देश का किसान चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि मोदी सरकार ये जो किसान कानून लाई है ये कॉरपोरेट घरानों के भले के और उनकी बर्बादी के हैं। पर मोदी सरकार और उनके समर्थक हैं कि वे इन कानून से किसानों को मालामाल करने की रट लगाई हुए हैं। वह बात दूसरी है कि मोदी सरकार ने इन कानूनों को लाने से पहले किसानों या उनके नेताओं से बात करना भी मुनासिब नहीं समझा। यह अपने आप में एक सवाल है कि कानून लाये गये किसानों से संबंधित और प्रधानमंत्री ने बैठक की कॉरपोरेट घरानों के साथ। जो लोग जानबूछ कर अनजान बन हुए हैं उनको तो कोई नहीं समझा सकता है पर अब अंधे आदमी की भी समझ में आने लगा है कि ये कानून कॉरपोरेट घरानों को किसानों की जमीन हथियाने देने का षड्यंत्र हैं। कानून में एमएसपी मेनशन न करना, उद्योगपतियों को फसलों के भंडारण की छूट देना और सीधे किसानों की फसल खरीदना का अधिकार ये सब कॉरपोरेट घरानों का हित देखते हुए किया गया है। यही वजह रही है कि मोदी सरकार ने इन कानून में किसानों का कोर्ट जाने का भी अधिकार छीन लिया है। कानून में किसान के किसी शिकायत को लेकर एसडीएम के पास जाने की ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या एसडीएम की औकात है कि अडानी और अंबानी जैसे शीर्षस्थ उद्योगपतियों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर दे वह भी जब वह जानता हो कि ये दोनों उद्योगपति देश के प्रधानमंत्री के घनिष्ठ मित्र हैं। बताया जा रहा है कि अडानी ग्रुप ने विभिन्न राज्यों में खाद्यान्न गोदाम बनाने की पूरी व्यवस्था कर ली है। न्यूज ख्ब् पर भाकियू महासचिव युद्धवीर सिंह ने बाकायदा क्ब् राज्यों में अडानी के गोदाम बनने की बात कही है। यह अपने आप में दिलचस्प है कि एक ओर सरकार सरकारी गोदामों में एमएसपी के अनुसार 1 लाख 90 हजार करोड़ का अनाज पड़ा बता रही है तो दूसरी ओर अडानी ग्रुप विभिन्न राज्यों में गोदाम बना रहा है। मतलब यदि ये कानून वापस नहीं होते हैं तो देश में आम मंडियां समाप्त हो जाएंगी और अडानी की मंडियों का राज चलेगा। जिन लोगों को अभी भी ये कानून किसान हित में लग रहे है। जिन्हें मोदी सरकार किसान हितैषी दिखाई दे रही हो वे हरियाणा के पानीपत जिले के नौल्था गांव में जाकर इन कानून को लेकर अडानी ग्रुप की तैयारी देख लें। मोदी सरकार अडानी पर कितनी मेहरबान रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पानीपत जिले के इसराना तहसील के गांव नौल्था में अडानी ग्रुप ने 100 एकड़ जमीन दो साल पहले यानी कि मोदी के पहले ही कार्यकाल में खरीद ली थी। आजकल इस जमीन पर रेलवे ट्रैक, सडक़ व मंडी का कार्य चल रहा है। बताया जा रहा है कि यह जमीन इस बहाने अधिग्रहीत की गई कि गांव में रेलवे के डिब्बे (कोच) बनाने का कारखाना बनेगा। दरअसल रेलवे के डिब्बे बनाने के नाम पर रोजगार का लालच देकर किसानों ने यह जमीन खरीदी गई थी। गांव वालों को बताया गया कि यह जमीन सरकार खरीद रही है। लोगों को लगा कि यदि वे जमीन नहीं देंगे तो जमीन जबर्दस्ती जमीन ले लेगी। इस लिहाज से उन्होंने यह जमीन दी थी। किसानों तब जाकर पता चला कि उनकी ज़मीनें अडानी ग्रुप ले रहा है जब तक 40-50 एकड़ जमीन अधिग्रहीत कर ली गई थी। जब किसानों ने अपनी ज़मीनें देने से इनकार किया तो इन बचे किसानों को मोटा लालच देकर यानी कि डेढ़ से ख् करोड़ का भाव देकर उनकी जमीन खरीद ली गई। मतलब ये पूंजीपति किसानों को मोटा लालच देकर उनकी जमीन हथियाने में माहिर होते हैं। इस जमीन पर अडानी ग्रुप फसलों के भंडारण के लिए अपना गोदाम बना रहा है। गोदाम कितना बड़ा होगा यह बात गोदाम तक बिछने वाली रेलवे लाइन ही बता रही है। मतलब इस गोदाम से खाद्यान्न दूसरे राज्यों ही नहीं बल्कि विदेश तक जाएगा। हो सकता है कि अडानी देश का खाद्यान्न मोटे मुनाफे पा विदेश में जाकर बेच दे। मतलब देश में खाद्यान्न संकट की पूरी तैयारी मोदी सरकार न इन कानूनों के माध्यम से कर दी है। वैसे भी उद्योगपतियों को तो बस अपना मुनाफा चाहिए। देश और समाज से उनका कोई लेना देना नहीं होता है। पता चला है कि पहले भी पहले भी कारपोरेट घरानों के लिए जमीन अधिग्रहीत की गई है। मतलब अब आढ़तियों की मंडी की जगह कारपोरेट घरानों की मंडी होंगी। बताया जा रहा है कि नौल्था गांव में मिट्टी खोदना या फैक्ट्री लगाने की आज्ञा नहीं है। उसके बावजूद ये सारा काम हुआ है। मतलब मामला अडानी ग्रुप का है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अडानी का एसडीएम तो क्या करेगा ? मुख्य सचिव भी कुछ नहीं कर सकता है। अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए नौल्था गांव को स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाया गया है। मतलब यहां हरियाणा या केंद्र का कानून नहीं चलेगा यहां पर अडानी का कानून चलेगा। कोई कोर्ट भी नहीं जा सकेगा। किसानों का कहना है कि यह क्षेत्र में ऐसी चर्चा कि नौल्था गांव में अडानी निजी मंडी लगाने जा रहा है। यह जमीन जीटी रोड पानीपत रोहतक से इस गांव को जोड़ती है। इस ज़मीन पर अडानी इनीशिएटिव का बोर्ड भी लगा दिया गया है। अडानी ग्रुप के इस प्रोजेक्ट के लिए हजारों पेड़ ्काट दिय गये हैं। कारपोरेट घरानों के लिए मोदी सरकार क्या-क्या खेल खेलेगी। यह इस मामले में भी दिखाई दे रही है। दरअसल अडानी एग्री लॉजिस्टिक पानीपत की ओर से नौल्था और जोंधन कलान में अधिग्रहीत जमीन का लैंड-यूज बदल कर गोदाम (कृषि उत्पाद) स्थापित करने की परमिशन मांगने के तुरंत बाद इसे मान लिया गया। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद हेलीकॉप्टर से लेकर चुनावी रैलियों तक का सारा खर्च अडानी के उठाने की चर्चा आम रही है। मीडिया को मेनेज करन के साथ ही लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गये तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालका को पंगू बनाने के लिए अडानी और अंबानी के पैसों का के इस्तेमाल करने की बात भी आम हो गई है। वैसे भी मुकेश अंबानी के अधिकतर मीडिया हाउस में शेयर हैं। मोदी सरकार के प्रवक्ता की भूमिका निभा रहा जी न्यूज ग्रुप सांसद सुभाषा चंद्रा का है। किसान कानूनों के साथ ही श्रम कानून में संशोधन भी इन शीर्षस्थ उद्योगपतियों क एहसान उतारने और उनके दबाव में लिया गया फैसला माना जा रहा है।
|