Friday, 28 September 2018

विपक्ष का बिखराव ही मोदी की मजबूती, हराना है तो एकजुट होकर मोर्चा खोलिये

भले ही लोग मोदी शासन की खुलकर आलोचना करने लगे हों, भले ही मोदी राफेल सौदे मामले में घिरते नजर आ रहे हों पर जिस तरह से विपक्ष अलग थलग पड़ा है, उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि चुनावी दंगल में जाने से पहले विपक्ष एकजुट होने के बजाय बिखर रहा है। दिल्ली में आप की कांग्रेस से नहीं बन रही है तो उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा कांग्रेस को पचाने को तैयार नहीं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी वामपंथियों में टकराव है तो छत्तीसगढ़ में मायावती ने अजित जोगी से गठबंधन कर महागठंधन को झटका दे दिया। [अब जब राहुल गांधी राफेल सौदे पर मोदी को घेरने में कामयाब हो रहे थे तो एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार  ने  राफेल मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में बयान देकर मामले को कमजोर कर दिया। 
प्रचंड बहुमत के साथ देश पर राज कर रहे नरेंद्र मोदी इसलिए खुलकर बैटिंग कर रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि विपक्ष में कोई दम नहीं है। चाहे मोदी सरकार की खामियों को लेकर राष्ट्रीय स्तर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की बात हो या फिर प्रदेश स्तर पर भाजपा सरकारों को घेरने की । कहीं पर भी विपक्ष मजबूत छाप नहीं छोड़ पाया है। वैसे तो रोज मोदी सरकार की खामियां गिनाई जा रही हैं पर मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष ने ऐसा कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया जो जनता को प्रभावित करता। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी तो उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और  छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भाजपा सरकारों के खिलाफ परिवर्तन वाला आंदोलन नहीं खड़ा पा रही हैं। बिहार में गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार भाजपा की गोद में जा बैठे हैं। संघ के खिलाफ सीना तानकर खड़े रहने वाले लालू प्रसाद जेल में हैं। उनके सुपुत्र तेजस्वी में करिश्माई नेतृत्व का अभाव देखा जा रहा है। दक्षिण भारत में भी विपक्ष भाजपा के खिलाफ कोई खास माहौल नहीं बना पाया है। हां राहुल गांधी की भागदौड़ जरूर दिखाई दे रही है। ऐसा लग रहा है कि जैसे विपक्ष किन्हीं कारणों से केंद्र सरकार के दबाव में है। ऐसे में 2019 का लोकसभा चुनाव विपक्ष कैसे जीतेगा, समझ से परे है। हालांकि लोक सभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव होने हैं यदि ये चुनाव विपक्ष जीत जाता है तो आम चुनाव को लेकर जरूर एक अच्छा माहौल बनेगा। जैसा की गत दिनों उप चुनाव जितने के बाद बना था।
इन सबके बीच मोदी का प्लस प्वाइंट यह भी है कि मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने वाले किसान और मजदूरों के आंदोलन को राजनीतिक दल मजबूती तो दे ही नहीं पाए साथ ही वातानुकूलित कमरों में बयानबाजी से भी बाहर नहीं निकले। चाहे मध्य प्रदेश में पुलिस फायरिंग में मरे किसानों का मामला हो, बिहार में मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश में शेल्टर हॉउस में लड़कियों के देह शोषण का या फिर सहारनपुर में दलित उत्पीड़न का सब मामलों में विपक्ष नाकारा साबित हुआ। उल्टे दलित युवा नेता के रूप में उभरे चंद्रशेखर आजाद को दबाने का खेल शुरू हो गया। जब चंद्र शेखर ने बसपा प्रमुख मायावती को बुआ कहकर सम्बोधित किया तो उन्होंने चंद्रशेखर को बढ़ावा देने के बजाय उनसे किनारा कर लिया।
मोदी सरकार में विपक्ष अघोषित इमरजेंसी की बात तो करता है पर जयप्रकाश नारायण, चरण सिंह, मोरारजी देसाई जैसा जज्बा किसी नेता में दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता। राफेल सौदे को बोफोर्स घोटाले से बड़ा घोटाला बताते हैं वीपी सिंह, देवीलाल और चंद्रशेखर जैसा करिश्माई नेतृत्व किसी में नहीं दिखता। ऐसे में धर्म और जाति के आधार पर समाज को बांटने में कामयाब हो रही भाजपा को हराने के लिए विपक्ष के पास निजी स्वार्थ को भूलकर एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के अलावा कोई चारा नहीं है। यदि अभी भी विपक्ष के बड़े नेता वातानुकूलित कमरों से बाहर नहीं निकले और तीसरे मोर्चे और महागठबंधन के नाम पर ऐसे ही बंटे रहे तो मोदी को हराने की बात विपक्ष को भूल जाइये।