Friday, 13 June 2014

रेप रोकने को पैदा करना होगा समाज और कानून का डर

नई दिल्ली में  2012 में हुए पैरामेडिकल छात्रा के साथ गैंगरेप के बाद देश में ऐसा माहौल बन गया है कि तमाम प्रयास के बाद इस तरह की वारदात रुकने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। भले ही उत्तर प्रदेश की वारदात को ज्यादा प्रचारित किया जा रहा हो पर पूरे देश में ही अपराध नहीं रुक पा रहे हैं। तो यह माना जाए कि अपराध लगातार बढ़ रहे हैं या फिर अपराध के विरोध में आंदोलन छेड़ने बाद में लोगों में जागरूकता आई है, जो लोग इज्जत का हवाला देते हुए केस दर्ज नहीं कराते थे अब विरोध में खड़ा होने लगे हैं। 
    रेप की वारदात बढ़ने के बारे में मेरा मानना है की  नैतिक शिक्षा के अभाव, सामाजिक और कानून का कोई डर न होने से इस तरह की वारदात बढ़ रही हैं। भले ही इन सबके लिए सरकारों को दोषी माना  रहा हो पर इनके लिए सरकार से ज्यादा जिम्मेदार समाज है। शासन और प्रशासन में बैठे लोग भी किसी न किसी रूप में समाज का ही हिस्सा हैं।
    याद कीजिये कि किसी समय अपराध करने वाले व्यक्ति से हर कोई बचता था पर आजकल यह हाल है कि आपके  पास पावर और पैसा होना चाहिए और आप कुछ भी करते फिरो, लोगों को कोई फर्क  नहीं पड़ता। यहां तक कि अपराधियों से नाम जोड़कर लोग दूसरों पर दबाव बनाने लगे हैं। यही हाल पुलिस प्रशासन का है। अपराधी पावरफुल हो तो उसको गिरफ्तार करने के बजाय बचाने का पूरा प्रयास होता है। सरकारें भी पीछे नहीं हैं, नेता वोटबैंक के लिए सब कुछ देखते हुए भी आंख मूंद लेते हैं।
     अक्सर देखा जाता है कि पीड़ित की मदद करने के बजाय प्रभावशाली लोग अपराधी के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। बात रेप की चल रही है तो हमें यह भी देखना होगा कि इस तरह  के मामलों में सगे-संबंधी लोग हो ज्यादा लिप्त रहते हैं। समाज की स्थिति ऐसी हो गई है कि बाढ़ ही फसल को खा रही है। मेरा मानना है कि  अपराध पर अंकुश लगाने के लिए लोगों का जमीर जगाना होगा, समाज और कानून का डर पैदा करना होगा। यह किस तरह से करना है यह काम सरकार और समाज का है।