आम चुनाव
में उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें जीतने वाली भाजपा ने यह सोचा भी
नहीं होगा कि उप चुनाव में सपा उसे इस तरह से पटखनी देगी। एक लोकसभा और
11 विधान सभा सीटों में से सपा ने अपनी लोकसभा सीट के साथ ही आठ विधानसभा
सीट जीतकर साबित कर दिया कि आज भी समाजवादी विचारधारा साम्प्रदायिक सोच पर
भारी है।
आम चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगो के बाद प्रदेश में
हिन्दुत्व को भुनाते हुए भाजपा ने प्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम चुनाव बना
दिया था। यह भाजपा की उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित जीत ही थी कि तत्कालीन
प्रभारी अमित शाह को भाजपा ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। उत्तर
प्रदेश में भाजपा इतनी उत्शाहित थी कि वह 2017 में सरकार बनाने की कवायद
में जुट गई थी। भाजपा के दिग्गज अपने को मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल करने
लगे थे। पहले मेनका गांधी ने अपने पुत्र वरुण गांधी को प्रस्तुत करना चाह
पर उन्हें पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारणी में ही नहीं लिया। उसके बाद
योगी आदित्य नाथ ने सांप्रदायिक बयान जारी कर हिन्दुत्व वोटबैंक को
ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया। भाजपाई अब आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप
में देखने लगे थे।
भाजपा यह भूल गई थी कि जनता ने उसे विकास के मुद्दे पर
वोट दिया था। महंगाई के मुद्दे पर वोट दिया था। लोग महंगाई से जूझते रहे,
गन्ना किसान बकाया भुगतान के लिए आंदोलन करते रहे। आर्थिक तंगी के चलते
परेशानी से लड़ते रहे पर भाजपाई धार्मिक भावनाओं पर भाषणबाजी करते रहे।
उधर
मुखयमंत्री अखिलेश यादव के किसी भी तरह माहौल न बिगड़ने देने के बयान ने
सकारात्मक काम किया। भाजपाई बयानबाजी करते रहे और अखिलेश यादव काम के
बलबूते लगातार जनता का विस्वास जीतने का प्रयास करते रहे, जिसका परिणाम यह
हुआ कि फिर से जनता ने समाजवादी विचारधारा पर विस्वास किया। इस परिणाम से
यह होगा कि जहां सपा कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार होगा वहीं भाजपा
हवा में उड़ने के बजाय जमीन पर आकर जनता का विस्वास जितने का प्रयास करेगी।
No comments:
Post a Comment