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Wednesday, 9 December 2020

किसान कानून : मोदी सरकार की नीयत में खोट बता रहा पानीपत में 100 एकड़ जमीन पर बन रहा अडानी का गोदाम!

 



देश का किसान चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि मोदी सरकार ये जो किसान कानून लाई है ये कॉरपोरेट घरानों के भले के और उनकी बर्बादी के हैं। पर मोदी सरकार और उनके समर्थक हैं कि वे इन कानून से किसानों को मालामाल करने की रट लगाई हुए हैं। वह बात दूसरी है कि मोदी सरकार ने इन कानूनों को लाने से पहले किसानों या उनके नेताओं से बात करना भी मुनासिब नहीं समझा। यह अपने आप में एक सवाल है कि कानून लाये गये किसानों से संबंधित और प्रधानमंत्री ने बैठक की कॉरपोरेट घरानों के साथ। जो लोग जानबूछ कर  अनजान बन हुए हैं उनको तो कोई नहीं समझा सकता है पर अब अंधे आदमी की भी समझ में आने लगा है कि ये कानून कॉरपोरेट घरानों को किसानों की जमीन हथियाने देने का षड्यंत्र हैं। कानून में एमएसपी मेनशन न करना, उद्योगपतियों को फसलों के भंडारण की छूट देना और सीधे किसानों की फसल खरीदना का अधिकार ये सब कॉरपोरेट घरानों का हित देखते हुए किया गया है। यही वजह रही है कि मोदी सरकार ने इन कानून में किसानों का कोर्ट जाने का भी अधिकार छीन लिया है। कानून में किसान के किसी शिकायत को लेकर एसडीएम के पास जाने की ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या एसडीएम की औकात है कि अडानी और अंबानी जैसे शीर्षस्थ उद्योगपतियों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर दे वह भी जब वह जानता हो कि ये दोनों उद्योगपति देश के प्रधानमंत्री के घनिष्ठ मित्र हैं। बताया जा रहा है कि अडानी ग्रुप ने विभिन्न राज्यों में खाद्यान्न गोदाम बनाने की पूरी व्यवस्था कर ली है। न्यूज ख्ब् पर भाकियू महासचिव युद्धवीर सिंह ने बाकायदा क्ब् राज्यों में अडानी के गोदाम बनने की बात कही है। यह अपने आप में दिलचस्प है कि एक ओर सरकार सरकारी गोदामों में एमएसपी के अनुसार 1 लाख 90 हजार करोड़ का अनाज पड़ा बता रही है तो दूसरी ओर अडानी ग्रुप विभिन्न राज्यों में गोदाम बना रहा है। मतलब यदि ये कानून वापस नहीं होते हैं तो देश में आम मंडियां समाप्त हो जाएंगी और अडानी की मंडियों का राज चलेगा।
जिन लोगों को अभी भी ये कानून किसान हित में लग रहे है। जिन्हें मोदी सरकार किसान हितैषी दिखाई दे रही हो वे हरियाणा के पानीपत जिले के नौल्था गांव में जाकर इन कानून को लेकर अडानी ग्रुप की तैयारी देख लें। मोदी सरकार अडानी पर कितनी मेहरबान रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पानीपत जिले के इसराना तहसील के गांव नौल्था में अडानी ग्रुप ने 100 एकड़  जमीन दो साल पहले यानी कि मोदी के पहले ही कार्यकाल में खरीद ली थी। आजकल इस जमीन पर  रेलवे ट्रैक, सडक़ व मंडी का कार्य चल रहा है।  बताया जा रहा है कि यह जमीन इस बहाने अधिग्रहीत की गई कि गांव में रेलवे के डिब्बे (कोच) बनाने का कारखाना बनेगा। दरअसल रेलवे के डिब्बे बनाने के नाम पर रोजगार का लालच देकर किसानों ने यह जमीन खरीदी गई थी।  गांव वालों को बताया गया कि यह जमीन सरकार खरीद रही है। लोगों को लगा कि यदि वे जमीन नहीं देंगे तो जमीन जबर्दस्ती जमीन ले लेगी। इस लिहाज से उन्होंने यह जमीन दी थी।
किसानों तब जाकर पता चला कि  उनकी ज़मीनें अडानी ग्रुप ले रहा है  जब तक 40-50 एकड़ जमीन अधिग्रहीत कर ली गई थी। जब किसानों ने अपनी ज़मीनें देने से इनकार किया तो इन बचे किसानों को मोटा लालच देकर यानी कि डेढ़ से ख् करोड़ का भाव देकर उनकी जमीन खरीद ली गई। मतलब ये पूंजीपति किसानों को मोटा लालच देकर उनकी जमीन हथियाने में माहिर होते हैं।
 इस जमीन पर अडानी ग्रुप फसलों के भंडारण के लिए अपना गोदाम बना रहा है। गोदाम कितना बड़ा होगा यह बात गोदाम तक बिछने वाली रेलवे लाइन ही बता रही है। मतलब इस गोदाम से खाद्यान्न दूसरे राज्यों ही नहीं बल्कि विदेश तक जाएगा। हो सकता है कि अडानी देश का खाद्यान्न मोटे मुनाफे पा विदेश में जाकर बेच दे। मतलब देश में खाद्यान्न संकट की पूरी तैयारी मोदी सरकार न इन कानूनों के माध्यम से कर दी है। वैसे भी उद्योगपतियों को तो बस अपना मुनाफा चाहिए।  देश और समाज से उनका कोई लेना देना नहीं होता है। पता चला है कि पहले भी पहले भी कारपोरेट घरानों के लिए  जमीन अधिग्रहीत की गई है। मतलब अब आढ़तियों की मंडी की जगह कारपोरेट घरानों की मंडी होंगी। बताया जा रहा है कि नौल्था गांव में मिट्टी खोदना या फैक्ट्री लगाने की आज्ञा नहीं है। उसके बावजूद ये सारा काम हुआ है। मतलब मामला अडानी ग्रुप का है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अडानी का एसडीएम तो क्या करेगा ? मुख्य सचिव भी कुछ नहीं कर सकता है। अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए नौल्था गांव को स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाया गया है। मतलब यहां हरियाणा या केंद्र का कानून नहीं चलेगा यहां पर अडानी का कानून चलेगा। कोई कोर्ट भी नहीं जा सकेगा। किसानों का कहना है कि यह  क्षेत्र में ऐसी चर्चा कि नौल्था गांव में अडानी निजी  मंडी लगाने जा रहा है।  यह जमीन जीटी रोड पानीपत रोहतक से इस गांव को जोड़ती है। इस ज़मीन पर अडानी इनीशिएटिव का बोर्ड भी लगा दिया गया है। अडानी ग्रुप के इस प्रोजेक्ट के लिए हजारों पेड़ ्काट दिय गये हैं। कारपोरेट घरानों के लिए मोदी सरकार क्या-क्या खेल खेलेगी। यह इस मामले में भी दिखाई दे रही है। दरअसल अडानी एग्री लॉजिस्टिक पानीपत की ओर से नौल्था और जोंधन कलान में अधिग्रहीत जमीन का लैंड-यूज बदल कर गोदाम (कृषि उत्पाद) स्थापित करने की परमिशन मांगने के तुरंत बाद इसे मान लिया गया।
दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव  में एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद हेलीकॉप्टर से लेकर चुनावी रैलियों तक का सारा खर्च अडानी के उठाने की चर्चा आम रही है। मीडिया को मेनेज करन के साथ ही लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गये तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालका को पंगू बनाने के लिए अडानी और अंबानी के पैसों का के इस्तेमाल करने की बात भी आम हो गई है।  वैसे भी मुकेश अंबानी के अधिकतर मीडिया हाउस में शेयर हैं। मोदी सरकार के प्रवक्ता की भूमिका निभा रहा जी न्यूज ग्रुप सांसद सुभाषा चंद्रा का है।
किसान कानूनों के साथ ही श्रम कानून में संशोधन भी इन शीर्षस्थ उद्योगपतियों क एहसान उतारने और उनके दबाव में लिया गया फैसला माना जा रहा है। 

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दुनिया की मशहूर पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने कहा- मोदी भारत में खत्म कर रहे हैं लोकतंत्र

 
जेपी सिंह
पौने दो सौ साल पुरानी लंदन की द इकोनॉमिस्ट (The Economist) ने अपने ताज़ा अंक में भारत पर एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है कि नरेंद्र मोदी भारत में लोकतंत्र ख़त्म कर रहे हैं। दूसरी और नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) अमिताभ कांत को भारत का लोकतंत्र पसंद नहीं है।
द इकोनॉमिस्ट समाचार पत्रिका विश्व पत्रकारिता का जाना माना नाम है। इसकी साख न्यूयार्क टाइम्स और वाल स्ट्रीट जनरल से भी ऊपर है। इसके ताजा अंक में भारत पर India’s diminishing democracy, Narendra Modi threatens to turn India into a one-party state, An increasingly dominant prime minister and the ongoing erosion of checks and balances शीर्षक से एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है।
रिपोर्ट का सार ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में लोकतंत्र ख़त्म कर रहे हैं। पत्रिका कहती है कि मोदी सत्ता के भूखे हैं और सारे नियम क़ानून ताख पर रख कर भारत में विरोधी पार्टियां खत्म कर रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारत दुनिया के उन चार देशों में सबसे ख़राब हाल में है जहाँ लोकतंत्र को ख़तरा है। बाक़ी तीन देश हैं पोलैंड, हंगरी और तुर्की।
द इकोनोमिस्ट की रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय को भी लोकतंत्र विरोधी बताया गया है। लिखा है कि उच्चतम न्यायालय अर्णब गोस्वामी को चौबीस घंटे में जमानत दे देती है, लेकिन तिरासी साल के फ़ादर स्टैन स्वामी को पानी पीने के लिए स्ट्रॉ तक नहीं देती है। रिपोर्ट कहती है कि दसियों हज़ार अल्पसंख्यक जेल में सड़ रहे हैं, मगर उच्चतम न्यायालय के कान पर जूं नहीं रेंगती है। साथ ही अदालत ने इलेक्टोरल बांड्स क़ानून, सीएए से लेकर कश्मीर तक के मुक़दमों को लटका रखा है। रिपोर्ट में यूएपीए, आरटीआई, जनरल बिपिन रावत, चीनी अधिक्रमण पर मोदी की नींद, चुनाव आयोग, बिकाऊ मीडिया, कपिल मिश्रा, दिल्ली पुलिस द्वारा मुसलमानों की गिरफ़्तारियां इत्यादि पर भी तीख़ी टिप्पणी की गई है।
जब देश में लोकतंत्र अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है, तब नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) अमिताभ कांत को भारत का लोकतंत्र पसंद नहीं है। उन्हें चीन पसंद है जहां लोकतंत्र नहीं है। अमिताभ कांत ने मंगलवार को कहा था कि भारत में कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है, जिसके कारण यहां कड़े सुधारों को लागू करना कठिन होता है। उन्होंने एक ऑनलाइन कार्यक्रम में कहा कि भारत में कड़े सुधार नहीं लाए जा सकते हैं, क्योंकि हमारे यहां बहुत ज्यादा लोकतंत्र है।
अभिताभ कांत के इस कमेंट को लेकर सरकार को कई सवालों का सामना करना पड़ा। नतीजतन डैमेज कंट्रोल के लिए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को आगे आना पड़ा। उन्होंने कहा कि हमें अपने लोकतंत्र पर गर्व है।
स्वराज्य पत्रिका के कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित करते हुए कांत ने जोर देकर कहा था कि देश को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए और बड़े सुधारों की जरूरत है। पहली बार केंद्र ने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों को आगे बढ़ाया है। अब राज्यों को सुधारों के अगले चरण को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के संदर्भ में कड़े सुधारों को लागू करना बहुत मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि चीन के विपरीत हम एक लोकतांत्रिक देश हैं। हमें वैश्विक चैंपियन बनने पर जोर देना चाहिए। आपको इन सुधारों (खनन, कोयला, श्रम, कृषि) को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है और अभी भी कई सुधार हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि कड़े सुधारों को आगे बढ़ाए बिना चीन से प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं है।
नीति आयोग के सीईओ ने कहा कि अगर 10-12 राज्य उच्च दर से वृद्धि करेंगे, तब इसका कोई कारण नहीं कि भारत उच्च दर से विकास नहीं करेगा। हमने केंद्र शासित प्रदेशों से बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के लिए कहा है। वितरण कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी होना चाहिए और सस्ती बिजली उपलब्ध करानी चाहिए।
मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसानों के नये कृषि कानूनों को लेकर विरोध-प्रदर्शन पर कांत ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह समझना जरूरी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था बनी रहेगी, मंडियों में जैसे काम होता है, वैसे ही होता रहेगा। किसानों के पास अपनी रुचि के हिसाब से अपनी उपज बेचने का विकल्प होना, चाहिए क्योंकि इससे उन्हें लाभ होगा। हालांकि नीति आयोग के सीईओ ने बाद में पलटी मार दी कि देश में अधिक लोकतंत्र का बयान नहीं दिया।
अब अमिताभ कांत से कोई पूछे की जब द इकोनोमिस्ट जैसी अंतररष्ट्रीय पत्रिका में ब्लैक एंड व्हाइट में लिखा जा रहा है कि भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा रहा है और इसके समर्थन में तमाम मामलों का भी उल्लेख किया गया है। फिर भी उन्हें क्यों लगता है भारत में ज़्यादा लोकतंत्र है!
दरअसल अमिताभ कांत का ये बयान ऐसे वक़्त में आया है जब मुल्क के अंदर देश का किसान दिल्ली बॉर्डर पर आकर अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहा है। उसे अपने हक़ की लड़ाई लड़ने का ये अधिकार आज़ाद भारत के संविधान ने दिया है।
अमिताभ कांत के बयान से किसानों के आंदोलन के सन्दर्भ में यह ध्वनि निकल रही है कि सरकार की नीतियों, उसके फ़ैसलों पर बोलने की आज़ादी किसी को भी नहीं होनी चाहिए। लोकतंत्र में जनता अपना जनप्रतिनिधि चुनती है शासक नहीं। लोकतंत्र में जनता मालिक होती है और सरकार उसकी नुमाइंदगी करती है। नौकरशाह सरकार के नौकर होते हैं, जिन्हें जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले टैक्स से वेतन मिलता है। लोकतंत्र में नौकरशाहों को यह हक संविधान ने भी नहीं दिया है कि वे संविधान के खिलाफ विषवमन करें।
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