कुछ लिखने
का मन कर रहा है। चारों ओर निगाह दौड़ने पर सुईं गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल
कॉलेज में आक्सीजन खत्म होने पर मर गए 63 बच्चों पर आकर अटक जा रही हैं। 63
बच्चों के शवों का मंजर आंखों के सामने आ रहा है तो कलेजा फट जा रहा है।
क्या मनोस्थिति होगी बच्चों के परिजनों की ? देश को कहां ले जाएगा यह
व्यवसायीकरण का यह दौर। किसके लिए कमा रहे हैं हम पैसा ? किसको दिखा रहे
हैं राजनीति और सरकारों का रुतबा ? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बस
चिंता इस बात की है कि किस तरह से मुसलमानों को सबक सिखाया जाए। भय का
माहौल पैदा कर कमजोर की आवाज दबाई जाये। देश के प्रधानमंत्री को चिंता इस
बात की है कि किस तरह से विश्व में छाया जाए। सत्ता का रुतबा बरकरार रखने
के लिए हिन्दू वोटबैंक का कब्जाया जाये। भाड़ में जाए देश और भाड़ में जाए
जनता।
राजनीति का व्यापार देश को तबाह कर रहा है। कोई युवा रोजगार
न मिलने पर आत्महत्या कर रहा है तो कोई रोजगार छीनने से। दिल्ली जंतर मंतर
पर आंदोलन कर रहे रेलवे अप्रेंटिस में से नौकरी छिनने पर 40 युवाओं ने
आत्महत्या की है। लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अभाव में मजदूर
आयेदिन मर रहे हैं। कोचिंग सेंटर के नाम से प्रसिद्ध हो चुका राजस्थान का
कोटा मौत का शहर बन चुका है। मैं तो यह कहूंगा कि व्यवस्था को लेकर जितनी
भी मौत हो रही हैं ये सब हत्या की श्रेणी में आती हैं। इन सबके लिए
कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया सब जिम्मेदार हैं। देश को
चलाने के लिए ये चार स्तम्भ बनाये गए हैं तो ये तंत्र क्या कर रहे हैं। बस
पैसा ही सब कुछ हो गया है। जरा सोचो जिस दिन इन बच्चों की जगह आपके बच्चे
होंगे तो क्या हाल होगा आपका ? क्या करोगे इस पैसों का ?
ऐसे ही बच्चे और युवा दम तोड़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं कि एक दिन आप भी अपने बच्चों के लिए ऐसे ही रो रहे होंगे जैसे ये गरीब लोग रो रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार मेडिकल प्रबंधन और इससे जुड़े व्यापारियों ने मिलकर बच्चों की हत्या की है। ये मौत नहीं नर संहार है। देश में चल रहे सत्ता के खेल से मानवता, संवेदलशीलता, कर्तव्यपरायणता, भाईचारा मेल-मोहब्बत, प्यार स्नेह जैसे शब्द जैसे समाज से गायब होते जा रहे हैं। मैंने जो पढ़ा-लिखा है और मेरी जिंदगी का जो भी अनुभव रहा है। उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि देश में इससे बुरा माहौल नहीं रहा होगा। मैं इसके लिए सिर्फ शासन प्रशासन को ही दोष नहीं देना चाहूंगा, इन सबके लिए समाज भी दोषी है। जिस समाज में कमजोर की मदद करने की परम्परा रही है। बुरे वक्त में सहारा देने परम्परा रही है। मिल-जुलकर काम करने की परम्परा रही है। उस देश में कमजोर को दबाना, बुरे वक्त में उसकी हंसी उड़ाना। व्यक्तिवादी बनना, गरीब को कीड़े मकौड़े समझना समाज की नियति बनती जा रही है।
यदि ये बच्चे नेताओं नौकरशाह या पूंजीपतियों के रहे होते तो देश में अब तक आग लग चुकी होती और ये ही लोग लगाते जो बस बच्चों की हत्या कर रहे हैं और लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। मैं देश के किसान-मजदूर गरीब और बेसहाय लोगों से कहना चाहूंगा कि चाहे सत्ता पक्ष और या फिर विपक्ष दोनों संपन्न लोगों के लिए काम कर रहे हैं। ये सब लोग भी तो पूंजीपति ही हैं। कैसे आएगा आपके और आपके बच्चों के लिए दर्द ? जब तक देश का किसान-मजदूर देश की सत्ता नहीं कब्जायेगा तब तक ऐसे ही हमारे बच्चों की हत्या होती रहेगी। अभी से जुट जाओ अपने बीच में से कोई क्षेत्र का जनप्रतिनिधि बनाने के लिए। प्रधानमंत्री गरीबी का ढकोसला कर पूंजीपतियों के लिए काम कर रहे हैं ।
2019 के चुनाव में किसी भी हालत में पूंजीपतियों के हाथों में सत्ता नहीं जाने देनी है। अब लड़ाई नौकरी लेने या बचाने की नहीं। खेत बोने या काटने की नहीं। बच्चों को पढ़ने या पढ़ाने की नहीं बल्कि अस्तित्व बचाने की है। देश का प्रधानमंत्री बना बैठा यह व्यक्ति व्यापारी है, जिसने देश के हर तंत्र को बेचने की ठान ली है। बेचना इस व्यक्ति के डीएनए में है। जिस स्टेशन पर चाय बेचता था वह स्टेशन ही बेच रहा है। जिस ट्रेन में चलता था वह ट्रेन ही बेच दे रहा है। जिस एअर इंडिया में हवाई सफर करता था, उसको ही बेच दे रहा है। जल्द ही भूमि अधिग्रहण विधेयक लाकर किसानों की जमीन भी पूंजीपतियों को बेचने वाला है। श्रम कानून में संशोधन कर मजदूर की मजदूरी बेचने वाला है। देश की सुरक्षा बेचने की तैयारी है। यानि कि सुब कुछ बेचना है। यह देश सम्पन्न लोगों के हिसाब से तैयार किया जा रहा है। यह बात आम आदमी को समझ लेनी होगी।
ऐसे ही बच्चे और युवा दम तोड़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं कि एक दिन आप भी अपने बच्चों के लिए ऐसे ही रो रहे होंगे जैसे ये गरीब लोग रो रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार मेडिकल प्रबंधन और इससे जुड़े व्यापारियों ने मिलकर बच्चों की हत्या की है। ये मौत नहीं नर संहार है। देश में चल रहे सत्ता के खेल से मानवता, संवेदलशीलता, कर्तव्यपरायणता, भाईचारा मेल-मोहब्बत, प्यार स्नेह जैसे शब्द जैसे समाज से गायब होते जा रहे हैं। मैंने जो पढ़ा-लिखा है और मेरी जिंदगी का जो भी अनुभव रहा है। उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि देश में इससे बुरा माहौल नहीं रहा होगा। मैं इसके लिए सिर्फ शासन प्रशासन को ही दोष नहीं देना चाहूंगा, इन सबके लिए समाज भी दोषी है। जिस समाज में कमजोर की मदद करने की परम्परा रही है। बुरे वक्त में सहारा देने परम्परा रही है। मिल-जुलकर काम करने की परम्परा रही है। उस देश में कमजोर को दबाना, बुरे वक्त में उसकी हंसी उड़ाना। व्यक्तिवादी बनना, गरीब को कीड़े मकौड़े समझना समाज की नियति बनती जा रही है।
यदि ये बच्चे नेताओं नौकरशाह या पूंजीपतियों के रहे होते तो देश में अब तक आग लग चुकी होती और ये ही लोग लगाते जो बस बच्चों की हत्या कर रहे हैं और लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। मैं देश के किसान-मजदूर गरीब और बेसहाय लोगों से कहना चाहूंगा कि चाहे सत्ता पक्ष और या फिर विपक्ष दोनों संपन्न लोगों के लिए काम कर रहे हैं। ये सब लोग भी तो पूंजीपति ही हैं। कैसे आएगा आपके और आपके बच्चों के लिए दर्द ? जब तक देश का किसान-मजदूर देश की सत्ता नहीं कब्जायेगा तब तक ऐसे ही हमारे बच्चों की हत्या होती रहेगी। अभी से जुट जाओ अपने बीच में से कोई क्षेत्र का जनप्रतिनिधि बनाने के लिए। प्रधानमंत्री गरीबी का ढकोसला कर पूंजीपतियों के लिए काम कर रहे हैं ।
2019 के चुनाव में किसी भी हालत में पूंजीपतियों के हाथों में सत्ता नहीं जाने देनी है। अब लड़ाई नौकरी लेने या बचाने की नहीं। खेत बोने या काटने की नहीं। बच्चों को पढ़ने या पढ़ाने की नहीं बल्कि अस्तित्व बचाने की है। देश का प्रधानमंत्री बना बैठा यह व्यक्ति व्यापारी है, जिसने देश के हर तंत्र को बेचने की ठान ली है। बेचना इस व्यक्ति के डीएनए में है। जिस स्टेशन पर चाय बेचता था वह स्टेशन ही बेच रहा है। जिस ट्रेन में चलता था वह ट्रेन ही बेच दे रहा है। जिस एअर इंडिया में हवाई सफर करता था, उसको ही बेच दे रहा है। जल्द ही भूमि अधिग्रहण विधेयक लाकर किसानों की जमीन भी पूंजीपतियों को बेचने वाला है। श्रम कानून में संशोधन कर मजदूर की मजदूरी बेचने वाला है। देश की सुरक्षा बेचने की तैयारी है। यानि कि सुब कुछ बेचना है। यह देश सम्पन्न लोगों के हिसाब से तैयार किया जा रहा है। यह बात आम आदमी को समझ लेनी होगी।