कानपुर में एक युवक के अपनी प्रेमिका के चक्कर में पड़कर अपनी पत्नी की हत्या करने के मामले ने लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। समाचार पत्रों और चैनलों पर दिखाए जा रहे मृतका के फोटो को देखकर ही लग रहा है कि वह लड़की कितनी सुशील और सुन्दर थी। युवक की ये बुरी आदतें ही थी कि आज उसे ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि जहां उसका जीवन तो बर्बाद हो ही गया है। साथ ही उसके परिजन भी उसके कुकर्मों को जिंदगी भर झेलेंगे।
इस तरह की घटनाओं को लेकर भले ही हम कानून व्यवस्था रहन-सहन, खुलापन सोशल साईट जैसे माध्यमों को जिम्मेदार
ठहरा देते हों पर इस तरह के अपराधों के लिए परिजन भी कम जिम्मेदार नहीं
हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि बच्चों के कदम गलत रास्ते पर चल पड़े हों और
परिजनों को किसी तरह की भनक न लगे।
दरअसल आज की तारीख में परिजन
बड़े स्तर पर बच्चों की हरकतों को या तो नजरंदाज कर देते हैं या फिर उन पर
पर्दा डाल देते हैं। कितने परिजन तो बच्चों की बुरी आदतों को आधुनिकता से
जोड़कर देखने लगते हैं और काफी बच्चे बड़े होते-होते इतने शातिर हो जाते हैं
कि वे बड़े से बड़ा अपराध करने से नहीं चूकते।
बात कानपुर मामले की ही नहीं है, बड़े स्तर पर युवा अपराध की ऐसी दलदल में धंसते जा रहे हैं कि
यदि समय रहते इन्हें नहीं संभाला गया तो कहीं नई पीढ़ी देश
के विकास में योगदान देने के बजाय देश को तबाह करने में लग जाए। वैसे भी
युवाओं की गलत आदतों का फायदा उठाते हुए असामाजिक तत्व उन्हें आतंकवाद की
ओर धकेल रहे हैं।
काफी समय से समाज में ऐसा परिवर्तन आया है कि
निजी स्वार्थों के चलते आदमी की जिंदगी में रिश्तों की अहमियत कम होती जा
रही है। कहीं पर संपत्ति को लेकर तो कहीं पर अवैध संबंधों को लेकर और कहीं
पर झूठी शान के चलते रिश्तों का खून किया जा रहा है। आज की तारीख में इस
तरह से अपराध, कारणों और समाधान पर मंथन की जरूरत है। मेरा मानना है कि
नैतिक शिक्षा, अच्छे संस्कार, अच्छी परवरिश, संयुक्त परिवार, परिजनों व बच्चों के बीच संवाद के अभाव में नई पीढ़ी अपने रास्ते से भटक रही है।