अन्ना आंदोलन
के बल पर राजनीतिक वजूद बनाने वाले अरविंद केजरीवाल भले ही मात्र दो साल के
संघर्ष के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए थे। भले ही दिल्ली के गत
विधानसभा चुनाव में लोगों ने उन्हें पलकों पर बैठाया था। भले ही पूरे में
देश में वह चर्चा का विषय बन गए थे। पर जिस तरह से आम चुनाव में आम आदमी
पार्टी के आम कार्यकर्ताओं के साथ ही दिग्गजों का भी अरविंद केजरीवाल पर
उपेक्षा का आरोप लगाना, उनका मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रधानमंत्री
पद के लिए लालायित होना। वोटबैंक के लिए भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा
साम्प्रदायिकता बताना। उनके खिलाफ आम आदमी सेना का गठन किया जाना। ये सब
मुद्दे इन विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ी दिक्कतें लेकर आ
रहे हैं। ऐसे में जब कुमार विश्वास, साजिया इल्मी, प्रभात कुमार जैसे
दिग्गज उनके खिलाफ हो गए हों। योगेंद्र यादव राजनीति में कुछ खास दिलचस्पी
न ले रहे हों, तब वह कैसे दिल्ली फतह करेंगे यह समझ से बाहर है। वैसे भी
आम चुनाव में जिस तरह से उन्होंने जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर
सेलिब्रिटी को तवज्जो दी थी उससे उनकी कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगना
स्वभाविक है।
इन चुनाव में यह बात मुख्य रूप से देखी जा रही है कि अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की गलती स्वीकार कर रहे हैं आैर इसके लिए लोगों से माफी भी मांग रहे हैं। दरअसल अरविंद केजरीवाल को अब तक की गई गलतियों का अहसास हो गया है। उनकी समझ में आ गया है कि उनकी अति महत्वाकांक्षा के चलते देश में जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी में राजनीति के प्रति रुझान पैदा हुआ था वह धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। उनकी समझ में आ गया है कि अन्ना आंदोलन के बाद उनकी गलतियों का फायदा भाजपा उठा ले गई। लोकसभा चुनाव में दिल्ली में करारी शिकस्त के बाद उनकी समझ में आ गया कि संघर्ष के साथियों की उपेक्षा उन पर भारी पड़ी। उनकी समझ में आ गया है कि बिना समर्पित कार्यकर्ताओं आैर संगठन के राजनीति नहीं की जा सकती है। उनकी समझ में आ गया है कि काम को धरातल पर लाए बिना जनता का विश्वास लंबे समय तक कायम नहीं रखा जा सकता है। उनकी समझ में आ गया है कि कुछ विशेष लोगों के पार्टी को कब्जाने का नतीजा क्या होता है। उनकी समझ में आ गया है कि उनकी मनमानी के चलते योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास आैर साजिया इल्मी जैसे विचारवान नेताओं को उनकी नीतियों की आलोचना करनी पड़ी। उनकी समझ में आ गया है कि यदि पंजाब में उन्हें चार सीटें न मिली होती तो वह जनता का मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचते। उनकी समझ में आ गया है कि दिल्ली की सत्ता छोड़कर केंद्र की सत्ता की ललक ने दिल्ली के लोग भी उनसे नाराज कर दिए।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि अरविंद केजरीवाल पर से कम हुआ जनता का विश्वास फिर से कैसे बनाया जाएगा ? जिस व्यक्ति की नीतियों का विरोध अब उसके संगठन में ही होने लगा हो। जिस दल को छोड़कर कई नेता घर बैठ गए हों पर जिस दल के मुखिया पर तानाशाह का आरोप लगाकर बागी कार्यकर्ताओं ने आम आदमी सेना बना ली। जिस दल में दो राष्ट्रीय नेता योगेंद्र यादव आैर नवीन जयहिंद का विवाद राजनीतिक गलियारे में गूंजा हो, जिस दल में योगेंद्र यादव पर अरविंद केजरीवाल के सबसे विश्वसनीय माने जाने वाले मनीष सिसोदिया ने खुले रूप से अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक रूप से खत्म करने का आरोप लगा दिया हो उस दल पर जनता अब कैसे विश्वास करेगी ?
अरविंद केजरीवाल के अब तक के राजनीतिक करियर की बात करें तो उनमें राजनीतिक रूप से असुरक्षा की भावना देखी गई है। आम आदमी पार्टी से विभिन्न दलों के अच्छे छवि के लोग जुड़ना चाहते थे पर उन्होंने उन्हें सटाया तक नहीं। यदि इक्का-दुक्का लिए भी तो खास तवज्जो नहीं दी। जैसे कि कांग्रेस से छोड़कर आप में अलका लांबा को पार्टी में कोई खास तवज्जो नहीं दी गई। कभी भाजपा में रहे निर्दलीय पार्षद से आप में आकर विधायक बने विनोद कुमार बिन्नी को कितनी फजीहत झेलनी पड़ी। विनोद कुमार बिन्नी के मामले में किसी विधायक को लोकसभा का टिकट न देने की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल खुद वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़े आैर राखी बिडलान को पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ाया। आवेदन के नाम पर टिकट देने का वादा करने वाले अरविंद केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने आम चुनाव में आवेदनों को कचरे की टोकरी में डालकर सेलिब्रिटी आैर विशेष लोगों को ही टिकट दिए। उनके पार्टी के ही कार्यकर्ताओं ने उन पर आरोप लगाए कि पार्टी के खड़ी होते ही वह पुराने साथियों को भूल गए आैर पैसे वाले नेताओं को तवज्जो देने लगे। मुंबई में उन्होंने 20,000 रुपए देने वाले लोगों के साथ डिनर किया। मुस्लिम वोटबैंक के लिए उन्हें साम्प्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा दिखाई देने लगा। ऐसे में जनता को फिर से विश्वास में लेना अरविंद केजरीवाल के लिए टेढ़ी खीर साबित होगी।
इन चुनाव में यह बात मुख्य रूप से देखी जा रही है कि अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की गलती स्वीकार कर रहे हैं आैर इसके लिए लोगों से माफी भी मांग रहे हैं। दरअसल अरविंद केजरीवाल को अब तक की गई गलतियों का अहसास हो गया है। उनकी समझ में आ गया है कि उनकी अति महत्वाकांक्षा के चलते देश में जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी में राजनीति के प्रति रुझान पैदा हुआ था वह धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। उनकी समझ में आ गया है कि अन्ना आंदोलन के बाद उनकी गलतियों का फायदा भाजपा उठा ले गई। लोकसभा चुनाव में दिल्ली में करारी शिकस्त के बाद उनकी समझ में आ गया कि संघर्ष के साथियों की उपेक्षा उन पर भारी पड़ी। उनकी समझ में आ गया है कि बिना समर्पित कार्यकर्ताओं आैर संगठन के राजनीति नहीं की जा सकती है। उनकी समझ में आ गया है कि काम को धरातल पर लाए बिना जनता का विश्वास लंबे समय तक कायम नहीं रखा जा सकता है। उनकी समझ में आ गया है कि कुछ विशेष लोगों के पार्टी को कब्जाने का नतीजा क्या होता है। उनकी समझ में आ गया है कि उनकी मनमानी के चलते योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास आैर साजिया इल्मी जैसे विचारवान नेताओं को उनकी नीतियों की आलोचना करनी पड़ी। उनकी समझ में आ गया है कि यदि पंजाब में उन्हें चार सीटें न मिली होती तो वह जनता का मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचते। उनकी समझ में आ गया है कि दिल्ली की सत्ता छोड़कर केंद्र की सत्ता की ललक ने दिल्ली के लोग भी उनसे नाराज कर दिए।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि अरविंद केजरीवाल पर से कम हुआ जनता का विश्वास फिर से कैसे बनाया जाएगा ? जिस व्यक्ति की नीतियों का विरोध अब उसके संगठन में ही होने लगा हो। जिस दल को छोड़कर कई नेता घर बैठ गए हों पर जिस दल के मुखिया पर तानाशाह का आरोप लगाकर बागी कार्यकर्ताओं ने आम आदमी सेना बना ली। जिस दल में दो राष्ट्रीय नेता योगेंद्र यादव आैर नवीन जयहिंद का विवाद राजनीतिक गलियारे में गूंजा हो, जिस दल में योगेंद्र यादव पर अरविंद केजरीवाल के सबसे विश्वसनीय माने जाने वाले मनीष सिसोदिया ने खुले रूप से अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक रूप से खत्म करने का आरोप लगा दिया हो उस दल पर जनता अब कैसे विश्वास करेगी ?
अरविंद केजरीवाल के अब तक के राजनीतिक करियर की बात करें तो उनमें राजनीतिक रूप से असुरक्षा की भावना देखी गई है। आम आदमी पार्टी से विभिन्न दलों के अच्छे छवि के लोग जुड़ना चाहते थे पर उन्होंने उन्हें सटाया तक नहीं। यदि इक्का-दुक्का लिए भी तो खास तवज्जो नहीं दी। जैसे कि कांग्रेस से छोड़कर आप में अलका लांबा को पार्टी में कोई खास तवज्जो नहीं दी गई। कभी भाजपा में रहे निर्दलीय पार्षद से आप में आकर विधायक बने विनोद कुमार बिन्नी को कितनी फजीहत झेलनी पड़ी। विनोद कुमार बिन्नी के मामले में किसी विधायक को लोकसभा का टिकट न देने की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल खुद वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़े आैर राखी बिडलान को पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ाया। आवेदन के नाम पर टिकट देने का वादा करने वाले अरविंद केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने आम चुनाव में आवेदनों को कचरे की टोकरी में डालकर सेलिब्रिटी आैर विशेष लोगों को ही टिकट दिए। उनके पार्टी के ही कार्यकर्ताओं ने उन पर आरोप लगाए कि पार्टी के खड़ी होते ही वह पुराने साथियों को भूल गए आैर पैसे वाले नेताओं को तवज्जो देने लगे। मुंबई में उन्होंने 20,000 रुपए देने वाले लोगों के साथ डिनर किया। मुस्लिम वोटबैंक के लिए उन्हें साम्प्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा दिखाई देने लगा। ऐसे में जनता को फिर से विश्वास में लेना अरविंद केजरीवाल के लिए टेढ़ी खीर साबित होगी।