किर्केटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने के बाद देश में एक बहस छिड़ गई है। कोई हाकी के जादूगर ध्यान चंद के लिए पैरवी कर रहा है तो कोई पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के लिए। ऐसे भी लोग हैं जो काफी नाम गिना रहे हैं। ऐसे में एक सवाल पैदा होता है कि देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कितने क्रांतिकारियों को अब तक भारत रत्न मिला है ?
दबे-कुचलों और पिछड़ों के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करने वाले डा. राम मनोहर लोहिया को अब तक इस सम्मान से सम्मानित क्यों नहीं किया गया ? देश में राम मनोहर लोहिया ऐसा नाम है जो जिंदगी भर व्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे। कहा जाता है कि अन्याय का विरोध करने वाला उनसे बड़ा नेता देश में कोई नहीं हुआ है। उनकी कार्यशैली इतनी उच्च कोटि की थी कि कई बार तो उनका कद महात्मा गांधी को चुनौती देने लगता था।
सचिन तेंदुलकर की बात की जाए तो खेल में उनकी लोकप्रियता इतनी जबर्दस्त है कि उन्हें उच्च सम्मान से सम्मानित किया ही जाना चाहिए पर हमें यह भी देखना होगा कि वह न केवल पैसों के लिए विज्ञापन करते हैं बल्कि खिलाड़ी के लिए बिकाऊ मानी जाने वाली किर्केट प्रतियोगिता आईपीएल में भी खेलते हैं। ध्यानचंद देशभक्ति के साथ हाकी खेलते थे। उन्होंने कई बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया, अपने देश से खेलने के लिए जर्मनी के शासक हिटलर का उनकी सेना में जनरल का ऑफर भी ध्यानचंद ने ठुकरा दिया था। खेल जगत में यदि किसी का भारत रत्न बनता है तो वह ध्यान चंद हैं, पर उन्होंने यह सब सेना में नोकरी करते हुए किया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई ने देश के लिए बहुत कुछ किया। विपक्ष में भी उनकी बात सुनी जाती थी पर उन पर अंग्रेजों के लिए मुखबरी करने का भी आरोप लगा था। इन सबमे डा. लोहिया ऐसा नाम है जो जिंदगी भर देश व समाज के लिए लड़ते रहे। उनको न तो पद का लालच था और न ही उन पर कोई दाग लग सका।
हमें यह भी देखना होगा कि जब हमारे देश में समाजवाद की बात होती है तो डा. राम मनोहर लोहिया का चेहरा आंखों के सामने आने लगता है। वह लोहिया ही थे कि जिन्होंने बर्लिन में हो रही लीक आफ नेशंस की बैठक में भगत सिंह को फांसी दिए जाने विरोध में सिटी बजाकर दर्शक दीर्घा से इसका विरोध प्रकट किया। लोहिया ने किन परिस्तिथियों ने देश और समाज के लिया संघर्ष किया। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विदेश में पढ़ाई पूरी करने के बाद जब 1933 में वह समुद्री जहाज से मद्रास के लिए चले तो रास्ते में ही उनका सामान जब्त कर लिया गया। मद्रास पहुंचने के बाद लोहिया हिन्दू अखबार के दफ्तर पहुंचे और दो लेख लिखकर 25 रुपए कमाए और इनसे कलकत्ता पहुंचे थे।
आजादी की लड़ाई में लोहिया देश के लिए इतने महत्वपूर्ण थे इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोहिया की गिरफ्तारी के बाद गांधी जी ने कहा था कि जब तक राम मनोहर लोहिया जेल में हैं तब तक खामोश नहीं रहा जा सकता। उनसे ज्यादा बहादुर और सरल आदमी मुझे मालुम नहीं। वह लोहिया ही थे जिन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में 9 अगस्त 1944 को गांधी जी व अन्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लेने के बाद भूमिगत रहते हुए आन्दोलन की अगुआई की थी। लोहिया से अंग्रेज सरकार इतनी घबराती थी कि द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर गिरफ्तार हुए गांधी जी समेत अन्य कांग्रेस नेताओं को तो छोड़ दिया गया, पर लोहिया को नहीं छोड़ा गया। 1946 को जब देश में सांप्रदायिक दंगे भड़के तो लोहिया नवाखली, कलकत्ता, बिहार दिल्ली समेत की जगहों पर गांधी जी के साथ मिलकर साम्प्रदायिकता की आग बुझाते रहे।
लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए रियासतों को खत्म करने का पूरा श्रेय हम लोग भले ही सरदार पटेल को देते रहे हों पर आजादी मिलने के बाद लोहिया की प्रेरणा से 650 रियासतों की समाप्ति का आन्दोलन समाजवादी नेता भी चला रहे थे। वह लोहिया ही थे, जिन्होंने 50 के दशक में गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया था। वह लोहिया ही थे जो जनविरोधी नीतियों को लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ खड़े हो गए थे। उनकी तीन आना बनाम पन्द्रह आना बहस बहुत चर्चित रही। वह जनता के लिए हर तंत्र से लड़ते रहे यही कारण था कि देश के आजाद होने के बाद भी वह कई बार गिरफ्तार किये गए।