Thursday 11 September 2014

देशभक्ति पैदा करने और जमीर जगाने की जरूरत

     किसी भी देश का भविष्य उसके युवाओं पर टिका होता है। इसमें दो राय नहीं कि सरकारी स्तर से युवाओं को आगे बढ़ाने के प्रयास बड़े स्तर से हो रहे हैं पर भ्रष्ट हो चुकी देश की व्यवस्था के चलते इसका फायदा युवाओं को नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि जहां युवाओं का सरकारों से विस्वास खत्म होता जा रहा है वहीं वे अपने पथ से भटक रहे हैं। देशभक्ति, संस्कारों, नैतिक शिक्षा के अभाव में बड़े स्तर पर युवाओं का नैतिक पतन हो रहा रहा है। इन सबके चलते बड़ी ताताद में युवा अपराध की कदम बड़ा रहे हैं। अब तक तो छेड़छाड़, रेप, लूटपाट, ठगी, धोखाधड़ी के मामले ही सुनने को मिल रहे थे। हैदराबाद के 15  युवाओं के ईराक में जाकर आईएस  में शामिल होने के लिए  घर से भागने की घटना ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। हालांकि ये लोग पश्चमी बंगाल से पकड़ लिए गए हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि देश के होनहार युवा इतने घातक कदम क्यों उठा रहे हैं।
     इसमें दो राय नहीं कि देश सत्ता बदल चुकी है पर व्यवस्था नहीं बदली है। आज भी मुट्ठी भर लोगों ने देश की व्यवस्था ऐसे कब्ज़ा रखी है कि आम आदमी सिर पटक-पटक कर रह जाता है पर उसकी कहीं सुनवाई नहीं होती है। इसी व्यवस्था के चलते बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई चरम पर है। चारों ओर अपराधियों का राज है। जनता बेहाल है और देश को चलाने का ठेका लिए बैठे राजनेता वोटबैंक की राजनीति करने में व्यस्त हैं। अवसरवाद की राजनीति करने में व्यस्त हैं। परिवारवाद की राजनीति करने में व्यस्त हैं। लूटपाट की राजनीति करने में व्यस्त हैं।
     कभी समाजसेवा के रूप में जाने जाने वाली राजनीति अब व्यापार बनकर रह गई है।  किसी भी तरह से पैसा कमाकर जनप्रतिनिधि बनना और जनता के पैसे पर ऐशोआराम की जिंदगी बिताना आज की राजनीति का मकसद रह गया है। पूंजीपतियों के पैसों से चुनाव लड़ना और उनके लिए ही काम करना राजनीतिक दलों की विचारधारा बनी हुई है। भले ही राजनेता चुनाव के समय किसान-मजदूर और आम आदमी के बात करते हों पर वह काम आम के लिए कम और विशेष के लिए ज्यादा करते हैं। किसी देश इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता है की कृषि प्रधान देश का किसान खेती से मुंह मोड़ने लगा है। देश के युवा का सेना से मोहभंग होता जा रहा है। देश में ऐसी व्यवस्था पैदा कर दी गई कि देश को बनाने के लिए बनाए गए स्तंभ ही भ्रष्ट होते जा रहे हैं। मेरा मानना है कि देश में कितनी सरकारें बदल जाएं पर जब तक देश की भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था नहीं बदलगी तब तक देश का भला नहीं हो सकता है। यह व्यवस्था युवाओं में देशभक्ति पैदा कर और मर चुके लोगों के जमीर को जगाकर ही बदल सकती है। देश के नवनिर्माण के लिए युवाओं को मोह-माया छोड़कर सड़कों पर उतरना ही होगा।
     भले ही हम लोग भ्रष्ट व्यवस्था के लिए सरकारों को दोषी ठहरा देते हों पर इसके लिए कहीं कहीं दोषी समाज भी है। आदमी सामूहिक न सोचकर व्यक्तिगत सोचने लगा है। पैसा आदमी की जिंदगी पर इतना हावी हो गया है कि जैसे कि उसकी जिंदगी में रिश्ते-नाते, देश समाज की कोई अहमियत ही न रह गई हो। हकीकत तो यह है कि देश को फिर से एक और आजादी की लड़ाई की जरूरत है। पहले हमने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी अब हमें भ्रष्ट व्यवस्था के लड़ाई लड़ने की जरूरत है।

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