एक अप्रैल से देश में होने जा रही गैस मूल्य वृद्धि को लेकर प्रमुख व्यवसायी मुकेश
अम्बानी पर निशाना साधने के बाद दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल बिल पर भाजपा
और कांग्रेस के मिलने को मुद्दा बनाकर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के
इस्तीफा देने बाद देश की राजनीति आंदोलन की ओर चल दी है। व्यवस्था बदलने
निकली आप ने अब देश में चल रहे कॉरपोरेट घरानों और राजनीतिक दलों के गठबंधन
को जनता के बीच ले जाने का मन बना लिया है। अरविन्द केजरीवाल का यह निर्णय
लोगों के दिलों को छुने वाला है। किसी भी तरह से पैसा कमाकर चुनाव
लड़ना और जनप्रतिनिधि बन जाना यह राजनीति का चेहरा बन गया है। कॉरपोरेट
घरानों से पैसा लेकर चुनाव लड़ना और सरकार बनाकर पूंजीपतियों के लिए काम
करना यह राजनेताओं का आचरण हो गया है। अब समय आ गया है कि हम लोगों को इस
भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ खड़ा होना ही होगा।
देश का किसान-मजदूर और आम
आदमी जहां दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है वहीं एक तबका जनता के खून
पसीने की कमाई एशोआराम और अय्यासी पर लगा रहा है। देश को चलाने का ठेका
लिए बैठे राजनेता आर्थिक स्थिति के गड़बड़ाने का रोना रो रहे हैं वहीं दूसरी
ओर आम चुनाव में लगे प्रमुख राजनीतिक दल पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं।
टीवी चैनलों और अख़बारों में अरबों रुपए प्रचार पर खर्च हो रहे हैं। यह पैसा
कहां से आ रहा है, सोचने की जरूरत है। देखा जा रहा है कि बड़े स्तर पर लोग
नरेंदर मोदी के प्रधानमंत्री बनने की पैरवी कर रहे हैं, मैं उन लोगों
से चाहता पूछना हूं कि मोदी की रैलियों पर खर्च किया जा रहा अरबों रूपए कहां से आ
रहा है ? यदि यह पैसा कारपोरेट घराने दे रहे हैं तो क्या सरकार बनने के बाद
मोदी जनता के लिए काम कर पाएंगे ? क्या मोदी कारपोरेट घरानों के दबाव से
बाहर निकल पाएंगे ? क्या निजी कंपनियों में हो रहा कर्मचारियों का आर्थिक और
मानसिक शोषण किसी से छुपा हुआ है ? जगजाहिर है कि यह शोषण राजनीतिक दलों के
साथ मिलकर ही हो रहा है। क्या यह सब चलता रहेगा ? क्या इसके खिलाफ आवाज
नहीं उठानी चाहिए ? क्या इस भ्रष्ट व्यवस्था में आदमी सुरक्षित रह गया
है ? देश की कानून व्यवस्था का यह हाल है कि बहु-बेटियां घर से निकलती हैं तो जब तक घर वापस नहीं आ जाती तब तक घर
के बड़ों को चिंता लगी रहती है। क्या यह भ्रष्ट व्यवस्था बदलनी नहीं चाहिए ?
क्या इस व्यवस्था में हमारे बच्चों का भविष्य और वे सुरक्षित हैं ?
देश
के मजबूत स्तम्भ माने जाने वाले विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और
मीडिया में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं।
कहना गलत न होगा कि बाढ़ ही फसल को खा रही है। ऐसे में यदि हम लोग इस भ्रष्ट
व्यवस्था के खिलाफ खडें नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं
करेगी।