एक समय
प्रख्यात समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया ने 'कांग्रेस मुक्त भारत" का नारा
दिया था तो आज की राजनीति में देश को विकल्प देने निकले उनके अनुयाई नीतीश
कुमार ने 'संघ मुक्त भारत" का नारा दिया है। नीतीश कुमार का नारा कब पूरा
होगा यह तो समय बताएगा पर लोहिया का नारा पूरा होते दिखाई देने लगा है।
दिलचस्प बात यह है कि इस नारे को उनके अनुयाई पूरा नहीं कर रहे हैं बल्कि
वे संघी कर रहे हैं जिनसे उनके अनुयाई देश को मुक्त कराना चाहते हैं। खुद
नीतीश कुमार कांग्रेस की मदद से बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं। जेपी आंदोलन
को छोड़ दें तो अधिकतर समाजवादी किसी न किसी रूप में कांग्रेस से उपकृत
होकर उसे मजबूत करते रहे हैं। हां संघियों ने जहां कांग्रेस के खिलाफ लड़ी
जाने वाली हर लड़ाई में समाजवादियों का साथ दिया वहीं न कभी कांग्रेस की
मजबूती में सहयोग दिया आैर न ही कांग्रेस की मदद ली। चाहे देश को विकल्प
देने का दावा कर रहे नीतीश कुमार हों, प्रधानमंत्री पद का सपना संजोए
नेताजी हों या फिर नेताजी के प्रधानमंत्री बनने में रोड़ा अटकाने वाले राजद
प्रमुख लालू प्रसाद या फिर समय-समय पर कांग्रेस को कोसने वाले वामपंथी, ये
सब कभी न कभी कांग्रेस से सटे हैं। वामपंथियों ने तो पश्चिमी बंगाल में
इसका खामियाजा भी भुगत लिया। कांग्रेस से गठबंधन क्या किया कि कांग्रेस से
ही पिछड़ गए, जिस तरह से कांग्रेस ने पहले दिल्ली खोई आैर अब पूर्वोत्तर में
असम व केरल भी उसके हाथ से निकल गए। कांग्रेस की दुर्दशा से तो ऐसा ही लग
रहा है कि आने वाले समय में कहीं उत्तरांचल व कर्नाटक भी कांग्रेस के हाथ
से न निकल जाए।
कांग्रेस के विरोध की बात करें तो आजादी की लड़ाई में भी कांग्रेसियों की सत्ता ललक से नाराज डॉ. राम मनोहर लोहिया ने समाजवादियों का एकजुट करना शुरू कर दिया था। यही वजह रही कि उन्होंने आजाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियों का जमकर विरोध किया तथा 'कांग्रेस मुक्त भारत" का नारा दिया। यह लोहिया की समाजवादी विचारधारा ही थी कि वह अंतिम समय तक कांग्रेस की नीतियों से टकराते रहे। 70 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अराजकता के खिलाफ डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथी रहे लोक नायक जयप्रकाश के नेतृत्व में समाजवादी एकजुट हुए आैर देश में बड़ा आंदोलन हुआ। इस आंदोलन में संघियों ने आगे बढ़कर समाजवादियों का साथ किया। हां इमरजेंसी में कुछ संघियों पर इंदिरा गांधी से माफी मांगकर जेल से बाहर आने के आरोप भी लगे थे। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो संघी भी सरकार में शामिल हुए। दरअसल जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। जनता पार्टी व संघ की दोहरी सदस्यता पर विवाद होने पर 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। यह संघियों का कांग्रेस से खिलाफत ही थी कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स का मुद्दा उठा तो संघियों ने फिर से समाजवादियों के साथ दिया। 1989 में जब जनता दल की सरकार की सरकार बनी तो संघियों ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने पर आरक्षण के खिलाफ भड़के आंदोलन को भारतीय जनता पार्टी ने कैश कराया तथा मौके की नजाकत को भांपते हुए तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सुलगा दिया तथा मंदिर निर्माण के लिए देश में रथयात्रा निकालने चल पड़े। यात्रा के बिहार में प्रवेश करने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के रथयात्रा रोक देने पर भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस की मदद से चंद्रशेखर सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। 1996 में समाजवादियों ने कांग्रेस की मदद से फिर सरकार बनाई मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।
दरअसल कामरेड सुरजीत सिंह ने मुलायम सिंह का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए रखा तो लालू प्रसाद ने इसका विरोध कर दिया। बाद में एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया। मुलायम सिंह को रक्षामंत्री पद पर संतोष करना पड़ा। जहां तक कांग्रेस की मदद की बात है तो लालू प्रसाद भी कांग्रेस की मदद से रेलमंत्री रहे हैं। नीतीश कुमार भारत को संघमुक्त करने के लिए कांग्रेस से भी मदद मांग रहे हैं। कुल मिलाकर समाजवादी भले ही अपने को लोहिया का अनुयाई बताते घूम रहे हों पर ये लोग लोहिया के नारे को भूल गए हैं। जिन पंडित जवाहर लाल नेहरू को लोहिया पानी पी-पीकर गाली देते थे, उन नेहरू की तारीफ में अपने लोहिया का असली अनुयाई कहने वाले मुलायम सिंह यादव कसीदे पढ़ चुके हैं।
लोहिया वंशवाद, जातिवाद व पूंजीवाद के खिलाफ थे पर आज के तथाकथित समाजवादियों में ये खूबियां बखूबी देखी जा रही हैं। यही वजह रही कि 2014 का आम चुनाव को जीतने के लिए नरेंद्र मोदी ने लोहिया व जेपी की नीतियों का हवाले देते हुए समाजवादियों पर जमकर निशाना साधा था। उसका उन्हें फायदा भी हुआ। माहौल को भांपकर कर ही उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। नीतीश कुमार को समझना होगा कि भले ही उन्होंने संघमुक्त भारत का नारा दे दिया हो पर नरेंद्र मोदी लोहिया के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे का हवाला देते हुए समाजवादियों फिर से कटघरे में खड़ा करेंगे। जिस तरह से मोदी गांधी परिवार को दरकिनार कर देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों को सम्मान दिलवा रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि नरेंद्र मोदी ने भाजपा में भी एक नया समाजवाद पैदा किया है। जहां वह आजादी की लड़ाई में गरम दल के नेताओं को तवज्जो दे रहे हैं वहीं प्रख्यात समाजवादियों का भी जमकर गुणगान करते देखे जा रहे हैं। भले ही दिखावा हो रहा हो पर राष्ट्रवाद के नाम पर देश में देश पर मर-मिटने वालों के नामों पर भी चर्चा होने लगी है।
कांग्रेस के विरोध की बात करें तो आजादी की लड़ाई में भी कांग्रेसियों की सत्ता ललक से नाराज डॉ. राम मनोहर लोहिया ने समाजवादियों का एकजुट करना शुरू कर दिया था। यही वजह रही कि उन्होंने आजाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियों का जमकर विरोध किया तथा 'कांग्रेस मुक्त भारत" का नारा दिया। यह लोहिया की समाजवादी विचारधारा ही थी कि वह अंतिम समय तक कांग्रेस की नीतियों से टकराते रहे। 70 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अराजकता के खिलाफ डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथी रहे लोक नायक जयप्रकाश के नेतृत्व में समाजवादी एकजुट हुए आैर देश में बड़ा आंदोलन हुआ। इस आंदोलन में संघियों ने आगे बढ़कर समाजवादियों का साथ किया। हां इमरजेंसी में कुछ संघियों पर इंदिरा गांधी से माफी मांगकर जेल से बाहर आने के आरोप भी लगे थे। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो संघी भी सरकार में शामिल हुए। दरअसल जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। जनता पार्टी व संघ की दोहरी सदस्यता पर विवाद होने पर 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। यह संघियों का कांग्रेस से खिलाफत ही थी कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स का मुद्दा उठा तो संघियों ने फिर से समाजवादियों के साथ दिया। 1989 में जब जनता दल की सरकार की सरकार बनी तो संघियों ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने पर आरक्षण के खिलाफ भड़के आंदोलन को भारतीय जनता पार्टी ने कैश कराया तथा मौके की नजाकत को भांपते हुए तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सुलगा दिया तथा मंदिर निर्माण के लिए देश में रथयात्रा निकालने चल पड़े। यात्रा के बिहार में प्रवेश करने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के रथयात्रा रोक देने पर भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस की मदद से चंद्रशेखर सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। 1996 में समाजवादियों ने कांग्रेस की मदद से फिर सरकार बनाई मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।
दरअसल कामरेड सुरजीत सिंह ने मुलायम सिंह का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए रखा तो लालू प्रसाद ने इसका विरोध कर दिया। बाद में एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया। मुलायम सिंह को रक्षामंत्री पद पर संतोष करना पड़ा। जहां तक कांग्रेस की मदद की बात है तो लालू प्रसाद भी कांग्रेस की मदद से रेलमंत्री रहे हैं। नीतीश कुमार भारत को संघमुक्त करने के लिए कांग्रेस से भी मदद मांग रहे हैं। कुल मिलाकर समाजवादी भले ही अपने को लोहिया का अनुयाई बताते घूम रहे हों पर ये लोग लोहिया के नारे को भूल गए हैं। जिन पंडित जवाहर लाल नेहरू को लोहिया पानी पी-पीकर गाली देते थे, उन नेहरू की तारीफ में अपने लोहिया का असली अनुयाई कहने वाले मुलायम सिंह यादव कसीदे पढ़ चुके हैं।
लोहिया वंशवाद, जातिवाद व पूंजीवाद के खिलाफ थे पर आज के तथाकथित समाजवादियों में ये खूबियां बखूबी देखी जा रही हैं। यही वजह रही कि 2014 का आम चुनाव को जीतने के लिए नरेंद्र मोदी ने लोहिया व जेपी की नीतियों का हवाले देते हुए समाजवादियों पर जमकर निशाना साधा था। उसका उन्हें फायदा भी हुआ। माहौल को भांपकर कर ही उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। नीतीश कुमार को समझना होगा कि भले ही उन्होंने संघमुक्त भारत का नारा दे दिया हो पर नरेंद्र मोदी लोहिया के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे का हवाला देते हुए समाजवादियों फिर से कटघरे में खड़ा करेंगे। जिस तरह से मोदी गांधी परिवार को दरकिनार कर देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों को सम्मान दिलवा रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि नरेंद्र मोदी ने भाजपा में भी एक नया समाजवाद पैदा किया है। जहां वह आजादी की लड़ाई में गरम दल के नेताओं को तवज्जो दे रहे हैं वहीं प्रख्यात समाजवादियों का भी जमकर गुणगान करते देखे जा रहे हैं। भले ही दिखावा हो रहा हो पर राष्ट्रवाद के नाम पर देश में देश पर मर-मिटने वालों के नामों पर भी चर्चा होने लगी है।