26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। दिल्ली में हम अपनी ताकत का
प्रदर्शन करेंगे। विभिन्न प्रदेशों की झलकियां निकाली जाएंगी। हमारे जवान
तरह-तरह के करतब दिखाएंगे। राजपथ पर परेड भी निकाली जाएगी। पूरा राजपथ
वीआईपी लोगों से भरा होगा। औपचारिकता के लिए बहादुर बच्चों को भी पुरस्कृत किया जाएगा, पर क्या देश के हालात ऐसे हैं कि हम राष्ट्रीय पर्व गर्व के
साथ मना सकें ? क्या देश के किसान-मजदूर, आम आदमी की स्थिति ऐसी है कि
राष्ट्रीय पर्व पर हम खुश हो सकें ? जिन उद्देश्यों को लेकर क्रांतिकारियों
ने देश को आजाद कराया था क्या वे उद्देश्य हमने पूरे कर लिए हैं ? या
फिर हम उन उद्देश्यों के प्रति वास्तव में ही गम्भीर हैं ?
क्या हमें इस
बात का एहसास है कि जिन लोगों कि वजह से हम यह गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, उन
लोगों को देश को आजाद कराने के लिए कितना बलिदान देना पड़ा, उनके परिवार ने
देश के लिए कितना त्याग किया ? देश की आजादी में कितने लोगों को कुर्बानी
देनी पड़ी, कितनी मांओं की कोख सुनी हो गई। कितने युवा फांसी के फंदे से
लटका दिए गए। कितनी बहने विधवा हो गईं। क्या देश को चलाने का जिम्मा लिए
बैठे राजनेताओं को तनिक भी देश की आजादी की कीमत का एहसास है ? क्या जिन
उद्देश्यों के लिए देश का संविधान लिखा गया था, हम उन उद्देश्यों की ओर बढ़
रहे हैं ? क्या हम संविधान पर खरा उतर रहे हैं ? क्या वोटबैंक की राजनीति
ने देश का बंटाधार नहीं कर दिया है ? क्या देश के नेताओं ने लोकतंत्र को
राजतंत्र बनाकर नहीं रख दिया है ? क्या देश के नौनिहालों को हम गणतंत्र की
परिभाषा समझने में सफल हो पाए हैं ? यदि नहीं तो काहें का गणतंत्र दिवस,
काहें का स्वतंत्रता दिवस।
सच्चाई तो यह है कि देश की भ्रष्ट हो चुकी
व्यवस्था को बदलने के लिए आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की जरूरत है। देश फिर
से बलिदान, त्याग, समर्पण और कुर्बानी मांग रहा है। आज फिर देश को सरदार
भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, खुदीराम बोस, राम
मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, लोक नायक जयप्रकाश की जरूरत है।
अब इस सोच से काम नहीं चलेगा कि भगत सिंह पैदा तो हो पर पड़ोसी के घर में,
अब अपने घर में ही एक भगत सिंह तैयार करना होगा। बंदूक वाला भगत सिंह नहीं
बल्कि कलम वाला भगत सिंह, विचारों वाला भगत सिंह, वैचारिक क्रांति लाने
वाला भगत सिंह।
बहुत कम लोगों को पता है कि भगत सिंह एक पत्रकार भी थे।
प्रताप अखबार में उन्होंने काफी दिनों तक ख़बरों का संपादन किया था। वे
समय-समय पर सामाजिक हालात पर लेख भी लिखते रहते थे। उन्होंने कार्ल मार्क्स
और लेनिन पर बहुत अध्धयन किया था। इन जैसे क्रांतिकारी देश के युवाओं में
ही हैं। बस उनके अंदर देशभक्ति पैदा करने की जरूरत है। जुनून पैदा करने की
जरूरत है। आत्मविस्वास जगाने की जरूरत है। तब हमने अंग्रेजों को देश से
भगाया था, अब देश के गद्दारों का भगाना है। भ्रर्ष्टाचारियों को भगाना है।
देश को लूट रहे लोगों को भगाना है। देश को बांटकर राजनीति करने वाले
नेताओं को भगाना है। धर्म-जात-पात और परिवारवाद-वंशवाद के नाम पर हो रही
राजनीति को खत्म करना है। आम आदमी की व्यवस्था लागू करनी है।