं पर पता चलता है वह लेख किसी आैर ने लिखे हैं। कितनी किताबें हैं कि लिखी किसी आैर ने आैर प्रकाशित हुई किसी आैर नाम से। कितने काम हैं कि किया किसी आैर ने आैर श्रेय कोई आैर ले गया।
देश में मुट्ठीभर लोगों ने देश की व्यवस्था ऐसे कब्जा रखी है कि ये लोग योग्य लोगों की प्रतिभा का हनन कर रहे हैं। एक से बढ़कर एक योग्य व्यक्ति इस व्यवस्था में इन लोगों को अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करते देख रहा है आैर कुछ बोल भी नहीं पा रहा है। कुछ लोग तो इस व्यवस्था में ऐसे ढल गए हैं कि कुछ पैसों के लालच में अपनी प्रतिभा ही बेच दे रहे हैं। ऐसा लगने लगा है कि जैसे हर चीज का व्यवसायीकरण हो गया हो। नैतिकता, जिम्मेदारी, जवाबदेही, देशभक्ति, स्वाभिमान, खुद्दारी को ताक पर रख लोग पैसा कमाने की होड़ में दौड़े चले जा रहे हैं। वह बात दूसरी है कि इन लोगों को इसकी कीमत, जलालत, बीमारी, विघटन, अपमान से चुकानी पड़ती हो।
इसी व्यवस्था के चलते देश का व्यवसाय चौपट होता जा रहा है। कंपनी मालिक अयोग्य अधिकारियों की हाथों में अपना व्यवसाय सौंप दे रहे हैं। ये लोग अपनी कमियां छिपाने के लिए योग्य लोगों को किसी न किसी बहाने परेशान करते रहते हैं, जिससे न केवल माहौल प्रभावित होता बल्कि उत्पादन भी प्रभावित होता है। ये लोग मालिक व श्रमिक के बीच की दूरी बढ़ाते हैं, श्रमिकों के प्रति मालिकों को भ्रमित करते हैं, मालिक को पता ही नहीं चलता कि ये लोग श्रमिकों का शोषण तो कर ही रहे हैं साथ ही कंपनी को भी डेमेज कर रहे हैं। गंदे लोगों को बढ़ावा मिलने के चलते अच्छे लोग बैंकफुट पर चले जा रहे हैं।
राजनीति के क्षेत्र में भी यही हाल है कि किसी भी तरह से पैसे कमाकर चुनाव लड़ना आैर जनप्रतिनिधि बनकर जनता के खून पसीने की कमाई पर एशोआराम की जिंदगी बिताना आज की विचारधारा रह गई है। न किसी नीति पर काम हो रहा है आैर न किसी दल के पास कोई विचार है, बस प्रभावशाली लोग पैसे के दम पर सत्ता हथिया ले रहे हैं। बड़े स्तर पर प्रॉपर्टी डीलर, गुंडे, बदमाश टाइप के लोग जब विधानसभा व संसद में जा रहे हैं तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि अच्छे पदों पर अच्छे लोग बैठेंगे। योग्य लोगों को तो किसी तरह से इज्जत बचाकर रहना पड़ रहा है। हम लोग कहते हैं कि सच्चाई परेशान हो सकती है पर हार नहीं सकती। हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होता है। पर आज के दौर में सच्चाई परेशान ही नहीं हो रही बल्कि संघर्ष-संघर्ष करते दम तोड़ दे रही है। कहा जाता है हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। पर आज अच्छाई पर बुराई हावी है। जो जितना गिरकर प्रभावशाली लोगों को सुख कर दे रहा है वह उतना ही सफल आदमी बनता जा रहा है। जो व्यक्ति जितना ईमानदार आैर खुद्दार है वह उतना ही उपेक्षित हो जाता है। यहां तक किस न्याय पालिका पर भी उंगली उठ रही है।
दिलचस्प बात यह है कि उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड दिल्ली आैर ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी, नगालैंड के जारी इस अध्यापक का प्रमाणपत्र मान्यता प्राप्त नहीं हैं, जबकि दिल्ली बोर्ड द्वारा जारी की गई अंकतालिका दर्शाती है कि मोहम्मद ने उर्दू, अंग्रेजी आैर गणित में क्रमश: 74 फीसद, 73 फीसद आैर 66 फीसद अंक हासिल किए थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इस तरह के प्रमाणपत्र पाकर कितने अध्यापक बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। कितने लोगों का हक मार रहे हैं। कितने स्कूलों का माहौल खराब कर रहे हैं। हालांकि व्यथित नजर न्यायाधीश इस शिक्षक पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया पर उन लोगों के खिलाफ कौन कार्रवाई करेगा जिन्होंने इन शिक्षकों को प्रमाणपत्र जारी किये हैं, या जिनकी शह पर ये लोग स्कूलों में रख लिए जाते हैं। या जो लोग इनकी योग्यता को अनदेखा करते हुए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ होते देख रहे हैं।
बात शिक्षकों की ही नहीं आज के हालात में देश के विभिन्न विभागों में अयोग्य लोग योग्य पदों पर बैठकर देश का बंटाधार करने में लगे हैं। एक ओर जहां आरक्षण देश को बर्बादी की ओर ले जा रहा है वहीं लोगों की नशों में दौड़ रहे भ्रष्टाचार से देश का विकास प्रभावित होता रहा है। इन सबके बीच प्रतिभा दम तोड़ रही है। कार्यपालिका, विधायिका की मिलीभगत से होनहारों का भविष्य चौपट करने का जो खेल में देश में चल रहा है यदि समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगा तो वह दिन दूर नहीं जब हम लोग पिछड़ी पंक्ति में खड़े दिखाई देंगे। बात शिक्षा क्षेत्र की ही नहीं है बल्कि देश को चलाने के लिए बनाए गए जिम्मेदार स्तंभ ही डगमगा गए हैं। काम कौन कर रहा है आैर श्रेय कोई ओर ले रहा है। दूसरों के हक की आवाज उठाने का दावा करने वाले मीडिया पर भी उंगली उठने लगी है। प्रकाशन का यह हाल है कि लेखों के मामले में छप किसी आैर के नाम से रहा है तो लिख कोई आैर रहा है। संसद का भी यही हाल है विचार किसी आैर के हैं आैर बोल कोई आैर रहा है। कितने संपादक हैं, जिनके नाम से हम लोग बड़े-बड़े लेख पढ़ते हैं पर पता चलता है वह लेख किसी आैर ने लिखे हैं। कितनी किताबें हैं कि लिखी किसी आैर ने आैर प्रकाशित हुई किसी आैर नाम से। कितने काम हैं कि किया किसी आैर ने आैर श्रेय कोई आैर ले गया।
देश में मुट्ठीभर लोगों ने देश की व्यवस्था ऐसे कब्जा रखी है कि ये लोग योग्य लोगों की प्रतिभा का हनन कर रहे हैं। एक से बढ़कर एक योग्य व्यक्ति इस व्यवस्था में इन लोगों को अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करते देख रहा है आैर कुछ बोल भी नहीं पा रहा है। कुछ लोग तो इस व्यवस्था में ऐसे ढल गए हैं कि कुछ पैसों के लालच में अपनी प्रतिभा ही बेच दे रहे हैं। ऐसा लगने लगा है कि जैसे हर चीज का व्यवसायीकरण हो गया हो। नैतिकता, जिम्मेदारी, जवाबदेही, देशभक्ति, स्वाभिमान, खुद्दारी को ताक पर रख लोग पैसा कमाने की होड़ में दौड़े चले जा रहे हैं। वह बात दूसरी है कि इन लोगों को इसकी कीमत, जलालत, बीमारी, विघटन, अपमान से चुकानी पड़ती हो।
इसी व्यवस्था के चलते देश का व्यवसाय चौपट होता जा रहा है। कंपनी मालिक अयोग्य अधिकारियों की हाथों में अपना व्यवसाय सौंप दे रहे हैं। ये लोग अपनी कमियां छिपाने के लिए योग्य लोगों को किसी न किसी बहाने परेशान करते रहते हैं, जिससे न केवल माहौल प्रभावित होता बल्कि उत्पादन भी प्रभावित होता है। ये लोग मालिक व श्रमिक के बीच की दूरी बढ़ाते हैं, श्रमिकों के प्रति मालिकों को भ्रमित करते हैं, मालिक को पता ही नहीं चलता कि ये लोग श्रमिकों का शोषण तो कर ही रहे हैं साथ ही कंपनी को भी डेमेज कर रहे हैं। गंदे लोगों को बढ़ावा मिलने के चलते अच्छे लोग बैंकफुट पर चले जा रहे हैं।
राजनीति के क्षेत्र में भी यही हाल है कि किसी भी तरह से पैसे कमाकर चुनाव लड़ना आैर जनप्रतिनिधि बनकर जनता के खून पसीने की कमाई पर एशोआराम की जिंदगी बिताना आज की विचारधारा रह गई है। न किसी नीति पर काम हो रहा है आैर न किसी दल के पास कोई विचार है, बस प्रभावशाली लोग पैसे के दम पर सत्ता हथिया ले रहे हैं। बड़े स्तर पर प्रॉपर्टी डीलर, गुंडे, बदमाश टाइप के लोग जब विधानसभा व संसद में जा रहे हैं तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि अच्छे पदों पर अच्छे लोग बैठेंगे। योग्य लोगों को तो किसी तरह से इज्जत बचाकर रहना पड़ रहा है। हम लोग कहते हैं कि सच्चाई परेशान हो सकती है पर हार नहीं सकती। हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होता है। पर आज के दौर में सच्चाई परेशान ही नहीं हो रही बल्कि संघर्ष-संघर्ष करते दम तोड़ दे रही है। कहा जाता है हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। पर आज अच्छाई पर बुराई हावी है। जो जितना गिरकर प्रभावशाली लोगों को सुख कर दे रहा है वह उतना ही सफल आदमी बनता जा रहा है। जो व्यक्ति जितना ईमानदार आैर खुद्दार है वह उतना ही उपेक्षित हो जाता है। यहां तक किस न्याय पालिका पर भी उंगली उठ रही है।
इस व्यवस्था को कायम
करने वाले लोगों से मेरा प्रश्न है कि कौन सा व्यवसायी है जो बेईमान लोगों
को अपने यहां नौकरी देगा। कौन सा व्यक्ति है जो अपना कारोबार किसी बईमान
व्यक्ति को सौंप देगा। यदि हमें अपने काम के लिए ईमानदार आैर खुद्दार
व्यक्ति चाहिए तो देश के लिए बेईमान लोगों को बढ़ावा क्यों ?
No comments:
Post a Comment