Thursday 13 August 2015

नेताजी की रणनीति है या हताशा मुख्यमंत्री को डांटना ?

    यह सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की रणनीति है या फिर हताशा जो बीच-बीच में वह अखिलेश सरकार की खिंचाई करते रहते हैं। मंत्रियों, विधायकों व कार्यकर्ताओं के काम-काज के तरीकों पर उंगली उठाते रहते हैं। विधानसभा चुनाव के परिणाम कमजोर आने की आशंका जताते रहते हैं। वजह कुछ भी हो पर यह बात नेताजी की समझ में आ चुकी है कि प्रदेश में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। भले ही आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर रही हो पर नेताजी को विश्वास था कि उत्तर प्रदेश में वह इतने कमजोर नहीं कि उनकी पार्टी पांच सीटों तक ही सिमट कर रह जाएगी। नेताजी की परेशानी का कारण यह भी था कि उड़ीसा, तमिलनाडु व पश्चिमी बंगाल में मोदी लहर कुछ खास करामात नहीं दिखा सकी तो उत्तर प्रदेश कैसे प्रभावित हो गया। इसका मतलब यह है कि कहीं न कहीं सरकार की खामियों का फायदा नरेंद्र मोदी ने उठाया। यही वजह है कि नेताजी आम चुनाव को याद कराते हुए कार्यकर्ताओं को विस चुनाव परिणाम के प्रति सचेत करते रहते हैं। सपा यही पार्टी है, जिसके सत्तारूढ़ के चलते 2005 के आम चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीती थी।
   नेताजी की चिंता वेवजह नहीं है। एक ओर ढीला पड़ता संगठन, बिगड़ती कानून व्यवस्था का आरोप। यादव सिंह प्रकरण पर सीबीआई जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद राहत न मिलने से हुई फजीहत। पार्टी में नेताजी के समय के नेताओं के साथ उपेक्षित व्यवहार, ये सब उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभावित होने के लिए पर्याप्त है। संगठन मामले में कार्यकर्ताओं पर पकड़ रखने वाले नेताजी नए समाजवादियों  की फौज में वह जान नहीं देख रहे हैं जिसके बल पर उन्होंने राजनीतिक कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
    बात 2017 के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में चल रही है तो हमें 2012 के चुनाव पर भी निगाह डालनी होगी। जब नेताजी के सुपुत्र अखिलेश यादव ने साइकिल यात्रा के माध्यम से प्रदेश में माहौल बनाया तब प्रदेश की जनता ने सोचा था कि एक पढ़ा-लिखा युवा सरकार बनाएगा तो प्रदेश के लिए कुछ नया होगा। पर सरकार बनने के बाद मुजफ्फरनगर दंगा, कुंडा में पुलिस अधिकारी की हत्या, कई गैंगरेप के मामले। रोज-रोज मीडिया में कानून व्यवस्था की उड़ती धज्जियां पर आधारित खबरें। ये सब नेताजी की चिंता का कारण है। इसमें दो राय नहीं कि अखिलेश यादव ने अपने स्तर से उत्तर प्रदेश में बड़े स्तर पर विकास कार्य कराए हैं पर पार्टी में खत्म होती जा रही विचारधारा व नीतियों से भटकते कार्यकर्ताओं के व्यवहार के चलते वे उपलब्धियां जनता तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
    भले ही अब प्रदेश में सरकार की उपलब्धियों के बखान के लिए साइकिल यात्रा निकाली जा रही हो पर पिछले रिकार्ड पर नजरें डाली जाए तो सपा की साइकिल रैली में विचारधारा-नीतियां व सरकार की उपलब्धियां कम शोर-शराबा ज्यादा होता रहा है। साइकिल रैली के माध्यम से नेता शक्ति प्रदर्शन भर करते हैं। सरकार पर एक विशेष जाति के पदाधिकारियों व अधिकारियों का कब्जा भी सरकार की कमजोरी को दर्शाता रहा है।
   बात आज की समाजवादियों की जाए तो कुछ समय से नेताजी की अगुआई में जनता परिवार के एकजुट होने की बात चली थी। कहा तो यह भी जा रहा था कि बिहार चुनाव से पहले राजद, जदयू, जद (एस), इनेलो समेत कई संगठन मिलकर एक पार्टी बना लेंगे। इसकी जिम्मेदारी भी नेताजी को सौंपी गई थी। जदयू व राजद ने एकजुट होने की घोषणा भी कर दी थी। अन्य दलों ने सपा की मजबूती को देखते हुए पार्टी का चुनाव चिह्न भी साइकिल रखने का निर्णय ले लिया था। सपा के भी विलय की बात की जा रही थी पर अचानक सपा महासचिव रामगोपाल यादव का बयान आया कि जनता परिवार में सपा का विलय मतलब सपा का आत्मघाती निर्णय। उन्होंने बात को संभालते हुए बिहार चुनाव के बाद विलय की बात कही। मतलब साफ है कि यदि राजद व जदयू गठबंधन बिहार में सफल होता है तो सपा जनता परिवार में शामिल होगी वर्ना ऐसे ही चलता रहेगा। यह सब जनता देख रही है। यह भी नेताजी की चिंता का कारण है।
   नेताजी बार-बार अखिलेश यादव पर इसलिए भी नाराजगी व्यक्त कर देते हैं क्योंकि तमाम प्रयास के बावजूद वह प्रतीक यादव को राजनीति में नहीं ला पाए। साथ ही उनके चाहने के बावजूद वह अमर सिंह की सपा में वापसी नहीं करा पाए। इन सबके बीच नेताजी के अनुज शिवपाल सिंह यादव की नाराजगी भी नेताजी की परेशानी बढ़ाती रहती है।
  बात सपा में मुस्लिम वोटबैंक की जाए तो समय-समय पर मो. आजम खां नेताजी को अपनी ताकत का एहसास कराते रहते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि आजम खां ही हैं जिन्होंने अमर सिंह का पत्ता साफ कर अपनी पत्नी को राज्यसभा में भिजवा दिया। ऐसा भी नहीं कि उन्होंने इस एहसान को न चुकाया हो। नेताजी के जन्म दिन पर आजम खां ने रामपुर में लंदन से बग्घी मंगाकर नेताजी को कालीन बिछाकर पूरे रामपुर की शहर कराई। वह बात दूसरी है कि नेताजी के समाजवाद पर जमकर उंगली उठाई गई। आजम खां नेताजी को कितना भी खुश करने का प्रयास करते हों पर समय-समय पर उनकी तुनकमिजाजी से मुख्यमंत्री का परेशान होना भी नेताजी की परेशानी का कारण रहा है।
   इसमें दो राय नहीं कि विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में असली टक्टर बसपा व सपा की मानी जाती रहती है पर आम चुनाव में भाजपा की एकतरफा जीत से नेताजी को भाजपा का भी डर सताने लगा है। ऊपर से उत्तर प्रदेश में ऑल इंडिया मजलिस-ए-एत्तेहाद उल मुस्लिमीन पाटी के मुस्लिमों के कट्टर नेता के रूप में जाने जाने वाले असदुद्दीन ओवेसी की एंट्री। कहा जा रहा है कि ओवेसी का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश में भाजपा कर रही है। यह भी नेताजी की परेशानी बढ़ाने वाली है। भड़काऊ भाषण देने के रूप में जाने जाने वाले ओवेसी से मुस्लिम काफी प्रभावित हो रहे हैं।
   उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों में मुलायम सिंह की बड़ी पकड़ मानी जाती है तो स्वभाविक है कि ओवेसी की एंट्री से नेताजी को चिंता होगी ही। भले ही छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र की जयंती पर नेताजी ने पुराने समाजवादियों को सम्मानित किया हो पर पर नेताजी पर लगातार परिवारवाद, जातिवाद का आरोप लग रहा है। लंबे समय समय राजनीति के खिलाड़ी माने जाने वाले नेताजी के क्रियाकलाप पर उंगली उठती रही है। नेताजी यूपीए के दस साल के कार्यकाल में सरकार को समर्थन भी करते रहे आैर विरोध भी। इस बार भी नेताजी ने एनडीए सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश मामले में एक तरह से सरकार का समर्थन कर दिया जबकि वह अपने को समय-समय पर किसान हितैषी का भी दावा करते रहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद पहले से ही उनकी परेशानी बढ़ाता रहा है। अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर एक नई पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास पार्टी आैर बन गई।

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