पुण्यतिथि पर विशेष (29 मई)
समाजवादी सत्ता की नींव में जहां डॉ. राममनोहर लोहिया का खाद-पानी स्मरणीय है वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जाति तोड़ो सिद्धांत व उनकी स्वीकार्यता भी अहम बिन्दु है। चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर समाजवाद सरोकार में उनके जैसे खांटी नेताओं की याद आना लाजमी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के विरुद्ध सशक्त समाजवादी विचारधारा की स्थापना का श्रेय जयप्रकाश नारायण आैर राममनोहर लोहिया को जाता है पर वर्तमान में प्रदेश की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के रहनुमा जिस पाठशाला में राजनीति का ककहरा सीख कर आए उसके आचार्य चरण सिंह रहे हैं। यहां तक कि बिहार के समाजवादियों को भी चरण सिंह ने राजनीतिक का पाठ पढ़ाया।
चरण सिंह की स्वीकार्यता व लोकप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यादव बहुल आजमगढ़ जिले से उनके भारतीय क्रांति दल को सन 1969 में 14 में से 14 विधानसभा सीटें प्राप्त हुई थी, जबकि उनके गृह जिले मेरठ में 14 में से एक विधायक ही विजय प्राप्त कर सका था। चौधरी चरण सिंह ने अजगर शक्ति अहीर, जाट, गुज्जर आैर राजपूत का शंखनाद किया तथा कहा कि अजगर समूह किसान तबका है। उन्होंने अजगर जातियों से रोटी-बेटी का रिश्ता जोड़ने का भी आह्वान किया तथा अपनी एक बेटी को छोड़ सारी बेटियों की शादी अंतरजातीय की। चरण सिंह की स्वीकार्यता का आलम यह था कि उन्हें तब के पूरब के कद्दावर नेता रामसेवक यादव बनारस, गाजीपुर आैर आजमगढ़ आदि में चौधरी चरण सिंह यादव कहकर नारे लगाते थे। सन 1969 में विधानसभा चुनाव में पश्चिम से चरण सिंह की बीकेडी से 11 विधायक गुर्जर बिरादरी से बने। वर्तमान की राज्य की सपा सरकार चरण सिंह की नीतियों पर चलने का दंभ भर रही है तो उनके पुत्र आैर रालोद प्रमुख अजीत सिंह उनके नाम पर राजनीति कर रहे हैं।
चौधरी चरण सिंह राजनीति में पूंजीवाद आैर परिवारवाद के घोर विरोधी थे तथा गांव गरीब तथा किसान उनकी नीति में सर्वोपरि थे। हालांकि तब के कम्युनिस्ट नेता चौ. चरण सिंह को कुलक नेता जमीदार कहते थे जबकि सच्चाई यह भी है चौ. चरण सिंह के भदौरा (गाजियाबाद) गांव में मात्र 27 बीघा जमीन थी जो जरूरत पडने पर उन्होंने बेच दी थी। जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके नाम कोई जमीन आैर मकान नहीं था। चरण सिंह ने अपने करियर की शुरुआत मेरठ से वकालत के रूप में की। उनके जमाने के मेरठ में वकालत करने वाले प्रतिष्ठित आैर वरिष्ठ अधिवक्ता तपसीराम भाटी का कहना है कि चरण सिंह का व्यक्तित्व आैर कृतित्व विलक्षण था तथा गांव तथा किसान के मुद्दे पर बहुत संवेदनशील हो जाते थे। आर्य समाज के कट्टर अनुयायी रहे चरण सिंह पर महर्षि दयानंद का अमिट प्रभाव था। चरण सिंह पाखंड, आडम्बर में कतई विश्वास नहीं करते थे । यहां तक कि उन्होंने जीवन में न किसी मजार पर जाकर चादर चढ़ाई आैर न ही मूर्ति पूजा की। उनके अति घनिष्ठ रहे खादी ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व अध्यक्ष यशवीर सिंह का कहना है चौधरी चरण सिंह की नस नस में सादगी आैर सरलता थी तथा वह किसानों की पीड़ा से द्रवित हो उठते थे। प्रदेश के पंचायत राज्य मंत्री बलराम यादव बडे़ फख्र के साथ चौ. चरण सिंह के साथ बिताए लम्हो को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त करने का जो संकल्प लिया, उसे पूरा भी किया तथा शून्य से शिखर पर पहुंचकर भी उन्होंने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
समाजवादी सत्ता की नींव में जहां डॉ. राममनोहर लोहिया का खाद-पानी स्मरणीय है वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जाति तोड़ो सिद्धांत व उनकी स्वीकार्यता भी अहम बिन्दु है। चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर समाजवाद सरोकार में उनके जैसे खांटी नेताओं की याद आना लाजमी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के विरुद्ध सशक्त समाजवादी विचारधारा की स्थापना का श्रेय जयप्रकाश नारायण आैर राममनोहर लोहिया को जाता है पर वर्तमान में प्रदेश की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के रहनुमा जिस पाठशाला में राजनीति का ककहरा सीख कर आए उसके आचार्य चरण सिंह रहे हैं। यहां तक कि बिहार के समाजवादियों को भी चरण सिंह ने राजनीतिक का पाठ पढ़ाया।
चरण सिंह की स्वीकार्यता व लोकप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यादव बहुल आजमगढ़ जिले से उनके भारतीय क्रांति दल को सन 1969 में 14 में से 14 विधानसभा सीटें प्राप्त हुई थी, जबकि उनके गृह जिले मेरठ में 14 में से एक विधायक ही विजय प्राप्त कर सका था। चौधरी चरण सिंह ने अजगर शक्ति अहीर, जाट, गुज्जर आैर राजपूत का शंखनाद किया तथा कहा कि अजगर समूह किसान तबका है। उन्होंने अजगर जातियों से रोटी-बेटी का रिश्ता जोड़ने का भी आह्वान किया तथा अपनी एक बेटी को छोड़ सारी बेटियों की शादी अंतरजातीय की। चरण सिंह की स्वीकार्यता का आलम यह था कि उन्हें तब के पूरब के कद्दावर नेता रामसेवक यादव बनारस, गाजीपुर आैर आजमगढ़ आदि में चौधरी चरण सिंह यादव कहकर नारे लगाते थे। सन 1969 में विधानसभा चुनाव में पश्चिम से चरण सिंह की बीकेडी से 11 विधायक गुर्जर बिरादरी से बने। वर्तमान की राज्य की सपा सरकार चरण सिंह की नीतियों पर चलने का दंभ भर रही है तो उनके पुत्र आैर रालोद प्रमुख अजीत सिंह उनके नाम पर राजनीति कर रहे हैं।
चौधरी चरण सिंह राजनीति में पूंजीवाद आैर परिवारवाद के घोर विरोधी थे तथा गांव गरीब तथा किसान उनकी नीति में सर्वोपरि थे। हालांकि तब के कम्युनिस्ट नेता चौ. चरण सिंह को कुलक नेता जमीदार कहते थे जबकि सच्चाई यह भी है चौ. चरण सिंह के भदौरा (गाजियाबाद) गांव में मात्र 27 बीघा जमीन थी जो जरूरत पडने पर उन्होंने बेच दी थी। जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके नाम कोई जमीन आैर मकान नहीं था। चरण सिंह ने अपने करियर की शुरुआत मेरठ से वकालत के रूप में की। उनके जमाने के मेरठ में वकालत करने वाले प्रतिष्ठित आैर वरिष्ठ अधिवक्ता तपसीराम भाटी का कहना है कि चरण सिंह का व्यक्तित्व आैर कृतित्व विलक्षण था तथा गांव तथा किसान के मुद्दे पर बहुत संवेदनशील हो जाते थे। आर्य समाज के कट्टर अनुयायी रहे चरण सिंह पर महर्षि दयानंद का अमिट प्रभाव था। चरण सिंह पाखंड, आडम्बर में कतई विश्वास नहीं करते थे । यहां तक कि उन्होंने जीवन में न किसी मजार पर जाकर चादर चढ़ाई आैर न ही मूर्ति पूजा की। उनके अति घनिष्ठ रहे खादी ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व अध्यक्ष यशवीर सिंह का कहना है चौधरी चरण सिंह की नस नस में सादगी आैर सरलता थी तथा वह किसानों की पीड़ा से द्रवित हो उठते थे। प्रदेश के पंचायत राज्य मंत्री बलराम यादव बडे़ फख्र के साथ चौ. चरण सिंह के साथ बिताए लम्हो को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त करने का जो संकल्प लिया, उसे पूरा भी किया तथा शून्य से शिखर पर पहुंचकर भी उन्होंने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।